Priyanka Gupta

Tragedy

4.5  

Priyanka Gupta

Tragedy

मानसिक ग़ुलामी

मानसिक ग़ुलामी

4 mins
394


"अरे दिशा , आज अहोई अष्टमी है। पूजा नहीं करनी क्या? तुम कैसी माँ हो ? जो आज का दिन ही भूल गयी। ",पड़ोसन ने दिशा को पूजा के लिए आवाज़ लगाते हुए कहा।

दिशा ने पड़ोसन की बात को सुना अनसुना कर दिया। लेकिन दिशा अपने दिल -दिमाग में मची उथल पुथल को अनसुना नहीं कर सकी थी । दिशा को वैसे भी सभी लोग दिमाग वाली लड़की कहकर ,ताना मारा करते थे। इसलिए दिमाग में उथल पुथल होना लाजिमी था। दिल में उथल पुथल इसलिए हो रही थी ,क्यूंकि वो एक बेटे की माँ भी थी।

दिशा ने अपने आप से पूछा ," हम महिलाएं ही हमेशा पति,बेटे,भाई आदि की लम्बी उम्र और उनके जीवन में खुशहाली के लिए व्रत,पूजा,उपवास आदि करते रहते हैं। क्या पुरुषों को अपनी माँ ,बेटी,बहिन ,पत्नी की लम्बी उम्र और खुशहाली नहीं चाहिए ?क्या पुरुषों के लिए रिश्ते महत्वपूर्ण नहीं है ?"

माँ भी बेटे के लिए तो पूजा करती है ;बेटी के लिए नहीं ? दिशा की माँ भी ऐसा ही करती थी। दिशा ने जब भी उनसे सवाल किया ;उसे यही जवाब मिला ,अपना ज्यादा दिमाग न चलाओ। तब नेहा कहना चाहती थी ,"अगर ईश्वर ने हम महिलाओं को दिमाग दिया है तो,इसलिए ही दिया होगा कि हम भी उसका इस्तेमाल करें। अगर महिलाओं के लिए दिमाग चलाना सही नहीं होता तो ईश्वर भला हमें दिमाग क्यों ही देता ??"

लेकिन संस्कारों से बँधी दिशा उस दिन भी अपनी माँ को कुछ नहीं कह पाई थी ,आज भी कुछ नहीं बोल पाती है। क्यूँकि ,अपने से बड़ों की कही हर सही -गलत बात को सिर झुकाकर स्वीकार करना और प्रश्न न पूछना ही तो हमारे संस्कार हैं । हम सवालों से न जाने क्यों इतना डरते हैं ?सवाल करने वाले को हमारी घूरती हुई आँखें शर्मिंदा कर देती हैं । हर आम भारतीय लड़की की तरह दिशा भी सोचती कुछ और है तथा करती कुछ और ही है । 

महिलाओं को पहले पढ़ाया लिखाया तो जाता नहीं था। उनका पूरा जीवन विशेषतया उच्च वर्ग की महिलाओं का ,घर की चहार दीवारी तक सीमित होता था। अपने जीवन यापन के लिए वो पुरुष सदस्यों पर पूर्ण रूपेण निर्भर थी। शायद इसीलिए हमेशा उनकी सलामती की लिए पूजा ,उपवास आदि करती होंगी। उनके पास वक़्त भी होता था।पुरुष अपनी श्रेष्ठता के दम्भ के कारण महिलाओं की सलामती के बारे में सोचते भी नहीं होंगे। उनके लिए शायद महिलाओं का कोई वजूद ही नहीं था।

दिशा ने एक बार कहीं पढ़ा भी था कि ,"ग़ुलाम मानसिकता वाली महिलाओं की संतानें भी ग़ुलाम मानसिकता के साथ ही जन्म लेती हैं । महिलाओं को 

व्रत -उपवासों में उलझाना ग़ुलाम मानसिकता को पोषित करने का एक तरीका है । व्रत -उपवासों में उलझी महिला तर्क -वितर्क से कोसों दूर रहेगी और यथास्थिति को स्वीकार करेगी । वह अपनी मानसिक ग़ुलामी को ही अपने लिए श्रेष्ठ समझेगी । "

यहाँ तक कि सारे आशीर्वाद भी पुरुषों की सलामती के लिए होते हैं,चाहे वो महिलाओं को दिए जाए या पुरुषों को । महिलाओं को भी आशीर्वाद दिए जाते हैं ,लेकिन उनमें भी पुरुषों की सलामती की चाह ही छिपी हुई होती है जैसे ,"सौभाग्यवती रहो। पुत्रवती रहो। " महिलाओं का अपना जैसे कोई वजूद ही नहीं है;उनकी अपनी कोई ख़्वाहिश नहीं ;अपने कोई सपने नहीं ।

दिशा को तो 'बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ ' अभियान से भी कोफ़्त होती है। जब लोग कहते है बेटियों को बचाओ ,नहीं तो बहुएं कहाँ से लाओगे। बेटी नहीं रही तो ,माँ कहाँ से आएगी। गोया ,लड़की यदि किसी की बहू या माँ नहीं है ,तो उसके वजूद का कोई महत्व ही नहीं है,उसका अस्तित्व स्वीकार ही नहीं है। वह महिला होने से पहले एक मानव भी तो है।

हो सकता है आज के कुछ पुरुष अपने महिला रिश्तों की सलामती की दुआ करते हो। महिला रिश्तों को लम्बे समय के लिए चाहते हो,लेकिन उन्हें पूजा ,व्रत ,उपवास की जरूरत महसूस नहीं होती होगी। लेकिन महिलाएं तो स्वयं आज भी पुरानी लकीरों को पीटे जा रही हैं.अगर कोई महिला इस लीक के विरुद्ध चलने की कोशिश भी करे तो दूसरी महिलाएं ही उसके पैरों तले की जमीन खिसकाने में लगी रहती हैं । दिशा को खुद को भी तो कितनी बार ही अपने दिमाग की बातों और सुझावों को कुचलना पड़ा है । 

दिशा खुद भी तो अपने कितने ही सवाल जवाब कर ले? कितने ही दिमाग के घोड़े दौड़ा ले ?करेगी तो वह भी वही सब कुछ ,जो उसकी माँ ने किया ;जो उसकी माँ की माँ ने किया। लेकिन दिशा चाहती है कि उसके बच्चे लकीर के फ़कीर न बने। वह कम से कम अपने बच्चे को तो स्वतन्त्रता क सही मायने समझा सके । वह अपने बच्चे के सवालों पर कभी रोक नहीं लगाएगी । अपने विचारों को विराम दे ,दिशा भी पूजा की थाली लेकर पूजा करने के लिए पड़ोसन के घर चली ही गयी थी ।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy