अधूरा खत
अधूरा खत
हर बार मीरा की दी गई किताबों से आने वाली मेंहदी की खुशबू से चिढ़ने वाली मैं आज उसकी मेंहदी की खुशबू को मानो महसूस करना चाहती थी।
हर बार चिढ़ कर कहती थी मीरा ने ना जाने कितना मेंहदी का तेल किताबों को पिलाया है, खुशबू जाने का नाम ही लेती। सुगंध इतनी तीव्र थी कि कई बार मेरा सिरदर्द होने लगता। आने दो इस बार मीरा को, जमकर खबर लूँगी। क्या खुशबूदार तेल लगाया मीरा, कहाँ से मँगाया था, किताबों को धूप दिखा दी लेकिन फिर भी खुशबू जा नहीं रही...लेकिन आज मानो मीरा के जाते ही मीरा के हाथों की खुशबू भी मद्धम हो गई हो, वह भी कही गुम हो गई हो मीरा की तरह...
मीरा मेरी बचपन की दोस्त, सुन्दर, नाजुक, शर्मीली सी लड़की।अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाली।इतना कम बोलती थी मानो शब्द नहीं अनमोल मोती हो जो झर जायेंगे। उम्र और कक्षा में एक साल मुझ से बड़ी। हर बार उसकी किताबें और नोट्स मुझे बिन माँगे मिल जाते थे। पढ़ना चाहती थी वो, डॉक्टर बनना चाहती थी। अभी अठारह की पूरी भी नहीं हुई थी । लेकिन गाँव में 17-18 साल में बेटियों का विवाह आम बात होती है, 10 वी, 12 वी पास हुई नहीं कि चढ़ा दो डोली में। उनके सपने, उनका भविष्य बिना पूछे दाँव पर लगा दिया जाता था। मीरा के साथ भी तो यही हुआ था..लेकिन सुबह- सुबह आई एक अप्रत्याशित ख़बर से पूरे गाँव में सन्नाटा फैल चुका था। मीरा ने आत्महत्या कर ली ...पूरा गाँव हतप्रभ था, अभी कुछ ही दिन तो हुए थे, नव वधू के रूप में आई थी अपने पति के साथ 12 वी का रिजल्ट लेने। प्रथम श्रेणी में पास हुई थी।
आखिरी 2 पेपर तो दुल्हन बनकर दिए थे उसने...फिर भी अच्छे नम्बरों से पास हुई थी। पिछली बार जब आई तो मैंने उसकी आँखों में खुशी की चमक देखी थी, उसने मुझसे लिपटकर कहा था "पूजा नीरज बहुत अच्छे है, मेरा बहुत ध्यान रखते है। मुझे आगे पढ़ाना चाहते हैं।" मीरा के मुँह से अपने पति के लिए यह बातें सुनकर मेरा दिल भर आया। तभी पापा ने आवाज़ लगाई ..."पूजा अपनी मम्मी से कह दो मेरा बैग तैयार कर दे। मैं मीरा के पापा के साथ इंदौर जा रहा हूँ।" मन तो कह रहा था, मैं भी आखिरी बार अपनी दोस्त से मिल आऊँ, पूछ लूँ आखिर क्या वजह थी, इतना बड़ा कदम क्यों उठाया ?
कहीं विशाल तो नही....? पर ऐसा कैसे हो सकता है, उनके बीच तो सबकुछ खत्म हो चुका था, अगर ऐसा कुछ होता तो मीरा मुझसे ज़रूर कहती। पर उसने तो शादी के बाद ज़ुबान पर विशाल का नाम भी नहीं लिया था। फिर क्या हुआ होगा... ऐसा जो मीरा को दुनिया से जाने को मजबूर कर गया। आज वह जहर का प्याला पीकर सच में मीरा बन गई थी अपने नाम के अनुरूप।
11 वी कक्षा में थी मीरा जब मैंने उसे खत लिखते हुए रंगे हाथों पकड़ा था...अच्छा तो प्रेम पत्र लिखा जा रहा है ,यह कहते ही मैंने उसके हाथों से खत छीन लिया। वह प्लीज-प्लीज कहकर खत के लिए गिड़गिड़ाने लगी। मैंने भी हँसते हुए कहा...जरा पढ़ तो लेने दो... फिर लौटा दूँगी।
Dear Vishal...विशाल का नाम पढ़ते ही मेरी हँसी छूट गई। तुझे और कोई नहीं मिला। एक नंबर का आवारा और निठल्ला है। हर आती-जाती लड़की पर लाइन मारता है। मीरा ने कहा -"पागल हो गई हो पूजा, कुछ भी बोलती जा रही हो।" "अरे उन्होंने हमें प्रपोज किया है, बेहद प्यार करते है हमसे, हमसे शादी करना चाहते है।" "लो बात यहाँ तक पहुँच गई और खबर तक नहीं लगी। मैंने हँसकर कहा।"
फिर क्या था, उसकी हर बात में विशाल था। उसके सपनों में विशाल था। उसके जज्बातों में विशाल था। हर रोज उसे प्यार से खत लिखती और मैं कहती पागल मत बन मीरा...अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। ये महज आकर्षण है कोई प्यार व्यार नहीं। मगर मीरा कहाँ सुनने वाली थी, उसके दिये गुलाब की सूखी पंखुड़ियों को भी अपनी किताबों में संभालती रही। समय बीतता गया... एक दिन मीरा के लिए एक अच्छे परिवार से रिश्ता आया। लड़का एल.एल. बी. के अन्तिम वर्ष की पढ़ाई कर रहा था। लड़के के पिता भी वकील थे।लड़का भी देखने में अच्छा था। फिर क्या, मीरा के पिता ने आनन-फानन में रिश्ता तय कर दिया।
मैंने मीरा से हँसते हुए कहा..."लो जी आखिर नीरज को देखकर फिसल ही गई। 2 साल का प्यार 2 मिनट में फुर्र हो गया। हाँ भी कर दिया।"
"पूजा मुझसे मेरी मर्ज़ी पूछी कब गई" - मीरा ने कहा, उसके स्वरों में दर्द साफ झलक रहा था। "फिर आगे क्या सोचा है मीरा रानी।"
मैं विशाल के साथ भागकर शादी कर लूँगी। फिर सब ठीक हो जाएगा,यहाँ से कहीं दूर हम अपनी दुनिया बसायेंगे, दूर बहुत दूर,यह कहते-कहते उसकी आँखों में सपनों का इन्द्रधनुष बनने लगा। उसकी आँखों की इंद्रधनुषी चमक अभी भी याद है मुझे। "भाग जायेंगे... मैंने कड़क आवाज़ में कहा। "अपने पापा-मम्मी के बारे में सोचा भी है, उनका क्या होगा?"
मीरा ने लंबी सांस लेते हुए कहा-"पूजा उन्होंने कभी मेरे बारे में सोचा है।" आज उसकी बातों से बगावत साफ झलक रही थी। दूसरे दिन ही वो विशाल से मिली ..घर से भागने के लिए मगर विशाल का जवाब मेरी सोच के अनुरूप ही निकला। "मीरा तुमने तो मेरी बातों को सीरियसली ले लिया।" विशाल ने कहा। "हमारी उमर ही ऐसी ही है, जो लड़की मिली उससे प्यार हो जाता है। वैसे भी तुम्हारा और मेरा क्या मेल...मैं ठहरा ब्राह्मण लड़का और तुम"...यह कहकर विशाल चलता बना।
मीरा ने मेरा हाथ पकड़कर कहा "पूजा तुम सही थी और मैं गलत।" पूरी रात अपनी गलती पर पछताती मीरा रोती रही। लेकिन फिर कभी उसके मन में विशाल के बारे में कोई ख्याल नहीं था। वो हरदम किताबों में खोई रहती। किताबों से ध्यान आया - कहीं मेरे मन में उठते हुए सवालों का उत्तर उसकी किताबों में तो नहीं। बाहर देखा तो शाम हो चुकी थी। दिन कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला। तभी पापा की आवाज़ सुनाई दी दौड़कर गई-देखा पापा भी काफी उदास दिख रहे थे। उनकी हालत देखकर कुछ ना पूछना ही मुनासिब समझा। तभी दादाजी ने पूछ लिया "क्या हुआ था।कुछ पता चला।"
पापा ने कहा- "मीरा का सुसाइड नोट मिल गया था", उसने लिखा था -"पापा यह सब मेरी ग़लती है। मुझे माफ़ करना।"
"किसी लड़के ने प्रेम पत्र भेजा था मीरा को। इस बात पर रात को झगड़ा हुआ था मीरा और नीरज का। रात को वह छत पर चली गई। सुबह देखा तो मीरा छत पर मृत पड़ी थी।" यह कहते-कहते पापा भी रो पड़े।
मैं भी मुँह छिपाकर अपने कमरे में आ गई। रोते-रोते किताबों को समेटने लगी। तभी एक किताब से एक कागज़ के टुकड़ा गिरा।
उसमें लिखा था..."मीरा मैं जानता हूँ तुम मुझसे अभी भी प्यार करती हो। यदि हाँ तो जवाब मत देना और यदि ना तो इसके पीछे ना लिखकर भेज देना।
तुम्हारा विशाल"
मैंने जैसे ही उसके पीछे देखा- मीरा ने बड़े-बड़े अक्षरों में ना लिखा था..."तुम आगे से मेरे जीवन में कोई हस्तक्षेप मत करना। सच्चा प्यार क्या है-अब मैने जाना है। तुम जैसे..."
ऐसे लग रहा था मानो उसका खत अधूरा रह गया। काश... अधूरा ही सही यह खत मीरा विशाल तक पहुँचा देती तो आज मीरा तुम हमारे साथ होती...हमारे पास।

