Meeta Joshi

Inspirational Others

4.9  

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माया

माया

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"आ रही हूँ जी। बस दो मिनट। माया को खाना खिला दूँ, बस उसके बाद फ्री हूँ। "थकी-हारी मृदुला ने पति को दिलासा देते हुए कहा।

अवधेश उसके आने का इंतजार करने लगा। इसके अलावा कोई चारा भी न था। लाचार था, पिछले एक महीने से बिस्तर पर है, किडनी, हार्ट दोनों में परेशानी एक साथ पता लगी। सास-ससुर, बच्चे, पति, सबकी जिम्मेदारी मृदुला पर आ गई। एक जान हज़ारों काम।


बिटिया ने देखा माँ भाग-भाग कर सबका करने में लगी है। पापा को भी माँ की जरूरत है। दादा-दादी को खाना परोस मृदुला, माया के लिए खाना लाई तो अपनी मासूम सी शक्ल माँ की तरफ घुमाते हुए बोली, "माआआआआ....मैं....बलि...। "


मृदुला उसकी मासूम सी बात का मतलब समझ रही थी। जानती थी माँ को परेशान देख वो मदद करना चाहती है। आँखों में आँसू भर, प्यार से एक कोर तोड़ उसके मुँह में रख दिया, "जानती हूँ रे, तू बड़ी हो गई है, बहुत बड़ी, अपनी मम्मा की तकलीफ समझने वाली। अभी थोड़ी और बड़ी हो जा फिर...."लेकिन आज माया ज़िद्द में थी। मृदुला जी उसका मन नहीं मारना चाहती थीं इसलिए रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े तोड़कर, उसके आगे रख गईं, "ले खा। यही चाहती है ना तू, अपने आप खाकर मेरी मदद करना। "


बीच-बीच में देखती जा रही थी। दूर से देखा तो प्लेट खाली दिखाई दी, मुस्कुरा दीं। एक अलग ही तरह की खुशी उनके चेहरे पर थी।


पतिदेव के दर्द को समझ, उनके चेहरे पर खुशी लाने के लिए बोलीं, "सचमुच माया बड़ी हो गई है। देखिये ना, आज उसने खाना अपने आप खाकर मेरी मदद की। "


अब बहुत देर तक वो पतिदेव की सेवा में उलझी रही दवाई, सफाई, उनकी एक्सरसाइज। निश्चिंत थी, सभी को नाश्ता करवा चुकी थी। लगभग एक-दो घन्टे बाद खाली हुईं तो देखा, माया वहीं सो गई है। प्लेट उठाने लगीं तो रोटी के सारे गस्से नीचे बिखरे हुए दिखाई दिए।

एक टीस सी मन में उठी, "हाय मेरी बच्ची, भूखी सो गई। "रह-रह कर आँसू निकलने में थे।


माया हर बात से अंजान, निश्चिंत सो रही थी। सोती भी क्यों नहीं, सोचने जितनी तो क्षमता ही नहीं थी उसमें।

जी सही सुना आपने माया....भगवान ने नाम के अनुरूप माया ही रचा था उसे। चमचमाता हुआ चेहरा, ऐसा कि हाथ लगा दो तो मैली हो जाए। लाल-सुर्ख पतले-पतले होठ, काली-भौहें जो उसके चमकते चेहरे पर चार-चाँद लगा रही थीं। उंगलियाँ जैसे उनमें कोई जादू समाया हो लंबी, पतली, और उनपर खूबसूरत से गुलाबी रंग लिए नाखून। जो उसे एक बार देख लेता, तारीफ के बिना नहीं रह पाता।

प्यारी सी माया कोई छोटी सी बच्ची नहीं, बाईस-साल की बड़ी बच्ची है। भगवान ने भी उसके साथ माया ही रची । मृदुला जी को उसके होने से पहले पता चल चुका था कि बच्चे की ग्रोथ कम है। शारीरिक व मानसिक दोनों स्वास्थ.... और वही हुआ, बच्ची शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर पैदा हुई। लोग सामान्य भाषा में उसे मंद-बुद्धि कहते। एक बार तो महसूस हुआ जीवन अंधकारमय हो गया। जिसके भविष्य का कोई भरोसा नहीं, उसे किस आस में पालेंगे। कहते हैं ना छाती से लगाते ही ममता उमड़ पड़ती है, ऐसा ही मृदुला के साथ हुआ Msc, M Ed मृदुला तन-मन-धन से उस पर समर्पित हो गई। पति सास-ससुर सबने उसका साथ दिया।

जो देखता यही कहता, "माया की किस्मत है जो इस घर में जन्म लिया। "

छोटी सी बच्ची धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। जब माँ-बाप बच्ची को पार्क ले जाते तो बच्चों को खेलता देख, वो जोर-जोर से आवाज़ें करने लगती। बच्चे उससे डरते थे। लोग तरह-तरह की नसीहत देते। लेकिन मृदुला जी किसी की बातों से विचलित नहीं हुई, वो उसे रोज पार्क लातीं। आज एक बच्चा माया के पास में आया तो उसने बिल्कुल उसी अंदाज में उस बच्चे का गाल पकड़ा जिस अंदाज में उसके पापा उसे प्यार करने को पकड़ते लेकिन उसकी पकड़ इतनी तेज थी कि उसे छुड़ाना मुश्किल हो गया और बच्चा दर्द के मारे बुरी तरह रोने लगा ।

"क्यों लेकर आती है आप इसे पार्क में, किसी बच्चे को कोई नुकसान हो गया तो? वो तो नहीं समझती लेकिन आप तो पढ़ी-लिखी समझदार हैं । '

वो महिला नसीहत देने में लगी थी लेकिन मृदुला, वो तो अलग ही खयालों में उलझी थी । घर आते ही अवधेश को सारा किस्सा सुनाया।

"क्या कहना चाहती हो मृदुला?"

"यही कि आज माया का मैंने एक अलग ही रूप देखा। वो बच्चों को देखकर खुश होती है। बेशक वो अपनी भावना सही तरह से बच्चे तक नहीं पहुँचा पाई लेकिन वो प्यार को महसूस करना जानती है। "

मृदुला ठान चुकी थी जीवन में असम्भव कुछ भी नहीं। पूरी तरह से जुट गईं। बच्ची जैसे-जैसे बड़ी होती जा रही थी, उसका वजन बढ़ता जा रहा था। मृदुला उसे फिजियोथेरेपिस्ट की मदद से घंटों व्यायाम करवाती। नतीजा ये था कि सात-आठ साल तक आते-आते वो कमर के सहारे घंटो बैठने लगी थी, पाँव की एक्सरसाइज से इतना सम्भव हो पाया कि अब-जब वो अपने पाँव पर पाँव रख उसे चलाते तो वो कदम बढ़ा सहयोग करती।

हाँ मृदुला जी की सारे दिन की बातों का असर अभी दिखाई नहीं दे रहा था। जो देखता यही कहता, "बहुत मुश्किल है, जो बच्चा जन्म से ऐसा हो उसका सही होना असंभव है। बोलना तो नामुमकिन। "

लेकिन मृदुला ने अपने जीवन के सालों-साल उसकी सेवा में बिता दिए। कभी उफ न करती। हाँ दिनों-दिन उसका बढ़ता वजन अब थोड़ा परेशानी का विषय बनने लगा था, मृदुला की कमर और एड़ी में दर्द रहता। लेकिन मृदुला के पास ये सब तो सोचने की भी फुर्सत न थी।

समय बीतने के साथ-साथ माया भावनाओं को व्यक्त करना सीख रही थी। मृदुला कुछ खाती तो उसे चेहरे से एहसास करवाती खट्टा, मीठा, कड़वा, गंदा अच्छा तो वो माँ की भंगिमाएं देख ताली बजा जोर-जोर से हँसती।

"माया, देखो पापा....पापा आ गए"और ताली बजा हँसतीं तो माया भी माँ की नकल कर , पापा को ऑफिस से आता देख, जोर-जोर से हँसती। बच्ची का इंतजार देख अवधेश की सारी थकान दूर हो जाती। अब किसी के आने में, दादा-दादी को देख, वो ताली बजा अपने मन को अभिव्यक्त करना सीख गई थी।

एक दिन अचानक अवधेश की तबीयत बिगड़ गई। दो दिन हॉस्पिटल के चक्कर में बेटी पर बिल्कुल ध्यान न गया। आज वो घर वापिस आये, जैसे ही थकान से भरी मृदुला आकर बैठी माया ने पल्ला पकड़ कहा, "माँआsss...। "


उसके मुँह से माँ सुन, मृदुला के आँसुओं ने पूरा पल्ला भिगो दिया, "मेरी बच्ची माफ करना, तुझ पर ध्यान न दे पाई। "दूसरा शब्द था। "बली....। "

माँ ने पूरा करते हुए कहा, "माया बड़ी हो गई है। "

सच ही तो है, माया बड़ी हो गई है।

अतीत की स्मृतियों से बाहर आई तो ध्यान आया, माया बड़ी हो गई है, ऐसा तो वो कहती है और मैंने भी बिना सोचे-समझे रोटी तोड़कर उसके आगे रख दी। ये सोचकर कि खुद खाकर, खुद को बड़ा महसूस करती।मैं ये गलती कैसे कर गई कि मेज उसकी पकड़ से दूर थी और उसके हाथों में इतनी ताकत नहीं जो मेज सरका पाती। यही नहीं उसका दिमाग....वो कहाँ सोच पाता कि प्लेट आगे कर लूँ....। सर पर हाथ फेरा तो माया उठ गई। माँ को सामने देख जोर-जोर से ताली बजा खुश होने लगी।

मृदुला उसके मन को समझ रही थी। उसके सिर पर हाथ फेर बोली, "माया कितनी बड़ी हो गई है! सारा खाना आप्पी-आप्पी खा लिया लेकिन अब मम्मा को चैन नहीं मिलेगा इसलिए आपको अब मम्मा के हाथ से भी खाना पड़ेगा।" कह मृदुला ने उसे खाना खिलाया। अवधेश ने आँखें झपका मृदुला का समर्थन किया।

पति के सीने से लग सुबक कर बोली, "कौन कहता है मानसिक कमजोर बच्चे भावनाएं नहीं रखते। अरे वो तो आम इंसान से भी पाक सोच रखते हैं। हर हाल में खुशी बाँटने की सोच, देखिये ना माया बड़ी हो गई है। हमें हर परेशानी से मुक्त कर रखा है हमें उसके कन्यादान की चिंता नहीं करनी। वो जीवन भर हमारा साथ देगी अपनी मासूम निश्छल हँसी से हमें कभी बूढ़ा नहीं होने देगी। मैं भी वादा करती हूँ कभी अपनी बच्ची को अकेला नहीं छोडूँगी। जब तक दम है इसे सिखाती रहूँगी। जानती हूँ, बदले में ये जरूर कुछ नया कर दिखाएगी। "


मृदुला की मेहनत का असर ये था कि अब-जब वो माया को शाम को पार्क में ले जाती, तो बच्चे उससे अब डरते नहीं थे। उसके आते ही, "माया दी आ गई। "कह उसके आस-पास घेरा बना लेते और वो खुश हो अजीब-अजीब आवाज़ में ताली बजा खुद को अभिव्यक्त करती।

मृदुला अपनी माया के चेहरे की खुशी देख मन ही मन कहती "मेरी बच्ची तू मेरे जीने का सहारा है। मेरी ज़िंदगी की उम्मीद है। तुम्हारी माँ हमेशा तुम्हारे साथ है। तुम एक दिन जरूर बड़ी होओगी और मैं उस दिन तक हिम्मत नहीं हारूँगी।


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