Gaurav Shukla

Tragedy

4.0  

Gaurav Shukla

Tragedy

तुलनात्मक तलवार

तुलनात्मक तलवार

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गाँव माखनपुर...!किसी भी फ़सल का नाम लीजिए!

पैदावार में सबसे ऊपर माखनपुर का नाम ही आएगा...!

अरे !

अरे !

ये मैं नहीं कह रहा....ये ख़बर तो आज के अख़बार में लिखी हुई थी...!

मैं तो बस दादा जी को पढ़ का बता रहा था।

मूंछों को शिखर पर रखते हुए दादा जी भी मुस्कुरा दिए।

हमारे चाचा जी का यानि रामदेव जी का खेत और हमारे पिता जी का यानि श्री रामखेलावन जी का खेत घर से उत्तर 1 किलोमीटर दूर पर था वो भी ठीक अगल बग़ल,जैसे की हमारा घर...

इस बार कि फ़सल दोनों खेतों के हाथ पीले कर रहे थे, अब इंतज़ार था तो बस फ़सल कटने का, दोनों परिवारों को उस फ़सल से बहुत उम्मीदें थी।

चाचा और पापा की जोड़ी किसी जय वीरू से कतई कम न थी।

तो खेती करने के तरीके में कहाँ कमी आने वाली थी, बुवाई से लेकर खाद, सिंचाई, गुड़ाई सब कुछ साथ में एक तरीके से ही किया गया था लेकिन ये क्या...?

चाचा जी की खेत के हाथ ज्यादा पीले दिख रहे थे !

पापा के खेतों में सरसों के पेड़ तो थे लेकिन फूल बहुत कम...!

चाचा जी खेत से जब भी लौटते...ख़ुश रहते थे...लेकिन पापा के चेहरे में सरसों के फूल की चिंता साफ नजर आ रही थी...!

चाचा जी की फ़सल जल्दी पक गयी...उन्होंने कटाई शुरू करवा दी..और फसल करके घर भी आ गई, लेकिन अभी पापा की फसल नहीं पकी थी...चाचा की फसल को कटे अब तक़रीबन एक हफ़्ते से ऊपर हो चुका था लेकिन पापा कि फसल अभी भी नहीं पकी थी। आखिरकार पापा के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने...फ़सल को पकने से पहले ही कटाई लगवा दी...लेकिन पूरी तरह फसल न पकने के कारण सारी पैदावार पर पानी फिर गया, और फ़सल बर्बाद हो गयी।

पापा घर काफ़ी गुस्से में लौटे, और लौटते समय भगवान को न जाने कितनी गालियाँ भी दे चुके थे।

लौटते समय भगवान को न जाने कितनी गालियाँ भी दे चुके थे।

या शायद एक और आस का दम निकल चुका था।


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