लोथल day-3
लोथल day-3
भारी चहल -पहल थी। फारस से एक बड़ा जहाज आने वाला था। हाज के नाविक ने दूर से ही इशारा कर दिया था। लोथल के गोदीबाड़े में पहली बार कोई इतना बड़ा जहाज आ रहा था। हड़प्पा सभ्यता का यह बन्दरगाह वाला नगर पूरी सभ्यता के व्यापार के लिए नींव था। ताम्बा, लाजवर्द, कार्नेलियन, नील आदि कई वस्तुओं का आयात -निर्यात इसी बंदरगाह के जरिये होता था। यहाँ पर बेलनाकार, वर्गाकार, वृत्ताकार आदि कई मुहरों का उपयोग लेनदेन के लिए होता था।
दाढ़ी -मूँछ वाले पुरुष शाल लपेटे इधर -उधर घूम रहे थे। पुरुषों ने सीप, कार्नेलियन आदि के बने हुए आभूषण गले और कानों में पहन रखे थे। यहाँ कुछ स्त्रियां भी मौजूद थी स्त्रियों ने हाथों में चूड़ियाँ, कानों में बालियाँ और गले में कई हार पहन रखे थे। अधिकांश आभूषण मिट्टी,कार्नेलियन,लाजवर्द,सीप आदि के बने हुए थे।
नगर और गोड़ीबाड़े को जोड़ने वाली सड़क साफसुथरी और चौड़ी थी। सड़क के किनारों पर मिट्टी से बने हुए बड़े -बड़े कूड़ेदान रखे हुए थे। यहाँ के निवासी साफ़ सफाई को पसंद करने वाले थे। सड़क के दोनों तरफ घर बने हुए थे। घरों के बाहर नाली बनी हुई थी, घर का उपयोग लिया हुआ गन्दा पानी सड़क के बाहर नाली में आता था। सड़क भी साफ-सुथरी बनी रहती थी। घरों में पानी के लिए कुएँ बने हुए थे।
नगर की व्यवस्था देखने के लिए विभिन्न समितियाँ बनी हुयी थी जो साफ़ -सफाई, जन्म -मृत्यु गणना, विदेशियों की देखभाल आदि कार्य करती थी। विदेशियों की देखभाल करने वाली समिति का प्रमुख पोतवा था। तब ही पोतवा अपनी बैलगाड़ी पर आते हुए दिखा। उसकी बैलगाड़ी को दो बैल खींच रहे थे। बैलों ने भी विभिन्न आभूषण पहने हुए थे। गाड़ी पर एक सिंहासन सा बना हुआ था, जिस पर पोतवा बैठा हुआ था। पोतवा का सहायक सिंहासन से नीचे बैठा हुआ था और बैलगाड़ी चला रहा था। पोतवा की बैलगाड़ी के पीछे एक और बैलगाड़ी आ रही थी ;उसमें केवल चालक बैठा हुआ था। पोतवा फ़ारस से आ रहे बड़े व्यापारी को लिवाने आया था।
पोतवा ने कानों में लाजवर्द के बने हुए टॉप्स पहन रखे थे। पोतवा ने सिर पर सीपियों से बना हुआ मुकुट धारण कर रखा था। पोतवा की हलकी -हलकी मूँछें दाढ़ी आ रही थी। पोतवा के सिर के बाल लम्बे -लम्बे थे। पोतवा ने गले में सीपियों का बना हुआ हार पहन रखा था। पोतवा ने रेशम की बनी हुई शॉल लपेट रखी थी। पोतवा की वेशभूषा आदि से स्पष्ट पता चल रहा था कि वह नगर का एक प्रभावशाली व्यक्ति है।
"जहाज आ रहा है। गोदीबाड़े में जहाज का प्रवेश हो गया है।" किनारे पर खड़े श्रमिक ने सूचना दी।
पोतवा अपने सिंहासन से उठ गया था ;उसके सहायक ने उसे बैलगाड़ी से नीचे उतरने में सहयोग दिया। पोतवा किनारे पर जाकर खड़ा हो गया था। जहाज कुछ ही देर में किनारे पर आ खड़ा हुआ।
जहाज से व्यापारी बाहर निकला और पोतवा को देखकर दूर से ही अभिवादन किया। पोतवा ने भी अभिवादन के जवाब में अभिवादन किया।
व्यापारी ने ऊपर से नीचे तक लबादा पहना हुआ था। उसके गले में भी बहुमूल्य पत्थरों से बनी हुई माला थी। व्यापारी ने सिर पर पगड़ी के जैसे सूती कपड़ा बाँध रखा था। व्यापारी के पीछे ही एक युवक भी बाहर आया। व्यापारी और युवक दोनों जहाज से नीचे उतर गए थे।
"लोथल में आपका स्वागत है।" पोतवा ने व्यापारी से कहा।
"पोतवा,यह मेरा पुत्र दोस्टी है। आपकी मुहर से सील थैला मिल गया था और आपके सन्देश पर ही हम यहाँ आये हैं। आपके काम की सारी वस्तुएं यथा रेशम, लाजवर्द आदि जहाज में है। कुछ महीनों बाद हम नील, कपास आदि एकत्रित करके फारस लौट जाएँगे।" व्यापारी रुहान ने कहा।
"बिलकुल रुहान। हम तो स्वयं भी वणिक ही हैं। वाणिज्य और व्यापार के नियमों को भलीभाँति जानते हैं।" पोतवा ने झुककर पुनः अभिवादन किया।
"आप दोनों के ठहरने की व्यवस्था अतिथि घर में कर दी गयी है।" पोतवा ने बैलगाड़ी की तरफ चलने का इशारा करते हुए कहा।
"जहाज पर लदी हुई वस्तुएं उतरवाने का प्रबंध करवाओ।" पोतवा ने वहाँ उपस्थित श्रमिकों को कहा।
पोतवा,रुहान और दोस्टी को लेकर आगे बढ़ा। दूसरी बैलगाड़ी में रुहान और दोस्टी बैठ गए थे।
बैलगाड़ी मुख्य सड़क पर आ गयी थी। मुख्य सड़क और भी चौड़ी थी। सड़कें एक -दूसरे को समकोण पर काट रही थी। नगर की साफ़-सफाई और सुनियोजित प्रबंध को देखकर दोस्टी ने कहा,"पित्र, यह तो बहुत ही उत्तम नगर है। आपके साथ आने का विचार एकदम सही विचार था। "
रुहान,दोस्टी को देखकर मुस्कुरा उठा। रुहान और दोस्टी को अतिथि गृह में रुकवाकर उनसे विदा लेते हुए पोतवा ने कहा कि,"कल रात्रि का भोजन मेरे निलय में एक साथ करेंगे। मैं अपना वाहन भेज दूँगा। "
"शुक्रिया ;अवश्य ही आएंगे।" रुहान ने निमंत्रण स्वीकार करते हुए कहा।
अगली सुबह दोस्टी अपने पित्र से अनुमति लेकर नगर घूमने निकल गया। वाणिज्यिक और व्यावसायिक केंद्र होने के कारण नगर की हाट में हमेशा ही चहल -पहल रहती थी। हाट में घूमते हुए दोस्टी की नज़र एक घर की छत पर गयी। छत पर खड़ी लड़की अपने अलकों को सँवार रही थी और कुछ गुनगुना रही थी। लड़की का पैर एकदम से फिसला और वह छत से गिर गयी। लड़की जमीन पर गिरती,उससे पहले ही दो मजबूत हाथों ने उसे थाम लिया। दोनों मजबूत हाथ दोस्टी के थे।
"तुम्हें पहले कभी नहीं देखा। नगर में नए हो क्या ?" लड़की ने कहा।
"लाची,आप सही तो हो न।" कुछ ही देर में बहुत से लोग वहाँ एकत्रित हो गये थे।
"बिलकुल ठीक हूँ। आप जाकर अपना काम करिये।" सभी लोग वहाँ से चले गए। दोस्टी भी जाने लगा, तब लाची ने कहा,"तुम कहाँ चले ? प्रश्न का उत्तर तो दो। "
"मैं फ़ारस से अपने पित्र रुहान के साथ कल ही आया हूँ। मेरा नाम दोस्टी है।" दोस्टी ने कहा।
"अच्छा,व्यापारी -पुत्र हो। मेरा नाम नहीं पूछोगे।" लाची ने कहा।
"अभी सब लोगों ने पुकारा ना। तुम्हारा नाम लाची है।" दोस्टी ने मुस्कुराकर कहा।
"अब विदा चाहता हूँ। पित्र मेरी राह देख रहे होंगे।" दोस्टी ऐसा कहकर वहाँ से चला गया था।
लाची उसे जाता हुआ तब तक देखती रही, जब तक कि वह आँखों से ओझल नहीं हो गया था। दोस्टी, लाची के दिल को छूकर चला गया था।
"आज रुहान और दोस्टी घर पर भोजन के लिए आमंत्रित हैं। यह विष उनके खाने में मिला देना। उनकी लायी सारी वस्तुएँ हमारी हो जायेंगी और बदले में कुछ देना भी नहीं पड़ेगा।" लाची ने अपने पिता पोतवा और माता को वार्तालाप करते सुना।
"अरे लाची तुम कहाँ चली गयी थी ?",लाची को देखते ही पोतवा ने कहा। लाची ने आपबीती सुना दी।
"आज रात्रि में दोस्टी और उसके पिता दोनों को शुक्रिया कह देंगे।" पोतवा ने कहा।
"क्या सही में पिता ?" लाची के मुँह से न चाहते हुए भी निकल गया और वह वहाँ से चली गयी।
लाची चुपके से अतिथि गृह के लिए निकल गयी। उसने दोस्टी और उसके पित्र रुहान को सारी बात बताकर, तुरंत ही लोथल नगर छोड़ने के लिए कहा।
दोस्टी और रुहान अतिथि गृह से निकलते, उससे पहले ही पोतवा के रक्षकों ने अतिथि गृह को घेर लिया था। लाची ने उन्हें भगाने की कोशिश की। पोतवा के रक्षकों ने उन्हें रुकने के लिए विषैली सुई को फूँक से फेंका और एक सुई लाची को लगी।
"दोस्टी भाग जाओ। अभी दूसरे जहां की यात्रा पर जा रही हूँ अगले जनम में जरूर मिलेंगे।" लाची की आँखें हमेशा के लिए बंद हो गयी थी।
दूसरी सुई दोस्टी को लगी और वह भी लाची का हाथ थामे वहीं ढेर हो गया। तब तक पोतवा ने आकर अपने रक्षकों को रोक दिया था।
"तुम्हारे लालच ने दोनों बच्चों की जान ले ली। दोनों साथ जी नहीं सके, लेकिन दोनों को एक साथ दफना देना ताकि शांति से आगे की यात्रा पर जा सके। मैं आज ही अपना खाली जहाज लेकर जा रहा हूँ।" रुहान ने पोतवा को धिक्कारते हुए कहा और वहाँ से चला गया।
पश्चाताप की अग्नि में जलते पोतवा ने लाची और दोस्टी को एक साथ दफना दिया और सारा सामान समंदर में बहा दिया। लोथल में युग्म समाधि का चलन प्रारम्भ हो गया।
