Amit Singhal "Aseemit"

Drama Tragedy Crime

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Amit Singhal "Aseemit"

Drama Tragedy Crime

माला के बिखरे मोती (भाग १०२)

माला के बिखरे मोती (भाग १०२)

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          इधर, धनंजय और संजय अभिलेख को लेकर अपने घर वापस आ गए हैं। अभिलेख को सही सलामत घर वापस आया देखकर, घर के सभी सदस्यों के चेहरे खिल उठे हैं। ईशा ने भागकर अभिलेख को अपने सीने से लगा लिया है। घर के बाक़ी सदस्यों ने भी अभिलेख को भरपूर दुलार दिया है।

     थोड़ी देर के बाद, पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर पाटिल ने धनंजय को फ़ोन किया है। अब धनंजय और इंस्पेक्टर पाटिल की बातचीत शुरू हुई है।

धनंजय: हेलो इंस्पेक्टर पाटिल...एक बार फिर से आपका और आपकी टीम का बहुत बहुत धन्यवाद। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं किन शब्दों में आपको धन्यवाद कहूं!

पाटिल: अरे धनंजय जी, धन्यवाद की कोई ज़रूरत नहीं है। यह तो पुलिस का फ़र्ज़ होता है कि जनता की सुरक्षा करे। कोई अपराध न हो सके। लेकिन अपराध तब भी होते ही रहते हैं। अगर एक नागरिक होने के नाते सबको अपनी ज़िम्मेदारी और अधिकार याद रहें, तो इन अपराधों पर काफ़ी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।

धनंजय: जी हाँ, आपने बिल्कुल ठीक कहा।

पाटिल: मैं आपकी और आपके परिवार की प्रशंसा करता हूं कि आप लोगों ने बिना देर लगाए और बिना डरे, अभिलेख के लापता हो जाने की सूचना पुलिस को दी थी। जिससे हम लोगों को भी समय से अभिलेख को खोजने में आसानी रही। वर्ना ये दोनों बदमाश अभिलेख के साथ कुछ भी अनहोनी कर सकते थे।

धनंजय: इंस्पेक्टर पाटिल, क्या इन दोनों ने अपना मुंह खोला?

पाटिल: जी हाँ, मैंने यही बताने के लिए आपको फ़ोन किया है। इन दोनों भाइयों को अपना हेयर सैलून खोलने के पैसे चाहिए थे। तभी अभिलेख के रूप में इनको ख़ज़ाने की चाबी मिल गई थी। जब हेयर सैलून में आपने अभिलेख को स्मार्टफ़ोन की वजह से डांटा था, तब से ही इन दोनों के दिमाग़ में प्लान आया था कि अभिलेख को नया स्मार्टफ़ोन दिलवाने का लालच देकर किडनैप करेंगे और फिर आपसे पैसे ऐठेंगे।

धनंजय: इंस्पेक्टर पाटिल, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई थी, जो मैंने अपने बच्चे को हेयर सैलून में डांटा था।

पाटिल: चलिए, कोई बात नहीं। लेकिन आगे से ध्यान रखिएगा। अंत भला, तो सब भला। ठीक है, मैं अब फ़ोन रखता हूं। इमरान और इरफ़ान का तो अब कानून ही इंसाफ़ करेगा। आप अपने बच्चे का ध्यान रखिए। नमस्कार।

धनंजय: एक बार फिर से आपका बहुत धन्यवाद। नमस्कार।

     इस बातचीत के बाद धनंजय फ़ोन काट रहा है।

     थोड़ी देर के बाद अभिलेख ने रोना शुरू कर दिया है। सभी लोग उसको चुप करवा रहे हैं। फिर अभिलेख घर के सभी सदस्यों को बता रहा है,

     "जब मैं पहले दिन पार्क में गया था, उसी दिन मुझे वे दोनों लड़के वहाँ मिल गए थे। फिर उन लड़कों ने मुझसे दोस्ती कर ली थी।"

धनंजय: बेटा, आपको याद होगा कि वे दोनों लड़के हेयर सैलून में हेयर कटिंग का काम करते हैं और वे दोनों लड़के आपसे उम्र में भी बड़े हैं। आपको ऐसे लड़कों से दोस्ती नहीं चाहिए थी।

अभिलेख: सॉरी पापा।

जय: कोई बात नहीं बेटा। लेकिन आगे से ध्यान रखना है। चलो, आगे बताओ।

अभिलेख: फिर अगले दिन उन दोनों लड़कों ने मुझे हेयर सैलून में नए स्मार्टफ़ोन के लिए पापा के डांटने की बात याद दिलाई और फिर एक दिन के बाद मुझे नया स्मार्टफ़ोन सिर्फ़ दो सौ रूपये में दिलवाने की बात कही। 

अजय: अभिलेख बेटा, तब क्या आपने यह नहीं सोचा था कि इतना महंगा स्मार्टफ़ोन सिर्फ़ दो सौ रूपये में कैसे मिल सकता है?

अभिलेख: नहीं ताऊजी। मैं नए स्मार्टफ़ोन के लालच में पागल हो गया था। इसलिए मैं पार्क से लौटने के बाद बहुत खुश था। मैं उनके लालच आ गया था। फिर कल शाम उनमें से एक लड़के ने मुझसे कहा कि वे नया स्मार्टफ़ोन अपने साथ लाना भूल गया है। नया स्मार्टफ़ोन दूसरे लड़के के पास है। इसलिए दूसरे लड़के के पास जाने के लिए मैं पहले वाले लड़के के साथ उसकी बाइक पर बैठकर चला गया था। 

विजय: अभिलेख बेटा, आपको उस लड़के के साथ उसकी बाइक पर बैठकर नहीं जाना चाहिए था। कभी भी किसी अंजान व्यक्ति या पहचान के व्यक्ति के साथ भी मम्मा पापा के बिना कहे, आपको कहीं नहीं जाना चाहिए।

अभिलेख: जी ताऊजी। मैं आगे से आपकी बात याद रखूंगा।

आरती: यह हुई न बात! अच्छा, अब आगे बताओ।

अभिलेख: वहाँ पहुंचकर उन दोनों लड़कों ने मुझे एक छोटी सी कोठरी में बंद कर दिया था और मुझसे पापा का फ़ोन नंबर पूछा था। फिर वे दोनों लड़के मुझे अपने साथ पुरानी पहाड़ी के पीछे ले गए थे। जहाँ से पापा और संजय ताऊजी मुझे लेकर घर वापस आ गए हैं। बस मुझे इतना ही पता है। 

भावना: यह तो उन लड़कों ने बहुत ही बुरा किया है हमारे अभिलेख के साथ। ईश्वर उनको कभी माफ़ नहीं करेगा। कोई बात नहीं अभिलेख बेटा। अब सब ठीक है।

अभिलेख: लेकिन मुझसे ग़लती हो गई है कि मैंने नए स्मार्टफ़ोन दिलवाने की ग़लत ज़िद की थी और मैं नए स्मार्टफ़ोन के लालच में उन दोनों लड़कों के चंगुल में फंस गया। उन दोनों लड़कों ने नया स्मार्टफ़ोन दिलवाने की मेरी ज़िद का ही फ़ायदा उठाया था और मुझे किडनैप करके आपसे पैसे माँगे।

     यह कहते हुए अभिलेख ज़ोर ज़ोर से रोने लगा है और बोल रहा है,

     "सॉरी पापा...सॉरी मम्मा...सॉरी दादाजी...सॉरी दादीजी...सॉरी संजय ताऊजी..."

माला (मुस्कुराते हुए): अरे, इतनी सारी सॉरी।

आरती (अभिलेख से): लेकिन अभिलेख बेटा, तुमने अपने सभी ताऊजी को, अपनी सभी ताईजी को और दोनों बुआजी को सॉरी नहीं बोला है। चलो, शुरू हो जाओ...!

     आरती के इतना कहते ही सब हँसने लगे हैं और अभिलेख ने सबको अलग अलग "सॉरी" बोलना शुरू कर दिया है। 

     यहाँ अभिलेख का सबसे माफ़ी माँगना वाजिब भी है, जिससे सभी छोटे बच्चों को अभिलेख की कहानी पढ़कर सबक़ मिल सके कि ख़ुद के नए स्मार्टफ़ोन के बारे में इंटरमीडिएट पूरा करने के बाद ही सोचें, तो ही अच्छा है।

     चलिए, अभिलेख की किडनैपिंग के इस दिल दहला देने वाली घटना के सुखद अंजाम के साथ यश वर्धन ठाकुर के परिवार की खुशियाँ एक बार फिर से लौट आई हैं। लेकिन इस परिवार से तो सुख दुख आँख मिचौली खेलते ही रहते हैं। भविष्य में क्या होगा, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। (क्रमशः)


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