Alaka Kumari

Abstract Classics Inspirational

4.5  

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Abstract Classics Inspirational

मां अशिक्षित कैसे ?

मां अशिक्षित कैसे ?

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न्यूज़ एंकर अदिति शंकर से सुनिए एक अनसुना किस्सा।

नमस्कार मैं अदिति शंकर एक नयी पेशकश के साथ आप सभी के सामने उपस्थित हुं।

हम बात करेंगे आज डॉ भविता शारदा से।

नमस्कार मैं डाॅ भविता शारदा।

अदिति शंकर-आप अपने गांव से पहली महिला पीएचडी करने वाली है, आगे आप अपने गांव के लिए क्या करनेवाली है।

भविता शारदा- मैं अपने गांव में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का प्रयास करूंगी, लड़कियाें को शिक्षा के लिए जागरूक करना चाहती हूं।

अदिति शंकर-आप अपना सफलता के श्रेय किसे देना चाहेंगी?

भविता शारदा-मेरे सफलता में बहुत लोगों ने मेरी सहायता कि हैं, किन्तु इस सफलता का श्रेय मैं अपने मां को देना चाहुंगी।

अदिति शंकर-स्वाभाविक सभी लोग अपने मां को सफलता का श्रेय देते हैं, किंतु आप कह रही है, बहुत लोगों ने मेरी सहायता कि फिर आप अपनी मां को ही क्यों सफलता का श्रेय दे रही है।

भविता शारदा-मेरी मां, जिन्हें लोग अशिक्षित कहते हैं,कई लोगों से सुना है मैंने वो मां को कहते थे,तुम अनपढ़ गंवार क्या जानो?

समय का महत्व,या कुछ भी।

अदिति शंकर-आपकी मां अशिक्षित हैं फिर आप पीएचडी तक पढ़ाई कि सच में बहुत अजब है।

भविता शारदा- मेरी मां को जब अशिक्षित कहकर घर से निकाल दिया गया, हमारे पिता एक छोटे से जाॅब करते थे।

मेरे दादाजी ने दहेज कि लालच में आकर मेरी मां को अपनी बहू स्वीकार किए थे, किंतु जैसे ही मेरा जन्म हुआ,

वे लोग सोचने लगे यह तो बेटी को जन्म दी है, इसके पालन-पोषण के लिए पैसे कहां से आयेंगे?

उनलोगो ने मेरी मां को यह कहकर घर से निकाल दिया कि यह अनपढ़ गंवार है, हमारी फैमिली पढ़ी लिखी हैं।

वो लोग असलियत में मेरे जन्म के कारण एक बेटी को जन्म देने के कारण मां को घर से निकाल दिया।

मां जब मुझे लेकर ननिहाल गयी तो उन्हें कहा गया कि शादी के बाद तुम्हारा घर तुम्हारा ससुराल है, इसलिए अपने ससुराल जाओ, दुख हो सुख वहीं रहना।

मेरी मां को यह बात हृदय पर लगी, उन्होंने फैसला किया कि वो अब न ससुराल जायेगी और ना ही मायके।

उसके बाद मां एक विद्यालय में खाना बनाने का काम करने लगी, बचे हुए खाना घर लाती थी, जिसके कारण राशन नहीं खरीदना पड़ता था, किंतु रहने के लिए अभी भी छत न था, हमें याद है विद्यालय से ही कुछ दुरी पर एक नाहर को आधा बनाकर आधा छोड़ दिया गया था,

उस बड़ा बड़ा गोल गोल पाइप जैसा लगाया गया था, जिसमें हमलोग रहते थे।

अदिति शंकर-बाढ आने पर आपलोग कहां रहती थी?

भविता शारदा- बाढ़ आनेपर उसमें पानी आ जाता था,तो हमलोग सारे सामान लेकर स्कूल के एक हिस्से में रहते थे।

मैं मां के साथ स्कूल जाती थी, लेकिन मैं पढ़ती नहीं थी, मैं खेल कर मां के साथ घर वापस आ जाती थी।

एक दिन मां ने यह सोचा कि मेरे अनपढ़ होने के कारण ही मुझे घर से निकाला गया,अगर मैं पढ़ी लिखी होती तो अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा देती और ससुराल वालों के घर से निकालने पर भी हम अपनी बेटी को अच्छी परवरिश और बहुत अच्छी शिक्षा देती, लेकिन हम तो अनपढ गंवार है, मेरी बिटिया को यह सब न झेलने न दुंगी।

फिर उन्होंने मेरा दाखिला उसी स्कूल में करवायी, मां सभी शिक्षक से यही कहती थी, हमारी बिटिया को अच्छे से पढ़ा दिजिए।

मैं दसवीं तक उसी सरकारी स्कूल में पढ़ी, फिर अपने गांव से 2किलोमीटर दुर मैं अपना इंटरमिडिएट में लिखवायी।

हिन्दी लेकर मैंने पढ़ाई कि।

अदिति शंकर-आपकी मैट्रिक में कितने मार्क्स थे?

भविता शारदा-88%

अदिति शंकर-आपके मार्क्स बहुत अच्छे थे,आपने हिन्दी विषय क्यों चुना आप विज्ञान या अन्य विषय भी ले सकती थी।

डाॅ भविता शारदा-उस समय हमारे पास इतने पैसे नहीं थे,कि हम डाक्टर या इंजीनियर कि पढाई करें, और दुसरी बात मैं पीएचडी ही करना चाहती थी,ताकि शिक्षा से कोई वंचित न रहे,सबका अधिकार है शिक्षा को पाना।

अदिति शंकर-आप 2किलोमीटर पैदल ही पढ़ने जाती थी क्या?

डाक्टर भविता शारदा-नौवीं कक्षा में मुझे साइकिल के लिए पैसे मिले थे,उन पैसों से हमने एक साइकिल खरीदी और उसी से हम पढ़ने जाते थे।

अदिति शंकर-आपकी कहानी कठिनाई से भरी है।

डाॅ भविता शारदा- ऐसी अनेक लोगों कि कहानी कठिनाई से भरी है।

अदिति शंकर-आपकी मां अनपढ़ हैं,इसको आप किस तरह लेती है?

डाॅ भविता शारदा-सबसे पहले तो आपको बता दूं, मेरी नज़र से इस दुनिया में कोई भी मां अशिक्षित नहीं है, माना कि मेरी मां को शिक्षा नहीं मिला किंतु उनकी बुद्धि बहुत ही तीव्र है।

अगर मां कि बुध्दि तीव्र न होती,तो वह हरबार खुद से पहले अपने बच्चों के बारे में क्यों सोचती है, अपने बच्चों को बिगड़ते देख खुद को दोषी क्यों मानती है?

जो हमारा चेहरा देखकर कहती है, तुने खाना नहीं खाया है, वह मां जो आंखों में देखकर समझ जाती है, मेरे संतान गहरी मुसीबत में हैं, हमारी आवाज सुनकर बता देती है,कि तेरी तबीयत ठीक नहीं है।

मां जो हमें बचपन से पालन-पोषण करके बड़ा करती है,हम उनको अनपढ़ कहते हैं,तो हम उस समय खुद अनपढ़ होते हैं, क्योंकि हम जब मां कि योग्यता समझ लेंगे,तब हम खुद को मां के सामने अशिक्षित महसूस करेंगे।

अदिति शंकर- दर्शकों देखिए भविता शारदा ने बताया कि कोई भी मां अनपढ नहीं होती है,यह सत्य है,इसे आप स्वीकार करें।

जो यह स्वीकार नहीं करते हैं, उनके लिए आप क्या कहना चाहेंगी भविता जी।

डाॅ भविता शारदा- मैं उनसे पुछती हुं,कि क्या जन्म लेते ही वो अपने हाथों से खा लेते थे, सबकुछ मां ने सीखाया, मां हमारी जिंदगी कि पहली गुरु होती है।

अदिति शंकर-बातें तो बहुत हो गई,हम आपको किसी से मिलवाना चाहेंगे,जो आपके लिए बहुत खास है।

आइए आपका मेरे शो अनसुना किस्सा में स्वागत है,आपकी बेटी अपने गांव से पहली पीएचडी करने वाली लड़की है, आपको इस समय कैसा महसूस हो रहा है, इतनी बड़ी खुशी है,आप अपने मन कि बात बताइए।

शारदा देवी (भविता शारदा कि मां)-इस समय मुझे खुशी है, लेकिन असली खुशी मुझे शायद उस दिन मिलेगी जिस दिन मेरी बेटी गांव के लोगों को शिक्षा का महत्व समझा देगी, हजारों बेटियों को बचाकर उसे शिक्षित कर देगी उस समय मुझे बहुत खुशी मिलेगी।

अदिति शंकर-आप एक संघर्षशील मां रही है,आपके जज्बे को सलाम 🇮🇳 है।

शारदा देवी-धन्यवाद 

अदिति शंकर-लोग आपको अनपढ़ कहते थे,जब लोग ये कहते थे कि यह अनपढ़ औरत अपनी बेटी को पढ़ायेगी।

उस समय आपको क्या महसूस होता था?

शारदा देवी- ये सब बातें कहने वालों को धन्यवाद।

जब लोगों के मुंह से अनपढ़ गंवार सुनने कि आदत पड़ गयी, लेकिन एक दिन यह बात सीधे मेरे हृदय को कष्ट दिया,उस समय हमने अपना दिमाग का इस्तेमाल किया,तब समझ में आया कि ये सब कुछ अपनी बेटी को सुनने नहीं दुंगी।

उसके बाद मैंने इसे पढ़ाने का ठान लिया, और रही बात अनपढ़ गंवार कि तो,

मोटे मोटे किताब पढ़ लेने से कोई शिक्षित नहीं हो जाता है।

सब अपने जगह अपने हिसाब से शिक्षित हैं, हमारी जैसी मां अनुभव कि मोटे-मोटे किताब पढ़ने से अनुभवी होती है।

डाॅ भविता शारदा-मेरी मां जैसी और जितनी भी औरतें वो अशिक्षित नहीं है, इसलिए मैंअलका कुमारी कि एक कविता यहां पढ़ना चाहुंगी।

रिश्तों में उलझकर खुद को सुलझाती है मां,

रिश्तों को समझकर खुद में उलझ जाती है मां।

यह राजनीति का कानून नहीं है,

 बताओ मां यह किसका कानून है।

मेरी आंखों को समझ लेती हो आप,

मेरे चेहरे को पढ़ लेती हो आप।

इसके लिए हमें मनोविज्ञान पढ़ना पड़ता है,

आपने कौन सा विज्ञान पढ़ा?

बताओ न मां।

खुद से पहले मुझे खिलाती हो,

मेरी गलती पर अपने परवरिश पर उंगली उठाती हो।

यह राजनीति का सिद्धांत नहीं है,

बताओ मां यह किसका सिद्धांत है?

आवाज सुन मेरी तबीयत बताती हो,

अनहोनी होनेवाली है पहले ही बताती हो।

यह न्यूटन का नियम नहीं है,

बताओ मां यह किसका नियम हैं?

मां प्लस संतान इक्वल टु संस्कारी संतान,

यह बीजगणित का सूत्र नहीं है,

बताओ मां यह कौन-सा सूत्र हैं?

मेरे हर प्रश्नों का जवाब है आपके पास,

मेरे हर मुसीबतों का हल है आपके पास।

भगवद्गीता आपने नहीं पढ़ा है,

बताओ मां यह कौन-सा ग्रन्थ है?

आपके आंचल में ममता छुपी है,

आपके आशीर्वाद में वरदान छुपी है।

यह अन्नदेवी तो नहीं है मां

बताओ मां आप कौन सी देवी हो।

मोटे ग्रन्थों को पढ़ने से कोई शिक्षित न बन जाता है,

मां खुद ग्रंथ है,वो कौन सा ग्रंथ पढ़े।

मां अनुभवों कि विदुषी है,

हम सब तो अभी अनपढ़ है।

ये कविता थी, जिसके माध्यम से आपको समझना चाहिए कि मां

अशिक्षित नहीं होती है, हमारी पहली गुरु हमारी मां होती है।

मां अनुभवों कि विदुषी है, और हमें उनसे बहुत कुछ सीखना चाहिए।


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