बनिया की दुकान
बनिया की दुकान


हर सामान मिलेगा भाई , तुमको बाजिब दाम में ।
भाव - ताव ना ही होता है । बनिया की दुकान में ।।
बच्चों आजकल नगर कस्बों में इससे मिलते - जुलते स्लोगन दुकानों में लिखे मिलते हैं जैसे उचित मूल्य , भाव नहीं , एक दाम , फिक्स रेट , इत्यादि - इत्यादि शहरों , नगरों में प्रदर्शनी व सेल लगती है जहाँ तख्तियाँ पर निश्चित रेट अंकित रहते हैं वहाँ वो दुकानें बहुत चलती हैं क्योंकि उनका मुनाफा का एक निश्चित परसेन्ट तय करके ग्राहकों को बेचते ग्राहक के ठगने के चांस बिल्कुल नहीं होते पढ़ा जाये या अनपढ़ जायें । सभी को एक ही भाव में समान मिलता है ऐसे ही बनापुर गाँव में एक मल्लू लाला ( बनिया की दुकान ) थी वहाँ उक्त कोटेशन लिखा हु
आ था सभी गाँववासी उसी बनिया की दुकान से सामान खरीदते थे मल्लूलाला भी उचित क्वालिटी का वाजिब दाम में ग्राहकों को सामान उपलब्ध कराता था पहले ये होता था कि बनिया की दुकानों में भावताव होता था किसी को औने तो किसी को पौने दामों में सामान बनिया लोग बेचते थे अब समय के साथ बहुत बदलाव आ गया है जनता भी होशियार / समझदार हो गई है । व्यापार का एक फन्डा है कि धना चना जैसा खौंट - खौंट कर खाओ तो ग्राहक रूपी फसल भी लहलहाती है और ईमानदारी से व्यापारी का स्टेटस भी बना रहता है व व्यापारी का व्यापार फलता फूलता है ।
इस कहानी से हमें निम्न शिक्षायें मिलती हैं ( 1 ) व्यापारी को ग्राहक को उचित दाम में सामान उपलब्ध कराना चाहिए ।