रात का ख़ौफ़नाक नज़ारा
रात का ख़ौफ़नाक नज़ारा
एक रात किसी काम से सुनसान सड़क पर मैं पैदल ही निकल गई। कुछ क़दम चलने के बाद अचानक पीछे से एक लड़के ने मेरा दुपट्टा उतारने की कोशिश की।
मुझे यह सब सहन नहीं हुआ। मैंने उस लड़के पर ताबड़ तोड़ मुक्कों और थप्पड़ों की बौछार कर दी। लड़का तो ज़मीन पर चारों ख़ाने चित्त हो गया।
लेकिन उस ढीठ लड़के ने खड़े होकर मुझ पर फिर से हमला किया। तब तो एक बार के लिए मैं डर ही गई। मैं सोच ही रही थी कि अब कैसे बचूं! तभी आस पास जो एक दो लोग चल रहे थे, वे उस लड़के पर टूट पड़े।
लड़के ने कान पकड़कर माफ़ी माँगी और वादा किया कि अब से वह छेड़खानी नहीं करेगा। फिर मैं अपना काम निपटाकर वापस घर आकर सो गई।
सुबह मेरे ज़हन में रात के ख़ौफ़नाक नज़ारे का ख़्याल भी न रहा। मैं हमेशा की वहमी हूँ। रात को डरना, उठ उठकर भागना और बड़बड़ाना, तो बचपन में रोज़ ही होता था। सब तो कहते थे, मुझ पर भूतों का साया हो गया है।
