माया महल
माया महल
इंद्रप्र्स्थ में युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में सम्मिलित होने आये दुर्योधन को पांडवों के द्वारा बनवाये गए माया महल देखने की बहुत उतकंठा थी क्योकि माया महल की बहुत ही चर्चा थी।
लक्ष्या गृह से बचने के बाद पांडव वन में ही रहने को विवश हो गए थे। एक दिन घूमते-भटकते पांडव द्रौपदी के स्वयंबर में पहुँच गए । स्वयंवर में एक ऊँचे स्तंभ के ऊपर एक धातु की मछली घूम रही थी और स्तंभ के नीचे एक कड़ाह में तेल खोल रहा था, उसे खोलते तेल में देखकर मछली की आँख का तीर द्वारा भेदन करना ही द्रौपदी से स्वयंवर की शर्त थी।
मछली की आंख भेदने के लिए कर्ण खड़ा हो गया उसके अंदर पूरी क्षमता थी कि वो स्वयंवर जीत जाए लेकिन द्रौपदी ने उसे स्वयंवर में भाग लेने से रोक दिया क्योकि नियति को कुछ और हो मंजूर था।
जब कोई भी राजा लक्ष्य भेदन न कर सका तो द्रौपदी के पिता ध्रुपद के द्वारा सभा में उपस्थित राजाओ को धिक्कारा गया। तब ब्राह्मण वेषधारी अर्जुन ने उठकर स्वयंवर में भाग लेने की अनुमति मांगी और लक्ष्य भेदन कर स्वयंवर जीत कर द्रौपदी से विवाह किया, परन्तु कुन्ती के आदेश के बाद द्रौपदी सरे पांडवों की रानी बन गई।
लक्ष्या गृह के समय द्रोपदी के साथ नही थी परन्तु कोरवो के द्वारा उनके साथ किये गए हर अन्याय से द्रौपदी प्रत्येक कौरव पर कुपित थी।
सुंदर माया महल देखने के लिए दुर्योधन सीना चौड़ा कर के महल में प्रविष्ट हुआ। वो अचंभित हो माया महल में चारो तरफ फैले अजूबो को देखने लगा। एक जगह वो दीवार से टकराते हुए बचा। उसकी हालत देख कर द्रौपदी को बहुत जोर की हंसी आ रही लेकिन उस ने आपने मुँह को दबा हंसी रोक ली। थोड़ी देर बाद द्रौपदी ने देखा कि दुर्योधन महल में एक स्थान पर जल से भरे स्थान को थल समझ कर भर्मित हो गया और उस जल में गिर पड़ा।
दुर्योधन की ये दुर्दशा देख कर द्रोपदी मन ही मन हंसी और उसे बहुत सुकून मिला कि जिसने उसके पतियों को जलाकर मारने की कोशिश की थी आज उसको कैसे अपमान का घूंट पीना पड़ रहा है। दुर्योधन की हालत देख कर द्रौपदी का जोर-जोर से हंसने का मन कर रहा था लेकिन उसने अपनी हंसी को मुंह में दबा लिया अपना बड़प्पन दिखाते हुए सैनिक को आदेश दिया, "राजकुमार को भवन जल से निकाल कर उनके विश्राम स्थल पर ले जाओ।"
दुर्योधन को बहुत गलानि महसूस हो रही है कि जिन पांडवो साथ उसने सदैव बुरा व्यवहार किया आज उनकी पत्नी द्रौपदी उसके उसके साथ इतना अच्छा व्यवहार कर रही है। उसे अपने सब षडयंत्रो पर गलानि हो रही थी, कहीं ना कहीं उसके मन में भरा विष भी कम हो रहा था और अपने भाइयों पांडवो के लिए उसके मन में प्रेम उपज रहा था।
