मानसून
मानसून
एक शाम, मैं ऑफिस से घर लौट रहा था..काम का बोझ...और बॉस की डांट सुन के मेरा सर भारी हो रहा था...और मानसून भी मुझसे नाराज था...
मुझे आज फिर डांटने आ गया कमबख्त। बारिश होने ही वाली थी, मैंने ऑटो वाले से जल्दी करते हुए कहा,
"भइया थोड़ा जल्दी चलो न..." जब तक बारिश शुरू हुई तब तक मैं घर पहुंच गया...गुस्से से मानसून मुझे घूर रहा था, और मैंने मानसून से कहा,
"मुझे डांट पाना इतना आसान नहीं..ह्म्म्म।" खिड़कियों से मानसून मुझे गुस्से से लाल होकर देख रहा था,
"नफरत है मुझे तुमसे..."
मैंने मानसून से कहा
बड़ा अड़ियल है मानसून कमबखत जाने का नाम ही नहीं ले रहा था, बड़ा चालक हो गया है ये आज कल, ...जब मुझे डांट नहीं पाता तो अक्सर इमोशनल ब्लैकमेल करता है कमबख्त।
बारिश हल्की हो गयी थी....तब तक मैंने अपने लिये चाय बना लिया था, अदरक वाली चाय, 2 चम्मच शक्कर के साथ..बालकनी में बैठा..चाय लिए,
सोच ही रहा था की तभी....बारिश ने छोटे बच्चे की तरह गले लगा लिया मुझे...हिम्मत देख रहे हो बरखुर्दार की।
(एक लम्बी सांस लेते हुए आखिरकार उसे गले से लगा ही लिया)
हल्की हल्की बूँदे मेरे चेहरे पर गिरी...और हाथ में चाय........कुछ याद आया, 'अतुल'...?
जैसे मानसून ने अचानक से कोई सवाल किया हो..?
मैं कैसे भूल सकता हूँ, वो हर एक शाम, जब जब मैं तुम्हारे साथ था..अकेले रहता जरूर हूँ, लेकिन अकेले रह कर भी महसूस कर लेता हूँ तुम्हें........
अब कैसे बताऊँ तुम्हें..कभी बारिश की बूंदें बनकर भिगा जाती हो, तो कभी चाय की गर्माहट बनकर समा जाती हो।
बस ऐसे ही रहता हूँ.....अपने इस दिल के सुनसान शहर में......जहां कोई रास्ता नहीं है, जहां कोई शोर नहीं है...मैं अकेला........बिल्कुल अकेला........तुम्हारी यादों के साथ और आज क्यों आयी तुम इतनी पास...हमने वादा किया था न...दोबारा मिलने की भी कोशिश नहीं करेंगे...
फिर क्यों? आज आखिर 1 महीने होने को है और एक महीने बाद क्यों?
(आह भरते हुए)
-"एक बार सोच लिया होता अलग होने से पहले..?"
-"यूँ नजर फेर के चली गयी थी तुम, एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा था, कितने सारे मैसेज, कॉल किया लेकिन कोई जवाब नहीं, यहाँ तक की घर गया,
तुम तो मिलने को तैयार नहीं थी, बस स्टॉप तुम्हारा वेट करते करते न जाने कितनी बस निकल जाती थी, कितनी बार ऑफिस नहीं गया.."
(कुछ देर की खामोशी के बाद)
वो शाम ही मनहूस थी...मैंने चाय का कप एक झटके से तोड़ के अंदर चला गया....(गुस्से से)
-"चले जाओ यहाँ से !"
(मैं चिल्लाते हुए मानसून को बोला)
-"क्यों आये हो यहाँ...."
-"वो मुझसे नही मिलना चाहती..."
-"नहीं प्यार करती..."
मैं अकेले कमरे में लाइट ऑफ करके लेट गया...मानसून जा रहा था..बिना कुछ कहे, शायद मैंने ज्यादा डांट दिया उसको, कुछ देर बाद बारिश बन्द हो गयी...और मैं सो गया...
अगली सुबह मैं ऑफिस के लिए निकला, बस स्टॉप पर मैं पहुंचने वाला ही था, लेकिन मेरे पहुँचने से पहले...मानसून पहुंच गया....
-"यहाँ क्या करने आये हो..."
मैंने गुस्से से मानसून से बोला...मानसून और तेज़ हो गया...मैं चाय की दुकान पर एक चाय लेकर पीने लगा...मानसून ने आखिरकार अपना फर्ज निभा दिया...उस मनहूस शाम जब मैं और कंचन अलग हुए थे, जिसका गवाह मानसून ख़ुद था, आज मानसून ने अपने गुनाह की माफ़ी मांग ली है।
हां, शायद मैं बस का वेट ही कर रहा था, तभी मेरी नजर अपने बाई ओर गयी, मैंने देखा की कंचन तो मेरी ही ओर आ रही थी...मेरा दिल बैठा जा रहा था..
मैंने किसी तरह नॉर्मल रहने की नाकाम कोशिश की।
-"अतुल चलो तुमसे बात करनी है..."
अधिकार भरे हुए शब्दों के साथ उसने मुझसे कहा, मैं न चाहते हुए भी उसके साथ चल दिया...
-"कंचन, अब क्या करने आयी हो ?"
मैंने थोड़ा गुस्से में बोला,
-"मुझे माफ कर दो अतुल!" "मुझे समझना चाहिए था, "
"मुझे किसी और की बातों में नहीं आना चाहिए था, "
"I am sorry"
कंचन का गला भर आया...मैंने उसको गले लगा के बोला "मैं तो कभी भुला ही नहीं पाया कंचन तुम्हें !"
हमने पिछली बातों को भुलाना ही सही समझा...और एक नई शुरुआत करने की सोची..
हल्की सी धूप की रोशनी पेड़ो से होकर पैरों तक पहुंच रही थी...
जैसे मानसून भी बोल रहा था ।
"I am sorry"

