बोलती बंद
बोलती बंद


एक सोहनपुर गाँव था वहाँ एक बहुआ दाऊ रहता था वह अपने जमाने के अनुसार लोगों का झाड़-फूंक करके इलाज करता था पहले प्राचीन काल में इलाज के सभी साधन भी उपलब्ध नहीं थे इसलिए आदमी विवश होकर बहुआ दाऊ से ही इलाज कराते थे बच्चों को अक्सर नजर लग जाती है सो सारे लोग बहुआ दाऊ के पास नजर झड़वाने अपने - अपने बच्चों को ले जाते थे. किसी को सीतंग उठा यानि ( शरीर पर हल्के चक्ते बने तो बहुआ दाऊ उन्हें कंबल ओढ़कर सोने को कहते । किसी को मिर्गी आई तो बहुआ दाऊ उन्हें जूता सुघाने की सलाह देते । किसी को चिकनपाक्स हो गया तो ( चेचक ) तो बहुआ दाऊ माता का प्रकोप कहते और घरों में बिना तेल बघार के खाना बनाने को कहते और घर के सामने नीम का झौरा टांगने की कहते किसी को कुत्ता या सॉ
प ने काट लिया तो बहुआ दाऊ झाड़ने पिल जाते थे यदि आदमी की किस्मत अच्छी है तो बच जाये नहीं तो राम का प्यारा होना ही था. किसी को बुखार इकत्तरा / तिजारा या मियादी बुखार आ जाये तो बहुआ दाऊ धागा से उतारा कर लंघन करने की सलाह देते थे । बहुआ दाउ के इलाज का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था वह तो अंधों में काने राजा की भाँति अपना काम करते रहते थे । उसी गाँव का एक लड़का शहर से जब पढ़ - लिखकर डॉक्टर बन आया जिसका नाम डॉ जोजन था उसने बहुआ दाऊ व गाँव वालों को समझाया कि शहर जाकर इन सभी का इलाज होता है व आदमी बहुत अच्छा हो जाता है सारे लोगों ने डॉ जोजन की कही बातों पर विश्वास किया सभी की बोलती बंद हो गई अब सभी सोहनपुर वासी उक्त रोगों के इलाज के लिए शहर जाने लगे ।