Shalini Badole

Drama

5.0  

Shalini Badole

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नई कहानी

नई कहानी

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निकिता कालेज से जैसे ही निकली ,घड़ी में टाइम देखकर बोली अरे तीन बज गए,आज फिर लेट हो गई। माँ कितने दिनो से मार्केट जाने का कह रही है, रोज 4 बज जाते हैं। 

चिलचिलाती धूप में निकिता ने स्कूटी उठाई और कहा घर जाकर माँ से नींबू का शरबत बनवाऊँगी और फिर फ्रेश होकर मार्केट ले जाऊँगी।

लेकिन निकिता ने स्कूटी से जैसे ही घर के बरामदे में प्रवेश किया तो देखा घर के अंदर से हँसी-ठहाको की आवाज आ रही है। जरूर बुआ आई है। यह सोचते सोचते जैसे ही अन्दर आई-देखा घर के अंदर पूरी महफिल जमी थी। बुआ - फूफाजी,चाचा-चाची,

ले निकिता अब तेरा सारा प्लान चौपट - निकिता मन ही मन बुदबुदाई।

लो भाई अब निक्की भी आ गई- सुमन इसे अपना नया फोन दिखाओ। हमारी निक्की इन सब कामों में एक्सपर्ट है- दादी ने कहा।

अरे दादी सांस तो ले लेने दो, आपको पता भी है , बाहर कितनी धूप है। निक्क़ी ने झुंझलाते हुए कहा।

अंदर से आने वाली चाय की खुशबू बता रही थी माँ रसोई में है। हमेशा की तरह।बाकी सब गपशप कर रहे है। बस मेरी माँ का किचन ही नही छूटता।निकिता मन ही मन झुंझला रही थी।

तभी माँ ट्रे हाथ मे लेकर रसोई से बाहर आती है। दादा दादी के लिए चाय। पापा और फूफाजी के लिए काफी। बाकी सबके लिए नींबू का शरबत ।

निककी हाथ - मुँह धो ले तेरे लिए भी शर्बत बनाया है- माँ ने कहा।

निकिता सोचती रही माँ बिना कुछ कहे कैसे सब समझ जाती है।

शरबत पीते - पीते बुआ अपना मोबाइल दिखाती है। पूरे 15000 का है, तेरे फूफाजी ने गिफ्ट दिया है।

निकिता ने फोन के फीचर्स देखे और कहा... बुआ बहुत अच्छा है।

यह कहकर उसने अपनी माँ की तरफ बढ़ा दिया...माँ ने जैसे ही मोबाइल हाथ मे लिया,

पापा ने तुरंत अपनी प्रतिक्रिया देते हए कहा...अरे उसे क्या बता रही है, उसे तो abcd भी नही पता।

बस फोन रिसीव कर लेती है, ये क्या कम है...

पापा के इतना कहते ही माँ बिना कुछ कहे मोबाईल बुआ को थमाकर,सारे खाली गिलास कप समेटक़र किचन में चली गई।

चाची मौके को भाँप गई और तपाक से चुटकी लेते हुए बोली - भैया अब भाभी को भी एक स्मार्ट फोन दिलवा दो। कब तक वह छोटा सा मोबाइल यूज करेगी,अरे आजकल कामवाली बाई भी बड़े-बड़े मोबाइल रखती है।

चाची के मन मे माँ के प्रति कोई सहानुभूति नही थी।बस माँ को नीचा दिखाने में कोई कसर नही छोड़ती थी।

चाची के इतना कहते ही पापा फट गए...अरे ये मोबाइल का क्या करेगी, दिन भर चूल्हे-चौके में घुसी रहती है, स्मार्ट फोन स्मार्ट महिलाओं के लिए बने हैं। जो वर्किंग हो। तुम्हारे और दीदी जैसी।अनपढ़ गँवार लोगो के लिए नही, जिनको अंग्रेजी की बारहखड़ी भी ना ढंग से आती है।

पापा के मुँह से निकलते शब्द जहर बुझे तीरों की तरह निकिता को चुभ रहे थे। सो निकिता उठकर अपने कमरे में चली गई।

निकिता को अपनी माँ के साथ हुए इस बर्ताव का बहुत बुरा लग रहा था। वह निकालना चाहती थी अपनी माँ को इन तानों-उलाहनों के जाल से। वह अब ओरअपनी माँ को अपमानित होते हुए नही देख सकती। पहले सोचा क्यों ना माँ जॉब करे जिससे वह वर्किंग वूमेन बन जाये ताकि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बने और इन घर के झमेलों से बाहर निकलकर खुले में साँस ले। फिर घर पर भी सबको माँ की अहमियत पता चलेगी।

लेकिन एक अच्छी जॉब के लिए अच्छी क्वालिफिकेशन चाहिये और माँ तो हायर सेकेंडरी पास है। 

निकिता ने सोच लिया था माँ को उसका खोया आत्मसम्मान लौटाना। सो उसने सोचा पहले माँ को किसी ओपन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करवाया जाए। बस शाम को अकेले में माँ से निकिता ने ग्रेजुएशन वाली बात छेड़ दी। 

माँ तुम्हारी हायर सेकेंडरी की मार्कशीट मुझे दे दो। मैं कल ही फार्म डाल देती हूं। निकिता ने कहा।

निकिता की बात सुनकर माँ बोली पागल हो गई हो निक्की.... अब हमारी पढ़ने -लिखने की उम्र है क्या।

निकिता ने अपनी बात को और मजबूत करते हुए कहा...पढ़ने की कोई उम्र नही होती। मैं तुम्हे और अपमानित होते हुए नहीं देख सकती।

अरे तुम भी ना...पापा की बातों को गले लगा लेती हो। वो जुबान से कड़वे है मगर दिल से बहुत अच्छे।माँ ने झूठी मुस्कान के साथ निकिता को समझाते हुए कहा। निकिता ने सोचा माँ ऐसे नही मानेगी। इसलिए अपने भाई निकेत की मदद से माँ के कमरे में रखा माँ का संदूक चुपचाप से ले आई। रात में दोनो ने उसका ताला तोड़ा।

जब संदूक खोला तो निकिता अचंभित थी...क्योंकि उसमें उसकी माँ का पूरा अतीत बिखरा हुआ था।

एक पुरानी फाइल, एक एलबम और एक सुंदर सा नक्काशीदार गोल डिब्बा, और एक थैली में लिपटी हुई एक ड्रेस।

निकिता के भाई निकेत ने कहा... दीदी ये सब क्या है....मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा।

निकेत मुझे खुद को कुछ समझ नही आ रहा है ,हतप्रभ सी निकिता ने कहा।

डिब्बे को खोला तो उसमें एक जोड़ी सुन्दर से घुंघरू थे।

ड्रेस देखी तो ...निकेत चिल्लाया ,अरे दी यह तो वही ड्रेस है ना जो भरतनाट्यम में पहनते हैं।

हाँ यह वही है पर तुम धीरे बोलो माँ जाग जायेगी। निकिता ने फुसफुसाते हुए कहा।

फिर दोनों ने एलबम खोला - एलबम में माँ के स्टेज परफॉर्मेंस के कई फोटोग्राफ थे। साथ ही अवार्ड और ट्रॉफी लेते हुए भी।

निकेत ने कहा-हमारी माँ भरतनाट्यम नृत्यांगना है।और ये सच आज हमारे सामने इस तरह आ रहा है।

निकिता एकदम चुप थी। जैसे ही उसने फाइल खोली...सबसे ऊपर खैरागढ संगीत विश्विद्यालय की स्नातकोत्तर की डिग्री थी - प्रथम श्रेणी में भरतनाट्यम के साथ।

निकिता और निकेत दोनों की आँखों से आंसू बह रहे थे।

तभी माँ आ गई, वह जान गई कि आज उसका अतीत बच्चो के सामने था, उसने कहा बच्चो आज तुम्हारे मन मे कई तरह के सवाल होंगे, मैंने जिस समय मे संगीत में एम. ए. किया ,उस समय में अच्छे घर की लड़कियाँ नृत्य नही करती थी। तुम्हारे नाना ने मुझे पढ़ाया लेकिन समाज से छुपाकर। उस समय पिताजी की पोस्टिंग खैरागढ में थी और वहाँ हमारे कोई रिश्तेदार भी नही थे।

जब तुम्हारे पापा से शादी की बात चली तब तुम्हारे दादाजी-दादीजी ने शर्त रखी थी कि यह बात राज रहेगी। तुम्हारे नाना-नानी इतने अच्छे रिश्ते को खोना नही चाहते थे। इसलिए हाँ कर दी।

तुम्हारे पापा भी यह सच नही जानते, इतना कहते-कहते माँ रो पड़ी।

निकिता-निकेत भी माँ से जाकर लिपट गये।तभी लगा पापा ने आकर सबको अपनी बाँहो में भर लिया और कहा , निर्मला तुमने मुझसे इतनी बड़ी बात छुपाई।

माँ ने कहा - मुझे माफ़ कर देना ,मैंने तो अपने बाबा का वादा निभाया।अरे माफी तो मुझे तुमसे माँगनी चाहिये। अनजाने में क्या-क्या बोल गया तुम्हें ।

चलो "बीती ताही बिसार दो अब आगे की सुधी लो।

निकिता अब हम जल्दी ही एक नाट्य विद्यालय खोलेंगे.....जिसकी संचालक तुम्हारी माँ होगी।

पापा की बात खत्म भी नही हो पाई थी कि माँ ने कहा-लेकिन सासु माँ और बाबा...

पापा ने कहा -उन्हें मैं मना लूँगा,आखिर इन बीस सालों में तुम्हारा त्याग और सेवा उन्होंने भी तो देखी है।

अब तुम्हारे जीवन का एक नया अध्याय प्रारम्भ होगा।अब तुम अपने लिए ,अपने सपनों के लिये जियोगी।

क्यों बच्चो सही कहा ना मैंने। पापा ने हँसते हुए कहा।

निकिता बोली-हाँ एक नई सुबह, एक नया जीवन।



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