मानी जलपरी=========
मानी जलपरी=========
एक मछुआरा अपने गाँव के पास बहने वाली नदी में मछलियाँ पकड़ने जाता था। ये उसका प्रतिदिन का काम था। इससे ही उसकी आजीविका चलती थी। एक दिन जब वह जाल डालकर मछलियां पकड़ रहा था तो उसके जाल में एक बड़ी सी सुन्दर मछली फँसकर आ गई। मछुआरे की खुशी का ठिकाना ना रहा। मछली जिसका नाम मानी था। उसने मछुआरे से प्रार्थना की कि मुझे तुम छोड़ दो मैं तुम्हे बदले में एक मोती दूंगी जिसको बेचकर तुम आजीवन अपनी आजीविका आराम से चला सकते हो ।मछुआरे को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई इतना कीमती भी मोती हो सकता है जो बैठे-बैठे जिन्दगी बसर कर दे फिर भी उसने मानी मछली को मोती के बदले में जाने दिया।
मछुआरा मोती को लेकर सीधा जौहरी के यहाँ गया। जौहरी ने मोती व मछुआरे को खूब गौर से देखा और कहा कि इसकी कीमत अनमोल है फिर भी तुम्हे इसकी जो कीमत चाहिए वो मिल जाएगी। मछुआरा बहुत सा धन लेकर अपने घर गया। मछुआरे के दिन फिर गए अब वह मछुआरों का सरदार बन गया उसने नदी पार पर ही मानी जलपरी का मंदिर बनवा दिया उस नदी के दूर - दूर तक मछलियाँ मारने पर प्रतिबंध लगा दिया। सभी लोग मानी जलपरी के मंदिर आकर उनसे प्रार्थना कर अपनी मन्नत पूरी पाते व खुश होते। इस कहानी से हमें निम्न शिक्षायें मिलती हैं
( 1 ) उच्च व्यक्ति द्वारा दिया गया वचन झूठा नहीं होता।
( 2 ) हमने बुजुर्गो से सुना है व कहानी में पढ़ा है कि जलपरियाँ होती हैं।
( 3 ) हर आदमी को अपनी मेहनत व लगन का फल एक न एक दिन अवश्य मिलता है।
