मकड़जाल
मकड़जाल
मकड़जाल मोहन और सोहन दो भाई थे दोनों के हिस्से में बराबर - बराबर जमीन और अन्य प्रापर्टी हिस्से में आई थी दोनों मेहनत व लगन से अपनी किसानी किया करते थे मोहन दिन दूना रात चौगुना फल - फूल रहा था तो सोहन की आर्थिक स्थिति नित - प्रति दयनीय से दयनीय होती जा रही थी । सोहन अपने बड़े भाई से ईर्ष्या भी करने लगा उसको कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि मे इतना परेशान क्यों हूँ और भाई उतना आनन्द में क्यों है एक बार दोनों भाइयों के कुलगुरु पं . रामादीन जी महाराज उनके यहाँ आये पहले बड़े भाई मोहन के यहाँ गये मोहन का पूरा का पूरा परिवार आनन्द व उत्साह से भरा हुआ था उसने गुरुजी की खूब आओ भगत की व ढेर सारी दक्षिणा विदाई में दी अब गुरु सोहन के यहाँ गये तो वहाँ मातम पसरा देखा कही कोई रौनक नजर नहीं आई । जहाँ देखो वहाँ कचरे के ढेर लगे सामान टूटा - फूटा अस्त - व्यस्त जगह - जगह पड़ा हुआ था घर के हर कोनों - कचारों में मकड़जाल का साम्राज्य व्याप्त था सोहन ने हाथ जोड़कर अपनी दुर्दशा का गुरुजी से कारण पूछा तो गुरु पहले ही देखकर सबकुछ समझ चुके थे सो उन्होंने बड़े ही प्रेम से सोहन को समझाया और कहा कि बेटा तुम लक्ष्मी जी की बड़ी बहिन दरिद्रता को तो घर में जगह दे बैठे हो सो लक्ष्मी तुम्हारे घर कहाँ से आयेगी सोहन गुरु जी की सारी बात समझ चुका था उसने गुरु जी के बताये अनुसार साफ सफाई की टूटा - फूटा सामान फिकवाया मकड़जाल हटाये सारे घर में गाय के गोबर लिपाई करवाई अब तो सोहन के घर लक्ष्मी जी को आना ही आना था ।
शिक्षायें ( 1 ) सफाई का महत्व ।