मारीचिका
मारीचिका
सुधीर अंधेरी गली के मोड़ पर खड़ा उनके आने की प्रतीक्षा कर रहा था। सर्द हवा चल रही थी फिर भी बार बार वह पसीना पोंछ रहा था। वह यह काम नहीं करना चाहता था। किंतु वह उस मुकाम पर खड़ा था जहाँ से पीछे हटना मुश्किल था।
वह उस दिन को याद कर पछता रहा था जब वह आसानी से पैसे कमाने के लालच में उसने गलत संगत को अपना लिया था। आरंभ में उसे बहुत मजा आ रहा था। पर धीरे धीरे वह इस दलदल में धंसता गया। अब तो वह पूर्णतया इन लोगों के हाथ की कठपुतली बन चुका था।
तभी उनके स्कूटर की आवाज़ सुनाई पड़ी। उसने फौरन पिस्तौल निकाल ली। उसने निशाना लिया पर उसके हाथ कांप रहे थे। गोली चली पर निशाना चूक गया।
वह घुटनों के बल गिर पड़ा और फूट फूट कर रोने लगा। आज पैसों के लालच में वह एक ईमानदार आदमी को मारने जा रहा था।