Alaka Kumari

Classics Inspirational

4.7  

Alaka Kumari

Classics Inspirational

ठेला वाले भईया

ठेला वाले भईया

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मैं देखता था कि भईया भाभी आपस में लड़ते थे, किंतु मैं बीच मे नहीं बोलता था। किंतु आज भाभी ने दिवार पर टंगी हुई चित्र को कचरे के डिब्बे में डाल रही थी, तभी भइया देख लिए। भईया ने कहा ये तुम क्या कर रही हो?

जानती हो यह चित्र हमारे जिंदगी में कितना मायने रखता है।

भाभी बोली नहीं जानती हूं? इसलिए तो फेंक रही हूं।

मैंने कहा भाभी आप रहने दो मत फेंको?

बहुत देर बाद भी भाभी नहीं मानी,

हार मानकर मैंने कहा जानना चाहती है आप कि वह चित्र हमारी जिंदगी में कितना मायने रखता है।

अगर सच सुनने कि ताकत है तो सुनिए-

दिव्या हर रोज ठेले वाले भईया से गोलगप्पे खरीद कर खाती थी। पापा ने मना किया था गोलगप्पे खाने से दिव्या कहा मानने वाली थी।हर रोज गोलगप्पे खरीदती थी एक दिन पापा आफिस से जल्दी आ गए।ठेले वाले भईया ने ठेला रोक दिया, दिव्या गोलगप्पे खरीद लेती, किंतु पापा जी के वजह से गोलगप्पे नहीं खरीदी। कुछ मिनट रूककर ठेले वाले भईया चले गए।रोज दिव्या गोलगप्पे खरीदती थी,एक दिन उसने (दिव्या)ठेले वाले भईया से कहा -आप चले जाओं मेरे पास पैसे नहीं हैं,मैं रोज एक चित्र अपने दोस्तों से बेचकर 10-15 रुपए जमा करती हूं, गोलगप्पे खाने के लिए ,किंतु आज किसी ने मेरा चित्र नहीं खरीदा।ठेले वाले भईया रोज कि तरह गोलगप्पे दिव्या को दिए खाने को।

दिव्या मुंह बनाकर बोली मैं बोली न मेरे पास आज पैसे नहीं।

ठेले वाले भईया बोले रुपया सबकुछ नहीं होता है।

रोज रोज दिव्या गोलगप्पे खरीदती थी।कई दिन ऐसे ही गोलगप्पे बिना पैसे दिए ही खा ली।

एक दिन दिव्या ने कहा- आप मुझे उधार गोलगप्पे खिलाते हैं, इसके बदले मैं आपको ठेले के साथ अच्छा सा चित्र बनाकर दुंगी।

ठेले वाले भईया बोले जैसा तुम्हारा मन।

एक दिन दिव्या एक अच्छा सा चित्र बनाकर ठेले वाले भईया को दे दी, और बोली ये लिजिए, बहुत अच्छे से बनायी हूं ,आशा करती हूं आपको अच्छा लगेगा। ठेले वाले भईया का ठेले के साथ बना चित्र।एक कोने में बड़े अक्षरों में लिखा था, मेरे ठेले वाले भईया आप बहुत अच्छे हैं। एक दिन दिव्या के मां बोली आप मेरी दिव्या गोलगप्पे खिलाते हैं ,हम कभी पैसा नहीं दे पाते हैं, माफ करना बेटा मैं समझ सकती हूं कि, तुम्हें दिव्या के कारण कितना घटा सहना पड़ता होगा। कल रक्षाबंधन है ,तो ठेले वाले भईया बोले- कल मैं नहीं आ पाऊंगा क्योंकि कल रक्षाबंधन है ,कल कौन गोलगप्पे खरीदेगा।

दिव्या मुंह बनाकर बोली- कल आपको आना पड़ेगा क्योंकि मुझे रक्षाबंधन पर गोलगप्पे खाना पसंद है, आप कल आओगे न?

ठेले वाले भईया बोले ठीक है, मैं आऊंगा।

कल जब ठेले वाले भईया आए तो उनकी कलाईयां सुनी थी,

दिव्या कि मां ने पुछा -बेटा आज रक्षाबंधन के दिन तेरी कलाईयां क्यों सुनी है?

ठेले वाले भईया-कुछ बोलते इससे पहले उनकी आंखों से आंसू गिरने लगा

और वो बोले कि मेरी कोई बहन नहीं है,

और मुझ जैसे ठेले वाले गरीब को कौन राखी बांधेगा और हम मंहगे तोहफा नहीं दे पायेंगे।

मां ने कहा- मुझे भी कोई बेटा नहीं है, दिव्या हर साल रक्षाबंधन पर दिव्या मुझसे कहती हैं, कि कितना अच्छा होता मेरा एक छोटा भाई होता,

हम रक्षाबंधन के दिन राखी बांधते तिलक लगाते उसको।

आओ बेटा दिव्या तुम्हें राखी बांध देगी।

मां ने कहा दिव्या राखी ले आना और चन्दन भी

दिव्या ने मां के कहे अनुसार सब कुछ ले आयी।

दिव्या ने राखी बांध दी ठेले वाले भईया उपहार में गोलगप्पे खाने को दिए। मैं खड़ा तो मुझे भी बांध दी। मुझे बहुत अच्छा लगा।

दिव्या बहुत खुश थी ,क्योंकि जिंदगी में पहली बार एक भाई जो मिला था।

ठेले वाले भईया बहुत खुश थे, और अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझ रहे थे, आज तो कोई मुझे अपना भाई समझा।

तभी दिव्या के पापा आए और दिव्या को गोलगप्पे खाते हुए देख गुस्सा होकर बोले- गोलगप्पे कहां से आया?

बाहर निकले तो ठेले वाले भईया के साथ मैं खड़ा था। और उन्होंने ऊंचे आवाज में कहा आज के बाद इधर दिखाई मत देना।

उसके बाद से हम और ठेले वाले भईया उस गली में कभी नहीं गए।

कल जब मैं और ठेले वाले भईया बाजार के चौराहे से गुजर रहा था ,तो अचानक दिव्या कि आवाज सुनाई दी।वह चिल्लायी ठेले वाले भईया जब हमलोग पीछे मुड़े तो कोई नहीं था। मैंने भइया से पुछा आपको कुछ सुनाई दिया ,मुझे लगा दिव्या चिल्लायी है- ठेले वाले भईया । भईया ने कहा हां मुझे भी सुनाई दिया।

हमलोग ठेले साइड में लगाकर पीछे गए तो दिव्या बोलना चाह रही थी, किंतु कुछ बोल नहीं पा रही थी। हमलोग उसे अस्पताल ले गए।

दो दिन बाद होश में आई तो उसे हमलोग घर पहुंचाने गए।

हालांकि हम लोग उस गली में नहीं जाना चाहते थे, फिर भी हमलोग गए। कहते हैं-भगवान जो चाहता है, वहीं होता है।

दिव्या कि मां रो रही थी, आसपास के पड़ोसी भी आए थे।

मैं भीड़ में आगे गया और मां को बोला- दिव्या!

दिव्या कि मां पुछी-क्या दिव्या

भईया दिव्या को घर में ले आए।

दिव्या को देख मां बहुत खुश हुई।

मां के पुछने पर दिव्या ने बताया कि एक ट्रक ने मुझे ठोकर मारकर भाग गया।

तो ठेले वाले भईया ने हमें अस्पताल में एडमिट करवाया।

दिव्या के मां बोली एक फोन तो कर देते

मैंने कहा हमारे पास फोन नहीं है,

आपका नंबर होता तो मैं अस्पताल के टेलीफोन से बात करता, किंतु नंबर ही नहीं था।

दिव्या के पापा आए तो हमलोग डर गए,

उन्होंने कहा- आ गए जले पर नमक छिड़कने, तभी दिव्या कि मां बोली ऐसा न कहिए,

दिव्या घर आ गयी है। पापा सोचते हुए बोले-

किंतु पुलिस ने कहा था, कि दिव्या ट्रेन कि पटरी पर जाकर मर गयी,

आज ही तो पुलिस ने मुझे बताया।

दिव्या कि मां पापा को आंगन में ले गयी।

आपको विश्वास नहीं होता है ,दिव्या से मिलिए।

दिव्या बेटा तुम ठीक हो न,

भगवान को शुक्रिया जिन्होंने मेरी बेटी को बचा लिया।

दिव्या अपने पापा कि बात सुनकर बोली पापा धन्यवाद ठेले वाले भईया को दिजिए।

मुझे ट्रक वाले ने ठोकर मारकर भाग गया,

भईया ने मुझे अस्पताल में भर्ती करवाया अभी तक अपने घर नहीं गए।

दिव्या के पापा भईया से माफी मांगने लगे,

भईया बोले हम तो सिर्फ भाई होने का फर्ज निभाया है।

रक्षाबंधन के बाद हमारी जिंदगी ही बदल गयी,

भइया जब कभी हिम्मत हारते तो दिव्या के बंनाए हुए चित्र देखकर कहते -अपने भाई को नयी राखी नहीं बांधोगी। अपनी हर सुख दुख वह चित्र से कह देते थे।

भईया कहते थे कि इस राखी का मान रखुंगा।

भईया पहले बहुत गुस्सैल थे,

जिस दिन दिव्या ने राखी बांधी उसके बाद उन्होंने कभी गुस्सा नहीं किया।

उन्हें लगता था कि, वो गुस्सा करेंगे तो दिव्या के राखी को चोट पहुंचेगी।

पहले हमेशा चिंता करते थे ,कि हमारे मां पापा बचपन में क्यों चले गए?

आज तक भइया इस चित्र को संभाल कर रखें है, आप इसे न फेंको।

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया मैं गया तो दरवाजे पर दिव्या और दिव्या के मां पापा खड़े थे।

दिव्या बोली ठेले वाले भईया आप अपना जन्मदिन भुल गए। जन्मदिन मुबारक हो आपकी जिंदगी खुशियों से भरा हो। अपने जन्मदिन कि बधाई सुन भइया बहुत खुश थे। दिव्या अपने हाथ में एक बड़ा सा कैनवास लेकर खड़ी थी।

मेरी आंखें कैनवास पर टिकी थी, कैनवास पर बड़ा सा रंगीन सा चित्र था

उस कैनवास पर बीचोबीच एक लकिर खींची गई थी,एक ओर दिव्या भइया को राखी बांध रही थी यह तो कैनवास का बायां भाग का चित्र था, दायां भाग में भईया दिव्या को अस्पताल में एडमिट करवा रहे थे। मैं जोर से बोला-कितना अच्छा चित्र बनायी हो।

दिव्या के पापा बोले-इसका यह चित्र बहुत लोगों ने पंसद किया है,इसी चित्र के कारण दिव्या का काॅलेज में एडमिशन हो जायेगा।

दिव्या बोली-इसलिए मैं आपके लिए वह चित्र लायी हुं, इसके हु-ब-हु बनाकर लोगों को बेच दि हुं।

हमें विश्वास है- कि आपके पास यह चित्र ज्यादा सुरक्षित रहेगा।

आपके जन्मदिन पर मेरे तरफ से यही उपहार समझकर रख लिजिए।

भइया खुशी से बोले-मेरी दिव्या अब कालेज में पढ़ने जायेगी।

वहां बहुत अच्छा अच्छा चित्र बनाना, और हां कालेज जाकर अपने ठेले वाले भईया को मत भुल जाना।

दिव्या के पापा बोले-मुझे माफ कर दो,आज कहीं न कहीं तुम्हारे वजह से हमारी बिटिया कालेज में पढ़ने जायेगी। इसके लिए बहुत सारे आफर आ रहा है।

भईया बोले-सब ऊपरवाला करता है, हमने कहां कुछ किया है।

भाभी बोली माफ कीजिए हमें।हम इनके लिए चाय नाश्ता बनाकर लाती हूं।

सब बहुत खुश थे।

भले ही हमारे भइया ठेले वाले हैं, किंतु हर व्यक्ति का अपना एक अलग पहचान होता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने पहचान में और अपने जिंदगी में मस्त होता है।

भले ही वह एक फकीर ही क्यों न हो,सब अपने जिंदगी के रंग में रंगे होते हैं।


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