"घर में जंगल"
"घर में जंगल"
पर्यावरण बचाओ.....
पुश्तैनी दीवान ने अपने नज़दीकी सोफे से पूछा-यह सब
क्या हो रहा है? मैं तो बरसों से इसी जगह पर रखा हुआ हूँ। आज मेरी जगह क्यों बदली जा रही है?
सोफे ने कहा हाँ भाई दीवान ! मुझे तो पता है आज घर में इतनी हलचल क्यों है और हमें अपनी जगह से क्यों हिलाया जा रहा है।
तुम कहाँ ऊँघते रहते हो आजकल?
पहले तो बड़े चौकन्ने रहते थे। लगता है तुम भी अब सठिया गए हो...
सोफे ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।
मेरी छोड़ो यह बताओ -हमारे परिवार में कौन आ रहा है ? जिसकी स्वागत की तैयारी की जा रही है। दीवान ने सोफे को झिड़कते हुए कहा।
सोफे ने कहा- अरे भाई! दादाजी की रीढ़ की हड्डी में दर्द रहता है, इसलिए एक शीशम की लकड़ी की आरामदेह कुर्सी ऑनलाइन आर्डर की है उनके बेटे ने।
तो फिर उनकी पुरानी कुर्सी का क्या होगा? दीवान ने चिंतित स्वर में कहा।
अरे भाई! वह तो ओअलएक्स पर कब की बिक चुकी है। एक-दो दिन में ले जायेंगे उसे। सोफ़ा जानकारी देते हुए बोला।
दीवान बोल उठा-अच्छा! तभी वह मायूस सी कोने में पड़ी है।
मालकिन होती तो उसे कभी नहीं बेचती। आखिर उनके मायके से आई थी बनकर।
तभी नई कुर्सी आ गई। टीवी के सामने वाली दीवार से लगाकर उसे रखा गया।
दीवान ने पूछा- बड़ी मायूस सी लग रही हो, किस जंगल से आई हो। कुर्सी ने रुआँसे स्वर में कहा- आंध्र प्रदेश के जंगल से आई हूँ। मैं इतनी दूर आई हूँ ,एकदम नई जगह है मेरे लिए।
सोफे ने कहा- कुर्सी बहन , चिंता ना करो।
अब तुम हमारे परिवार का हिस्सा हो।
दरवाजे, खिड़कियों, मेज ,क़िताबों की अलमारी सबने ज़ोरदार तालियों से कुर्सी का स्वागत किया।
कुर्सी मुस्कुरा उठी।
दीवान ने कहा - बेटी यह आदमी भी अजीब है। इसने अपने घर में ही जंगल बना लिया है। जंगल काटता है और घर सजाता है। फिर प्रकृति प्रेमी होने का ढोंग रचाकर गमलों में पौधे लगाता है। अब बताओ इन छोटे पौधों और पेड़ों की क्या बराबरी?
पूरा फर्नीचर परिवार मानवीय मूर्खता पर ठहाके मार रहा था।