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rekha karri

Abstract

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मायके का मोह

मायके का मोह

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रुक्मिणी जब 13साल की थी तभी उसकी शादी हो गई थी । बहुत बडे ज़मींदार की बेटी थी । घर में नौकर चाकर खेत खलिहान थे । पिता बहुत बडे लॉयर थे । बड़े बडे लोगों का घर में आना-जाना लगा रहता था । दो बड़ी बहनों की शादी पहले ही हो गई थी । दोनों ही अच्छे घरानों में ब्याह कर गई थी । रुक्मिणी अपने आयु से ज़्यादा बड़ी दिखती थी इसलिए घर में माता पिता को उनके ब्याह की चिंता सताने लगी । किसी तरह एक लड़का प्रताप मिला जो पढ़ा लिखा था पर दौलत नहीं थी , उनके पास जायदाद के नाम पर सिर्फ़ एक पुराना घर था । बड़े भाई होने के नाते ज़िम्मेदारियाँ थीं , माँ दो छोटे भाई जो अभी भी पढ़ रहे थे । पिता का साया तभी उनके सिर से उठ गया था जब वे दसवीं की परीक्षा दे रहे थे । रुक्मिणी घर की बड़ी बहू बनकर आई । काम कुछ आता नहीं था क्योंकि घर में कभी किया ही नहीं था तीन भाभियों के बीच कभी काम करने का मौक़ा ही नहीं मिला परंतु अब काम तो सीखना ही था । एक ननंद थी जो एक दोस्त की तरह इन्हें सँभाल लिया था । उनसे ही बहुत सारे काम सीखे । रुक्मिणी तेज तर्रार थीं ग़ुस्सा तो नाक पर ही रहता था पर ससुराल में तो चुपचाप अदब से रहना पड़ता था । कुछ ही सालों में रुक्मिणी को अपने पति के साथ अलग अपना घर बसाने का मौक़ा मिला । 

पति की तनख़्वाह भी कम थी इतने बच्चों की पढ़ाई और आने जाने वालों के आवभगत आदि को सँभालना उनके बस की बात नहीं थी क्योंकि उन्हें तजुर्बा कम था । इसलिए आए दिन तकलीफ़ उठानी पड़ती थी । पिता की मृत्यु के बाद उनका मायके की तरफ़ लगाव बढ़ने लगा भाई भाभी सब रुक्मिणी से बहुत डरते थे माँ भी इनकी तरफ़दारी करती थी । घर में हमेशा मायके से कोई न कोई आते ही रहते थे । कॉलेज,यूनिवर्सिटी, हास्पिटल या शापिंग सबके लिए बुआ मौसी बहन ननंद कहते हुए लोग आते थे । यही रुक्मिणी जब ससुराल से लोग आते थे तो ग़रीबी का रोना रोती थी अब उनके मुँह से कोई बात नहीं निकलती थी । कुछ दिनों में बड़े बेटे की शादी हुई बहू से पहले ही दिन कह दिया गया था कि शादी हुई कि नहीं मायके को भूल जाना चाहिए । जो रुक्मिणी दिन रात अपने मायके के गुण गाती रहती है और अपने मायके वालों के आवभगत में लगी रहती है उसकी सोच इस प्रकार थी ।दिन बीतते गए रुक्मिणी ने पूरे घर पर अपना सिक्का जमाया ।पति ,बेटे ,बहू किसी की मजाल कि उनकी बात न माने । उनकी आज्ञा के बिना घर में एक पत्ता भी नहीं हिलता था । दिन इसी तरह अच्छे से (रुक्मिणी के लिए ) गुजर रहे थे । पति की मृत्यु के बाद उन्हें लगता था कि कोई उन्हें नीचा दिखाने न लगे जो कभी भी नहीं हो सकता पर रुक्मिणी के ख़याल से इसलिए उन्होंने अपना दबदबा बनाए रखने के लिये आए दिन घर में कोई न कोई हंगामा खडी करती थी । अब मायके में भी सिर्फ़ दो भाई और खुद रुक्मिणी बचे थे बाक़ी सब भगवान के पास चले गए थे । सब के घरों में माता-पिता नहीं बच्चों का राज चल रहा था । इसलिए रुक्मिणी को भी अब मायके में पूछता नहीं था पहले जो इनके आगे पीछे घूमते थे अब अपने घर के शादी ब्याह में भी फ़ोन ही कर देते थे कि आए तो ठीक न आए तो भी ठीक । यह बात उन्हें हज़म नहीं होती थी पर भाई भाभी भी खुद अपने बच्चों पर निर्भर थे तो अपनी बहन की क्या सुनते । पहले कभी रुक्मिणी के बच्चे जब अपने मामा लोगों के साथ सिर्फ़ हाय बॉय में रहते थे ...भाइयों की शिकायत पर वह कहती थी ,देखो..... भाई मेरे बच्चों पर मत जाओ ,मैं तो बात कर रही हूँ आप लोगों से ,मेराआप लोगों के साथ रिश्ता है ,फिर ये बच्चे बीच में कहाँ से आ गए ।उन्हें फ़ुरसत ही नहीं मिलती है तो उनकी तरफ़ ध्यान मत दो । 

अब आज रुक्मिणी के भाइयों का भी यही हाल है ,वे भी उसे यही समझाना चाहते हैं कि बच्चों पर ध्यान मत दो ,पर रुक्मिणी को ग़ुस्सा आ जाता है कि आजकल बच्चे बुआ को किसी भी फ़ंक्शन में नहीं बुलाते हैं , कल की ही बात है बड़े भाई के पोते की शादी थी ख़बर नहीं किया बाद में सॉरी कह दिया । 

सोच -सोच कर रुक्मिणी को बुरा लगता है ,कितना किया था इन लोगों के लिए पर आज कोई भी मुझे पूछता ही नहीं है ।इसीलिए पहले अपने परिवार के बारे में सोचना चाहिए फिर दूसरों के । मायके का मोह भी इतना न हो कि आप अपने घर को भूल जाएँ । इसीलिए कहते हैं “

अति का भला न बोलना ,

अति की भली न चूप 

अति का भला न बरसना ,

अति की भली न धूप “



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