Happy{vani} Rajput

Inspirational

3  

Happy{vani} Rajput

Inspirational

मान गई! कौन संस्कारी और कौन विध्वंसकारी

मान गई! कौन संस्कारी और कौन विध्वंसकारी

6 mins
430


"आज बहु भी अपने आप को बेटी समझने लगी न जो बिना सर ढके घूम रही है ।" सास ने तीखे स्वर में कहा।

पारुल ने राहुल की तरफ देखा, वो चुप था तो पारुल ने बिना कुछ बोले सर ढक लिया। पारुल और राहुल की शादी हुए ८ साल हो चुके थे। उनकी लव मैरिज हुई थी। पारुल शहर में पली बढ़ी लड़की थी और नौकरी करती थी। राहुल अपने गांव से शहर नौकरी करने आया था और मामा के यहाँ रहता था। पारुल और राहुल एक ही कंपनी में काम करते थे। राहुल के पिता नहीं थे , सास ने सारे भाई बहनों को पाल पोस कर बड़ा किया था। कब पारुल उस गाँव से आये सीधे सादे लड़के को अपना दिल दे बैठी, उसे पता ही न चला।


ब्राह्मण परिवार की पारुल को राजपूत राहुल के घर के रीति -रिवाज़ नहीं पता थे। उसने सोचा जैसे उसके यहाँ है वैसे ही होंगे, इसमें क्या अंतर है। शुरूआती दिनों में सास ने उससे घूँघट कराया तो उसने सोचा चलो शुरू में तो सब रखते हैं और रखने लगी। राहुल ने उसको इस बारे में कुछ नहीं बताया था। धीरे धीरे पारुल की चुप्पी का सास ने फायदा उठाना शुरू कर दिया। अब वो बात बात पर पारुल का घूंघट खिसक जाता तो टोकना शुरू कर देती। अगर पारुल अपनी ननदों के साथ सोफे पे बैठ कर बात करती तो सास उसे नीचे बैठने को कहती। पारुल को गुस्सा आता था पर कुछ कहती नहीं थी। अंदर से रोटी थी पर सबके सामने हँसती रहती थी। उसका नाम ही हसँमुख बिंदनी रखा था सबने। अपनी हँसी से और अपने संस्कारों से उसने सबका मन मोह लिया था। शहर की मॉडर्न फॅमिली से होते हुए भी पारुल रोज़ सुबह ससुराल में अपने बड़ों के पैर ज़रूर छूती थी। बस उसे दिक्कत थी तो घूंघट करने से। वैसे तो पारुल नौकरी करती थी पर सास के पास जाती तो सास उससे मुँह ढक के काम करने को कहती। पारुल को बुरा लगता था।


एक दिन राहुल से बोली "राहुल तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि तुम्हारे यहाँ पर्दाप्रथा है। हमारे यहाँ सर पर पल्लू कुछ महीनों तक नयी नवेली के लिए होता है पर यहाँ तो हद है। मैं नौकरी करती हूँ। आज के सदी की लड़की हूँ अब यह सब दकियानूसी है। उनके ज़माने में होता होगा पर अब नहीं। मम्मी को समझा देना।"

"ये हमारे यहाँ की परंपरा है। इससे बहु की आँखों में शर्म और लिहाज़ होती है बड़ों के लिए। जब मम्मी ने किया है तो तुम क्यों नहीं कर सकती। तुम्हें करना पड़ेगा। " राहुल ने दबंग आवाज़ में कहा।


"राहुल मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। यदि ऐसा था तो यही शादी करनी चाहिए थी, लेकिन तुम्हें तो दोनों तरह के लड्डू चाहिए थे नौकरी वाली भी और गूंगी बीवी भी। लेकिन अब बस बहुत हुआ, शादी के ८ साल बाद भी ऐसे रखते हो जैसे मैं कोई नयी नवेली दुल्हन। तुम बात नहीं करोगे तो मैं मम्मी से बात करूंगी। और मैं बता दूँ मैं सर पर ही रख सकती हूँ लेकिन मुँह नहीं ढकूँगी। वैसे भी जिसको इज़्ज़त की होती है वो सर बिना ढके भी हो सकती है। कोई मैंने जींस टीशर्ट नहीं पहना। तुमने तो मेरे साथ धोखा किया है। मैं इसके लिए तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूंगी। तुमने मेरी ज़िन्दगी एक झटके में कैद कर दी।पर मैं भी पढ़ी लिखी शहर में रहने वाली लड़की हूँ और ये तो मैं नहीं करूंगी। " पारुल भी दबंग आवाज़ में बोली


अब पारुल थोड़ी थोड़ी उदास रहने लगी। हँसती तो थी पर पर्दा करना छोड़ दिया और पल्ला सर पर रखती थी। राहुल आँख चढ़ा के देखता तो पारुल मुँह बिचका के निकल जाती। अब तक सास को पता चल गया था कि पारूल को इस परदे से घृणा है। ऐसे में एक दिन सास बोली गुस्से में "बहु भी अब बेटी जैसे रहने लगी न। हमारे यहाँ काकी सास (चाची) अभी तक मुझसे पर्दा करती हैं।" पारूल तो इसी बात का इंतज़ार कर रही थी, बस उसे मौका मिल गया।


उसने कहा "माँ सा आपकी बहुत इज़्ज़त करती हूँ। माना मैं आपके खानदान की नहीं। राहुल और मैंने इंटरकास्ट मैरिज की पर मैंने आपके सारे रीती-रिवाज़ अच्छे से अपना लिए पर इसका मतलब यह नहीं की आप की हर गैर ज़रूरी चीज़ भी अपना लूँ। मेरी भी कुछ मर्यादा है। अगर मुझे पता होता कि यहाँ ऐसी पर्दा प्रथा अभी तक चल रही है तो आप शायद मुझे यहाँ नहीं देखतीं। मेरे यहाँ पल्ला नहीं रखती हैं मेरी भाभियाँ पर फिर भी दिल में इज़्ज़त ख़तम नहीं होती। लेकिन अगर आपको इज़्ज़त का मतलब घूंघट करना है तो मुझे माफ़ करें। इज़्ज़त दिल से होती है न की मुँह छिपाने से। बस अब बहुत हुआ , अब और नहीं सहना। आज दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी। लड़कियाँ अपने पैरों पर कड़ी हो गयीं , पढ़ लिख के भी पर्दा करने का क्या मतलब। राहुल ने मुझे धोखा दिया है इस मामले में तो मैं ये नहीं कर सकती " इतना कह कर पारुल वहां से चली गयी।


राहुल कुछ बोल नहीं सका क्यूंकि पारुल ने उसको कसम जो दिला दी थी खुद उसकी ही माँ की। बाकि सब भी, मम्मी भी पारुल का मुँह देखती रह गयी। पारुल के देवर और ननदों ने समझाया सास को कि भाभी ठीक कह रही हैं।


"सब काम भाभी हँसते हुए हमारे मन मुताबिक करती हैं कुछ नहीं कहती, शहर में पाली बड़ी होने के बाद भी बड़ों के पैर अभी तक भी छूती हैं। अगर वह सब रीती - रिवाज़ अपना सकती है तो क्या हम उसकी एक छोटी सी बात नहीं मान सकते।" नन्द ने सास को समझते हुए कहा


"माँ मुझे पता नहीं था, ये परदे की बात को लेकर इतना हंगामा होगा। पर आज मुझे बुरा लग रहा है। इस बारे में मैंने कभी नहीं सोचा था। वो मेरे साथ जीवन जीने के लिए आयी और यह इच्छा भी पूरी नहीं कर सकता। पर अब मैं पारुल की ये इच्छा भी पूरी करूँगा।" राहुल ने कहा


सास नाराज़ रहती थी अब पारुल से। नतीजा ये हुआ कि पारुल ने ससुराल जाना बंद कर दिया पर राहुल को कभी नहीं रोकती थी। फिर कुछ समय बाद जब पारुल के देवर की शादी हुई तो पारुल की देवरानी घूंघट तो करती थी पर पारुल के जैसे सुबह उठ के सब बड़ों के पैर छूना, अच्छे से मुस्कान के साथ किसी से बात न करना। सबसे बदतमीज़ी से बात करना जैसा कुछ भी नहीं करती थी। सारे रिश्तेदार पारुल की बड़ाई करने लगे। सभी कहते थे बिंदनी हो तो पारुल भाभी सा जैसी।


सास ने भी अंतर पाया कि पारुल की देवरानी उनके कुल की हो के भी वो सब नहीं करती जो पारुल करती थी। तब सास को समझ आया कि इज़्ज़त दिल से होती है और पारुल में यह सारे संस्कार अच्छे से पनपे हुए थे। उन्होंने राहुल से कहा "जा बेटा मेरी बड़ी बिंदनी को आदर सहित घर ले आ।" फिर जब पारुल आयी तो सास ने पारुल के सर पर हाथ फेर कर कहा "बेटा मुझे माफ़ कर दे। आज मुझे पता चल गया कौन संस्कारी है और कौन विध्वंसकारी है।"


पारुल ने सास के पैर छुए और वह भी मुँह ढके बिना। आज राहुल को भी पारुल पे गर्व हो रहा था।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational