Gaurav Shukla

Romance

4.6  

Gaurav Shukla

Romance

आख़िरी फ़ोन कॉल...

आख़िरी फ़ोन कॉल...

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"24 तारीख़,

ये शायद मैं न भूल पाऊँ,

हाँ.... मुझे अभी भी याद है ,जब मैं आफिस से छुट्टी मिलने के बाद घर जाने की सोचा था,

और मैं ख़ुश भी बहुत था,आखिरकार मुझे दो महीनों के लिए छुट्टी जो मिली थी।वहीं मुझसे कहीं ज्यादा किसी और को मेरे घर आने की ख़ुशी थी।तुम्हें कैसे मैं भूल सकता हूँ कंचन?

मुझे अब भी याद है कि जब मैंने कॉलेज में दाखिला लिया था ,उससे पहले ही मेरे पापा ने तुम्हारे घर के सामने ही रूम देखा था किराए पर रहने के लिए...संयोग देखा तुमने कंचन....कमरा मैंने नहीं पापा ने पसन्द किया था। इतने कमरे थे आस पास लेकिन उन्होंने इसको चुना शायद ख़ुदा भी तुमको हमसे मिलाना चाहता था ।

ख़ैर,तुम्हें तो याद है न कंचन....!!

जब मैं कमरे में आया...तभी तो तुम्हें पहली बार देखा था...

बड़ी सी आंखे....बाल पीछे से बंधे हुए कमर तक आ रहे थे ,एक सीधी सी काली नागिन सी चोटी,

और दबे आंख नजर उठाना,और जब मुस्कुराहट तुमसे होकर निकली थी न ,कसम से मैं तो बेबाक़ सा खड़ा ही रह गया वहाँ,मुझे ख़ुद का होश नहीं था उस समय,समझ नहीं आ रहा था किधर जाना है और कहां जाना है।शायद आपकी मदहोशी में डूबता जा रहा था,या शायद आपसे मोहब्बत यानी कि इश्क़ हो गया था..लेकिन एकदम से सजग हुआ मैं,अपने आप को संभाला,और मैं खुद में सोचा,आशिक़ी???

यूँ तो मैं पढ़ने आया था,ये आशिक़ी वासिकी कहाँ आती थी मुझे,मुझे तो ये मोहब्बत,ये इश्क़,ये प्यार,सब फ़ालतू के लफ्ज़ लगते थे,लेकिन जब से मैने तुम्हें देखा था कंचन,तब न जाने क्यूँ मैं ये सारी बाते भूल सा जाता हूँ ,फिर आपसे मिलने का मन और ज्ञान से भरा ये दिमाग पर दिल भारी हो जाता है,और ये सोचने पर मजबूर कर देता है,और तुम्हारे आते ही कंचन !!!

ये इश्क़,मोहब्बत प्यार,बस तभी से ये सारे फ़ालतू लफ्ज़ अब अज़ीज़ लगने लगे थे,और इतनी जल्दी तुम कहाँ जाने वाली थी ....मेरे मन से ,मेरे दिल से ,पढ़ने के पहले कितनी बार तुम्हे सोचता था,और मेरा मन एक बार नहीं बार बार कहता ...

"बस एक बार देख लूँ बस"

तुम्हें देखने की इच्छा, एक नवजात बच्चे के लिए मां जैसा अनुभव करा रहा था।लेकिन इस दिल के खुराफात तो आप जानते ही है ....बस एक बार....

बस एक बार .....कह-कह कर के कईयों बार दीदार करवा देता है,

ख़ैर...

शुरू के दिन यूँ ही बीतने लगे,सुबह सुबह कॉलेज जाना,

फिर शाम को तक़रीबन 5 बजे वापस आना,और हर शाम तुम्हे छत पर खड़े होकर रोज देखना,

हा,

हर शाम....हर शाम जब तुम अपने छत के एक कोने में आती थी,और धीरे से मेरी तरफ देखकर हल्का सा जब भी मुस्कुराती थी...बस ऐसा लगता था ,बाहों में भर लूँ तुम्हें...ज़िन्दगी भर के लिए...पल भर के लिए भी अकेला न छोडूं,बस आपको देखना,जैसेएक रोजमर्रा की जिन्दगी सी लगने लगी..

हर दिन,हर शाम,उसी छत पर रोजाना तुम्हारा इंतज़ार करता था,बस इसी उम्मीद में,कि पता नही तुम दोबारा कब दिख जाओ...कब तुम्हारी मुस्कुराहट दोबारा देख पाऊँ,कब तुम्हारी आँखों मे खुद को देख कर इतराउं,

एक बात समझ नही आती कंचन,पता नहीं तुम्हारी नजरें मेरी नजर से मिलकर आपस क्या बातें करती थी,कि हर पल चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती थी...नज़रो से बातें,वो भी मैं मुझे ख़ुद पर यकीन नहीं हो रहा था,ख़ुद को यकीन दिलाते दिलाते समय बीतता गया,

फिर ऐसे ही..एक दिन बीता,एक हफ्ता बीता,ऐसे करते-करते,दिन से साल कब बीत गए पता ही नही चला..तुम्हारी मुस्कान मुझे अब भी याद है,तुम्हारी हरक़त मुझे अब भी याद है,यूँ तो हम लोग रोज तकते थे एक दूसरे को लेकिनआज तीन साल होने को है,और हम दोनों के बीच कोई बात नही हुई इशारों के अलावा,नज़रो ने न जाने कितनी बातें की होगी कंचन,

जो शायद तुम और मैं ही जानता हूँ,लेकिन इतना प्यार करती थी तो नंबर क्यो नही दिया था?मैं इसके लिए कभी माफ नही करूँगा,तुमने मुझे इतना सताया था,

ख़ैर...

वो दिन भी शायद हमसे दूर न था.. आखिरकार तुमने देर से ही सही, तीन साल बाद बात तो की.....तुम्हारी आवाज़ कानो में अब भी गूंजती है....और वो हंसी जो बेबाक़ी से मेरे बोलने पर हंसा करती थी..तुम्हें याद है न कंचन,जब सूमो वाली बात पर दोनों दस मिनट तक पागलों की तरह हंसे थे,और वो वाली बात ,जब नया साल आया था ,हैप्पी न्यू ईयर बोला था तुमने और मैं बाहर आपका इंतज़ार कर रहा था..कैसे भूल सकती हो ये सब,मुझे अभी भी याद है कितुम्हारा हर एक कॉल के आखिरी में ,ये बोलना 

"कॉल मत करियेगा,न ही कोई मैसेज .."

मुझे अब भी हर एक कॉल के ख़त्म होने पर याद आता है,

यूँ ही मीठे पल बीतने लगे थे,फिर,अचानक एक दिन रात को तक़रीबन 11 बजे उसकी काल आयी और उसकी आवाज़ भारी भारी सी लग रही थी....मैने पूछा भी-"क्या हुआ.....?"

वो रोने लगी....और....थर्राए हुये आवाज में बोली....-"एक्सीडेंट हो गया......"

मैं तो यकायक खड़ा सा रह गया,

इससे पहले की मैं पूछता किसका हुआ?क्यों हुआ?

उसने फ़ोन कट कर दिया....मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था,फिर।भी खुद को संभाला,

ख़ैर वाज़िब भी था ,आनन फानन में मैं भी वहां से निकला...बाहर जब मैने पूछा तो पता चला उसके पिता जी का एक्सीडेंट हो गया था ,बड़ा दुःख लगता है जब आप किसी को मुद्दत से चाहे और वो न चाहते हुए भी आपको दुख पहुंचाए...

ख़ैर......

कुछ समय ऐसे ही बीत गया....ख़ुशी और गम के कश्मकश में...और एक दिन फिर नए नम्बर से एक कॉल आयी ...मैं उस समय भी वहीं था...मैने कॉल रिसीव की..हेलो,हेलो कैसे है आप,मेरा दिल जोरो से धड़क उठा..मेरे मन में कई सवाल थे ,सब एक साथ पूछना चाहता था,

"तुम कैसी हो?.इतने दिन फ़ोन क्यों नही की"एक एक कर के हमने ढेर सारी बातें की भी...लेकिन पता नहीं क्यूँ ऐसा लग रहा था जैसे कुछ तो बदल गया है,कुछ अनकहे से अल्फ़ाज़ जैसे इन कानों को कहना चाहते हो कि "अब मैं बात नहीं कर सकती..."लेकिन ये दिल तब भी बच्चा था,और आज भी बन रहा था,जैसे दिल दिमाग से कह रहा हो,"ये जरूर शरारत कर रही है"और दिमाग मान लेता,फ़िर भी कुछ वक्त यूँ ही बीत गए मैं वहाँ से जॉब की तलाश में लखनऊ आ गया ,यहाँ मैं एक रूम लेकर रहने लगा,हम लोग तब भी बराबरफ़ोन कॉल करते थे,फिर 24 तारीख़ के दिन यानि कि आज मैं घर जाने को तैयार था,और ये सब मैं सोच ही रहा था कि तभी मेरा मोबाइल कहीं बजा ....मैं ख़्वावों से असल दुनिया मे दाखिल हुआ और कॉल रिसीव की...

"हेलो,हेलो, आज आप घर आ रहे हैं?"

"(खुशी से )हां आज घर आ रहा हूँ,"

"मैं तो आपसे भी ज्यादा खुश हूं आज आप घर आ रहे हैं लेकिन अब आपसे बात नहीं हो पाएगी",ये मेरी आखिरी फोन कॉल थी..."इससे पहले की मैं कुछ सोचता,कुछ पूछता फोन कॉल कट गयी...जैसे किसी ने ख़्वाबों एक गहरी नींद को एक झटके में तोड़ दिया हो...मेरे मन मे कई सवाल उमड़ रहे हैं,आख़िर फ़ोन क्यों रख दिया?क्या हुआ होगा?अब बात होगी भी या नहीं???फिर मिल पाऊंगा या नहीं??







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