Shalini Badole

Romance

3  

Shalini Badole

Romance

मास्क वाला लव

मास्क वाला लव

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शहर में कल से चौदह दिनों का लॉकडाउन होने वाला था, जैसे ही मैसेज मिला मैंने अपना सामान समेटा और भागता हुआ रिलायंस फ्रेश पहुंचा।

अपने जरूरत का राशन, सब्जी और फल खरीदे फिर बिल के लिए लाइन में लग गया। लाइन काफी लंबी थी। मैं टाइम पास करने के लिए मोबाइल चला रहा था। भीड़ बहुत अधिक थी।

 तभी मेरे पास से टकराते हुए एक लड़की गुजर कर गई। एक जानी-पहचानी खुशबू मन को महका गई।

मोबाइल से नजर हटाई तो देखा पिंक कुर्ता और व्हाइट प्लाजो पहनी एक लड़की जा रही थी। वही डील-डौल, वही पीछे लटकती हुई लंबी चोटी, वही खुशबू, कहीं अन्वी तो नहीं ....

मैं उसका चेहरा देखने के लिए बेताब हो उठा। वो पास वाले काउंटर की लाइन में थी।

वह जैसे ही काउंटर पर पहुँची, आधा चेहरा मास्क से ढंका हुआ था, आँखों पर बड़ा सा चश्मा और ऊपर से कपाल और सिर को ढँकता हुआ स्कार्फ।

शायद उस दिन पहली बार शिद्दत से मास्क और कोरोना को दिल से कोसा था।

मेरा नंबर आते ही फ़टाफ़ट बिल बनवाया ।

पलटकर देखा तो वो मास्क वाली लड़की नदारद थी। बाहर आकर देखा तो वो लड़की अपनी पिंक स्कूटी पर सामान रख रही थी। मैं भागता हुआ आया तब तक वो मास्क वाली लड़की जा चुकी थी।

अपने इस बचपने पर मुझे हँसी भी आ रही थी।

मैंने भी अपना सामान बाइक पर रखा और निकल पड़ा। सोचने लगा वो लड़की अन्वी हो ही नहीं सकती।

पंद्रह बरस बाद भी वैसे ही थोड़ी रहेगी, अब तक तो दो बच्चों की अम्मा बन चुकी होगी, 35 की उम्र में इतनी फिट होगी क्या, और ऊपर से इस अनजान शहर में।

आज वो मास्क वाली लड़की मुझे अपने पुराने दिनों में खींचकर ले गई। अपना जयपुर शहर , अपना कॉलेज , अपने दोस्त जो सालों से पीछे छूट चुके थे।

लौटते समय बस अन्वी का चेहरा ही आँखों के सामने घूम रहा था। 2005 के बाद उसे देखा ही नही 15 बरस बीत गए। 

अन्वी से पहली मुलाकात कॉलेज में हुई थी। मेरी बचपन की दोस्त निम्मी ने मिलवाया था।

समर्थ इससे मिलो यह है अन्वी कुलकर्णी , नासिक से जयपुर आई है एमबीए करने के लिए। अपनी नानी के साथ रहती है। मेरे घर के सामने वाले घर में।निम्मी ने एक साँस में परिचय दे डाला।

समर्थ शर्मा...मैंने भी अपना नाम बताते हुए हाथ बढ़ा दिया। लेकिन अन्वी ने मुस्कुराकर हाथ जोड़ दिए।

निम्मी ने हंसते हुए कहा-स्मॉल टाउन गर्ल। निम्मी के इतना कहने पर अन्वी बस मुस्कुरा दी। पटियाला सूट पर बाँधनी दुपट्टा और कमर से नीचे झूलती चोटी, उसकी सौम्यता और सुंदरता ने दिल जीत लिया था-"इश्क वाला लव" हो गया था। 

फिर क्या था, हम रोज कॉलेज में मिलते, बातें करते अच्छी दोस्ती हो गई। अब मैं किसी ना किसी बहाने रोज निम्मी के घर जाने लगा। निम्मी मेरे पापा के दोस्त की बेटी थी और साथ ही मेरी बचपन की दोस्त भी।

फाइनल ईयर में वेलेंटाइन डे पर आखिर अन्वी से प्यार का इजहार कर ही दिया। 

अन्वी ने कहा समर्थ अगले महीने में एक्जाम है, पढ़ाई पर ध्यान दो।

फिर जाते-जाते कहने लगी, अबकी बार माँ-बाबा आएंगे तब तुमसे जरूर मिलवाऊंगी।

उसकी मुस्कुराहट बिना कहे भी सब कुछ कह गई।

लेकिन उसी दिन निम्मी ने सबके सामने मुझे प्रपोज़ कर दिया। यहाँ तक कह दिया कि हम बचपन के साथी हैं, एक दूजे को पसंद करते हैं और हमारे माता-पिता भी शादी के लिए तैयार हैं।

उस दिन के बाद अन्वी ने कभी मुझसे बात नहीं की। मेरे पास उसके घर का लैंडलाइन नंबर ही था। मगर कभी हिम्मत करके लगा नहीं पाया।

एक्जाम के दूसरे दिन ही वो अपनी नानी के साथ चली गई। फिर कभी जयपुर नहीं लौटी। मैं रोज उसके घर के चक्कर लगाता, ना उसका कोई पता था मेरे पास ना कोई फोन नंबर। कैसे बात करता उससे । हर समय यही सोचता रहा एक बार बात तो कर लेती अन्वी। अन्वी के बारे में घर पर भी क्या कहता।

इधर पारिवारिक दबाव के चलते मेरी शादी निम्मी से हो गई। निम्मी अन्वी से बिल्कुल विपरीत। अल्हड़ और मनमौजी

तभी ध्यान आया मैं अपनी टाउनशिप पहुँच चुका था। अपनी बाइक पार्क कर रहा था तभी मेरी नजर उस स्कूटी पर गई। गॉर्ड से पूछा तो उसने कान खुजलाते हुए कहा-अन्वी मैडम की है , 203 फ्लेट नंबर। आपकी बिल्डिंग में ही तो रहती है। मुझे किस्मत कनेक्शन अब समझ आया। वो मेरी अन्वी ही थी। यह "मास्क वाला लव" तो मेरा "इश्क वाला लव "निकला। मेरा मन मुझे धिक्कार रहा था, मैं एक साल से भोपाल में हूँ ,एक ही बिल्डिंग में होने के बाद उसे मिल नही पाया। पर मैं भी क्या करता, जबसे आया हूँ लॉक डाउन और वर्क फ्रॉम होम ही तो चल रहा है। ऊपर से यह अजनबी शहर भोपाल। ना कोई दोस्त ना रिश्तेदार। मेरा फ्लैट तीसरे फ्लोर पर था, इसलिए लिफ्ट से ही आना-जाना करता।

अब भी देर नहीं हुई, यह सोचकर घर गया समान रखा और फ्रेश होकर फ्लेट नंबर 203 के सामने खड़ा था। सोच रहा था यदि अन्वी के पति ने दरवाजा खोला तो, यदि अन्वी ने मुझे पहचानने से मना कर दिया तो...यह सब सोचते-सोचते डोरबेल बजाने की हिम्मत जुटा ही रहा था कि दरवाजा खुला, सामने अन्वी की नानी खड़ी थी।

नानी को प्रणाम करते हुए कहा- नानी पहचाना मुझे, मैं समर्थ शर्मा जयपुर से, अन्वी का दोस्त।

नानी पहचानने की कोशिश कर रही थी तभी अन्वी आ गई। अपने गीले बालों को सुखाते हुए। 

मुझे देखकर चौक गई, अंदर नहीं बुलाओगी अन्वी।

उसने दरवाजा खोलते हुए अंदर आने का इशारा किया। अंदर आया तो नानी ने मुझे पहचान लिया फिर मेरे सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देकर अंदर चली गई।

समर्थ कैसे हो...अन्वी ने पानी का गिलास देते हुए कहा। मैं ठीक हूँ ,तुम बताओ ,तुम बिना मिले क्यों चली आई, ना ही बाद में कांटेक्ट करने की कोशिश की, तुम्हारे पति यहाँ भोपाल में हैं?

मैंने अन्वी पर सारे सवाल एकसाथ दाग दिए।

अन्वी ने कहा- मैंने शादी नहीं की, नानी के साथ रहती हूँ।

मेरी एक्जाम के बाद मां-बाबा मुझे लेने आ रहे थे , तभी उनका एक्सीडेंट हो गया। वे दोनों चल बसे। मैं एक्जाम खत्म होने के दूसरे दिन ही जयपुर से नासिक आ गई।

मानो मेरी दुनिया ही उजड़ गई। मेरे छोटे भाई की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। नानी हम दोनों को छोड़कर फिर कभी जयपुर नहीं गई। पापा बैंक में थे तो अनुकम्पा नियुक्ति मुझे मिल गई। 

खुद को संभालते 6 माह बीत गए फिर मैंने एक दिन निम्मी के घर फोन किया तो उसकी आन्टी ने बताया, उसकी तुम्हारे साथ शादी है। उसके बाद फिर हिम्मत नहीं जुटा पाई तुमसे बात करने की। अन्वी की पलकें भीग गई।

खुद को संभालते हुए अन्वी ने पूछा -समर्थ कहाँ है निम्मी, वो भी यही हैं। 

नहीं, शादी के 2 माह बाद ही हमारा तलाक ही गया। मैं उसे दिल से अपना ही नहीं पाया या सच कहूं तो तुम्हें भूला ही नहीं पाया।

समर्थ ...तुम इतना प्यार करते हो मुझसे। अन्वी ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा।

15 साल हमने इस ख्याल से गुजार दिए कि हम दोनों खुश होंगे। अन्वी कहते-कहते रो पड़ी।

माहौल को हल्का करते हुए मैंने पूछ ही लिया -15 साल बाद इतनी फिट कैसी हो।

इसका राज बताओ...

अन्वी ने कहा -क्लब हाउस में सुबह-सुबह आ जाना। योगा क्लास चलाती हूँ वहां ।

कहते-कहते अन्वी हॅंस पड़ी।

वही सौम्यता ,वही मुस्कान। एक बार फिर 

प्यार हो गया है अन्वी पर अबकी बार "मास्क वाला लव'।

कहते-कहते अन्वी को मैंने अपनी बांहों में ले लिया।



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