लव मैरिज
लव मैरिज
पार्क में बैठे बैठे शाम हो गई चलो चलते हैं अब तो क्लास भी खत्म हो गई होगी बाय कहकर नेहा चली गई नीरज अभी भी बेंच पर बैठा था।
शोख चंचल बिंदास ऐसा अंदाज था नेहा का पहली ही नजर में नीरज दिल दे बैठा और फिर शुरू हुआ रोज मिलने का सिलसिला। घर पर किसी को भनक भी नहीं थी। वह रोज टाइम पर ऑफिस जाता और घर आता था। गली मोहल्ले में उसकी शराफत की मसाले दी जाती थी।
इतना शरीफ है कि किसी भी लड़की को नजर उठा कर नहीं देखता। नेहा थी ही ऐसी नीरज के ऑफिस के सामने नृत्य अकेडमी में नृत्य सिखाती थी। दोनों की हालत यह थी कि वह एक दूसरे के बिना जी ही नहीं सकते थे किंतु नीरज के परिवार में बेटे की पसंद का कोई महत्व नहीं था।
वह जानता था कि माता-पिता को सुशील, सुघड़, गृह कार्य दक्ष, शांतिप्रिय बहू चाहिए जो घर संभाल सके। नौकरी वाली नहीं, नेहा तो इसके बिल्कुल विपरीत थी और नृत्य की अध्यापिका को वह अपने घर की बहू बनाने से रहे पर मैं किसी और से विवाह करके तीन जिंदगियां बर्बाद नहीं होने दूंगा। कुछ समय के लिए परिवार की नाराजगी झेल लूंगा चाहे कल सुबह जाकर ही कोर्ट में क्यों न करनी पड़े मुझे लव मैरिज।