माधवी
माधवी
इतिहास गवाह है कि, महिलाओं का शोषण सदियों से होता आ रहा है। आज भी स्थिति ज्यों कि त्यों बनी हुई है। घर को बनाती वही, संभालती वही, धात्री वही लेकिन आज भी पराई।
कहानी शुरू होती है, ऋषि विश्वामित्र के शिष्य गालव से, उन्होंने शिक्षा ग्रहण करने के बाद, विश्वामित्र से गुरु दक्षिणा लेने कि हठ की। जिससे उनके हठ से कुपित हो विश्वामित्र ने उनसे 800 श्वेत, श्याम कर्ण अश्व मांग लिया।
गालव ऋषि परेशान हुए लेकिन हताश नहीं, । इस कार्य में उनकी मदद की उनके मित्र पक्षीराज गरुण ने । दोनों ने पूरे भूमंडल की परिक्रमा कर, राजा ययाति के दरबार में जाने का फैसला किया।
राजा ययाति ने उनकी बातें सुनी, लेकिन उन्होंने अपने कोष के खाली होने कि बात कह अश्व देने में असमर्थ होने की बात कही, लेकिन अपनी पुत्री माधवी को यह कह कर सौंप दिया कि, इसे यह वरदान है कि यह चार राजकुलों को कुल दीपक देगी.. यह हमेशा कुंवारी ही रहेगी चाहे कितने भी पुरुषों का संसर्ग हो।
मेरी पुत्री त्रैलोक्य सुंदरी है, इसे सौंप कर आप अश्व क्या पूरा राज्य किसी राजा से ले सकते हैं, और अपनी शर्त पूरा कर आप कन्या मुझे वापस कर दें, और उन्होंने ऋषि को अपनी कन्या सौंप दी।
यहीं से माधवी की दुर्दशा शुरू हुई। कोई पिता कैसे सम्पत्ति की तरह पुत्री को किसी के हवाले कर सकता है, क्या कन्या की के शर्त को पूरा करने का साधन थी।
गालव ऋषि माधवी को ले अयोध्या के राजा हर्यश्व के पास पहुंचे। जहां उन्होंने माधवी के गुण और रूप की प्रशंसा की और माधवी के बदले 800 श्वेत श्याम कर्ण अश्व की मांग की।
राजा ने कहा मेरे पास सिर्फ 200 अश्व ही इस किस्म के हैं, गालव ने निराश हो माधवी को उन्हें एक वर्ष के लिए छोड़ दिया।
राजा हर्यश्व और माधवी के पुत्र हुए वसुमना, जो आगे चलकर अयोध्या के प्रतापी राजा बने।
नियत समय पर गालव राजकुमारी को लेने पहुंचे।
उसके बाद वे माधवी के साथ काशी नरेश दिवोदास के पास पहुंचे। माधवी के रूप, गुण से मोहित हो, उन्होंने भी 200 अश्वों के बदले माधवी को एक वर्ष के लिए अपने पास रख लिया।
दिवोदास और माधवी से प्रतर्दन नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई।
इसी तरह माधवी भोजराज उशिनर को अश्वों के बदले सौंपी गई, जिनके पास भी सिर्फ 200 ही श्वेत श्याम कर्ण अश्व थे।
राजा उशिनर ने शिवि नाम का प्रतापी पुत्र हुआ।
अब नियत शर्त की अवधि समाप्त हो रही थी। पृथ्वी पर ऐसा कोई राजा नहीं है जिसके पास इस प्रकार के अश्व हों।
अंत में ऋषि गालव ने विश्वामित्र के पास, खुद की हार मान विनती की। उन्होंने 600 अश्वों सहित माधवी को गुरु को भेंट में दे दिया।
विश्वामित्र ने गालव को माफ कर 600 अश्व और माधवी स्वीकार कर ली।
माधवी और विश्वामित्र के संयोग से अष्टक नाम का पुत्र हुआ। जो विश्वामित्र के राज्य का राजा और शुल्क से लाए अश्वों का मालिक बना।
ऋषि गालव को शर्त से मुक्त करा माधवी अपने पिता के घर वापस लौट आईं।
सुंदरता और वरदान में चिर कुंवारी होने का मूल्य उसे किस तरह चुकाना पड़ा।
पिता ने उसके स्वयंवर का प्रस्ताव रखा, जिसे उसने मना कर जंगल में तपस्या कर परमब्रह्म को पाना ही सही समझा।
कहानी खत्म नहीं होती...... भोग के लिए, संतानोत्पत्ति के लिए स्त्री की ये कहानी.....
दुहराई जा रही है, हर सदी में.....
समाप्त
