माँ डर नहीं सकती
माँ डर नहीं सकती
बहुत दिनों से मैं अपने बच्चों को कहीं लेकर नहीं गई थी, सोचा चलो आज बच्चों को पार्क ले चलती हूँ। सन्डे के दिन पार्क में अच्छी खासी भीड़ होती है, बच्चों को काफी परेशानी भी होती है।पर क्या करूँ? एक सन्डे का दिन ही तो मिलता है घुमाने को। पार्क में पहुँच कर बच्चे काफी खुश लग रहे थे। दोनों झूले पर बैठने की जिद कर रहे थे, पर कोई झूला खाली न था।सो थोड़ी देर इंतजार कर रही थी कि कोई बच्चा उतरे तो मैं अपने बच्चे को बिठाऊं।
पर मेरा बेटा जो एक स्पेशल चाइल्ड है वो रुकने को तैयार नहीं था, वो जोर जोर से गुस्सा करने लगा और चिल्लाने लगा, मैं उसे संभालने की कोशिश कर हि रही थी कि तभी...
"सुनिये..."
मुझे पीछे से किसी ने आवाज दी।मैंने पलट कर देखा,, कोई अधेड़ से अंकल थे जो बहुत ही गुस्से में लग रहे थे।बोले "आप यहाँ से अपने बच्चे को लेकर चली जाइये।मेरी बीवी आप के बच्चे को देख कर बहुत डर रही है। पता नहीं ऐसे लोग अपने पागल बच्चों को लेकर पार्क मैं आते ही क्यों हैं?" बड़बड़ाते हुए वो बिना मेरा जवाब सुने वहां से चले गये।
मैं बस उन्हें देखती रह गई, ऐसे कोई कैसे कह सकता है? मेरे बेटे ने ऐसा क्या कर दिया जो उन्हें डर लग रहा है? इस दुनिया में तो कितने बुरे-बुरे लोग रहते हैं, जिनकी कोई पहचान भी नहीं होती, कब कौन क्या कर दे।पर मेरा बेटा तो बिलकुल सीधा साधा सा है, उसे तो किसी से कोई मतलब भी नहीं है। फिर उन की बीवी को मेरे बेटे में ऐसा क्या दिख गया जो उन्हें डर लग रहा है?
ऐसा ही तो होता है हर बार, कितनी बार मैंने बिना गलती के भी अपने बेटे की तरफ से माफी माँगी है।उसने अपने भोलेपन में अगर किसी को छू भी लिया तो वो उस पर पागल होने का ठप्पा लगा देते हैं। क्या नार्मल बच्चे किसी मॉल में जा कर शैतानी नहीं करते? कितनी बार देखा है बच्चों को मॉल में जाते ही खिलौने लेकर इधर उधर भागते।उनसे तो कोई कुछ नहीं बोलता, पर अगर मेरे बेटे से कोई सामान गलती से गिर जाये तो सब आ जाते हैं "मैडम आप बच्चे को पकड़ के रखिये" बोलने और मैं भी तो बिना बात के माफी माँग लेती हूँ।
अब तो मैंने हर जगह जाना भी बंद कर दिया, पर अब आज पार्क में भी ये सब। अगर मैं यहाँ से भी भाग गई तो अपने बच्चे को कहाँ ले जाउंगी? नहीं मैं नहीं भाग सकती, कहाँ कहाँ से भागूगी? किधर किधर जाना बंद करुगी? नहीं अब मुझे अपने बेटे के लिये इस समाज से इसकी सोच से लड़ना ही पड़ेगा।मेरे बेटे के भविष्य का सवाल है। मैंने अपने बेटो का हाथ पकड़ा और जहाँ वो अंकल आँटी बैठे थे उनके बिलकुल पास वाले झूले पर अपने बच्चों को बिठा दिया।
वो आँटी ऐसे डर रही थी जैसे मेरा बच्चा कोई भूत हो। पर मैंने उन्हें अनदेखा कर दिया, तो वो अंकल फिर से मेरे पास आकर चिल्ला कर बोले "मैंने तुम से कहा था न कि यहाँ से चली जाओ, पर तुम तो और मेरे पास ही अपने बच्चों को लेकर आ गईं? हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी? तुम जानती नहीं मैं कौन हूँ?"
मैंने बहुत ही सधे हुए लहजे में कहा "देखिये अंकल, आप कौन हैं मैं नहीं जानती और जानना भी नहीं चाहती।पर आप ये जान लीजिये कि मैं अपने बेटे की माँ हूँ।मैं अपने बच्चों को लेकर कहीं नहीं जाने वाली, डर आपकी बीवी को लग रहा है, मेरे बच्चों को नहीं।शायद उन्हें कोई प्रॉब्लम है जो वो इन छोटे बच्चों से डर रही हैं। इसलिये आप उन्हें घर ले जाएं।"
आगे शायद उनकी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई और वो अपना रूतबा और अपनी बीवी को लेकर वहां से चले गये।मैंने अपने बच्चों को और तेज झूला झुला दिया। मन में ये सोच कर कि अब मैं तुम्हे अपनी कमजोरी नहीं ताकत बनूंगी और हर जगह तुम्हारे हक की आजादी तुम्हे दिलाऊँगी।
दोस्तों, जब भी हम अपने विशेष बच्चों को लेकर घर से निकलते हैं तो ऐसे ही कुछ लोग हमें मिल ही जाते हैं। मैं ये नहीं कह रही कि सभी लोग ऐसा करते हैं, कुछ लोग तो बहुत अच्छे होते हैं, पर जो लोग हमारे बच्चों को न समझे हमें उन के डर से अपने बच्चों की आजादी नहीं छीननी चाहिए !