माँ बुला लो ना
माँ बुला लो ना
"ये क्या,अभी सिर्फ सब्जी बनी है,चपाती,दाल, रायता बनना बाकी है.इस अंशु से तो कोई काम
ही नहीं होता.अच्छा होता जो ये भी अपनी माँ के साथ चली जाती"
चाची ने चौदह साल की अंशु की पीठ पर गुस्से से धौल ज़माते हुए कहा तो अंशु अपनी जली हुई
अंगुली का दर्द भूलकर काम करने लगी.
"माँ,तुम क्यूँ चली गई.मुझे अपने पास बुला लो मैं चाची के साथ नहीं रहना चाहती"
अंशु रात को आसमा में देखकर रोते हुए बोल रही थी,सुनकर चाची की ममता जाग उठी.
अंशु को गले लगाते हुए बोली"मैं हूँ तेरी माँ".