लल्लू की बिन ब्याही मां
लल्लू की बिन ब्याही मां
ख़ामोशी
का एहसास जो है सोचती हूँ कि एक चिट्ठी लिखूँ
मै उस वक्त बारह साल की थी
जब उन चार ने मिलकर मुझे नोचा था, मै चींख चिल्ला रही थी पर मानों किसी हैवान ने दबोच लिया हो छुड़ाने की हर कोशिश नाकाम रही माँ ने कई बार माना किया था उस पुराने मंदिर की तरह मत जाना कभी
भला मैं कहा मानाने वाली थी,
उस पुराने मंदिर के पास खूब ढेर सारी गौरैया
आती थी
आपको तो पता होगा न ये कौन सी चिड़िया है
उनको देखना घंटो तक उनकी चचाहट को सुनाना अच्छा लगता था दिल को सकूंन मिलता था
दिन से दोपहरी और दोपहरी से सांझ
घर के नाम पर कुछ था ही नहीं बाप शराबी जो अधिकतर गरीब घरों की लड़कियों के पिता होते है.. रोज रात को शराब पीकर माँ को पिटना, गाली बकना रोज का यही चलता था एक दिन तो पता चला ट्रक के निचे गिरकर मर गया,
सच कहूं तो
हमको तो रोना भी नहीं आया,
वो क्या है ना उसने कभी हमसे प्यार से बात ही नहीं
किया तो भला हम काहे रोते अच्छा हुआ मर गया
लेकिन हमारी माई बहुत फुट फुट के रोइ थी उस दिन हम तोह मस्त खुश होकर निकल दिए चावल लेके हाथ में पुरानी मंदिर की तरफ......
तभी वो हैवान आ गए हम बहुत लड़े पर हमरे में इतना कहाँ दम हड्डियों का ढांचा ही तो थे क्योंकि एक वक्त खाना भी पेट भर मंगलवार को मिलता था शाम के वक़्त भंडारे में........एक एक कर वो सब हम पर चढ़ गए हम बहुत चीखे चिल्लाये पर कुछ नाही हुआबस खून बहता गया ऐसा लग रहा था हर तरफ से हमरे शरीर को नोचा जा रहा है और नीचे से हमें किसी ने चीर दिया हो
और वहाँ से कई लोग गुज़रे ओर किसी एक की भी हिम्मत ना हुई बोलने की भी
हमें नोचने के बाद अधमरे नँगे बदन से बीच सड़क में छोड़ दिया
तब भी कोई नहीं आया बस पैरों की खटखट कर सब आगे बढ़ते चले गए..
तभी एक बाबा जो अक़्सर हमे मिलते थे अपना कम्बल उतार हमारे ऊपर ढक दिए और आँसू गिरा बोले बिटिया तू बहुत ही मासूम है कितनी बार बोले थे थोड़ा तेज बन ये दुनिया तेरी मासूमियत के लायक नहीं।
उठा हमें वो झोपड़ी में ले गए हमारी देखभाल किये हम तो बौराये से ही रहते थे बस फर्क़ इतना था पहले फुटपाथ पर और अब बाबा की झोपड़ी में वही दर्द धीरे धीरे सात महीना गुज़र गया और हमें एहसास हुआ कि हम पेट से हैं सच बताए तो बहुत ही घिन आयी खुद से और उस बच्चे से तो मानो नफरत हो गयी थी
तभी 2 महीना बाद एक लड़का को जन्म दिए
जब जब उसे देखते थे तब सोचते थे ये पाप है, हैवान है बस ज़ख्म देता है हर वक़्त
कुछ साल बीते ही थे, हम 16 साल के हुए तब तक थोड़ा मोह आ गया था लल्लू नाम रख दिये थे उसकालेकिन हमें न पता थी किस्मत ऐसा खेल खेलेगी अभी तो प्रेम हुआ ही था उससे
फिर से उसके साथ जीना सीख रहे थे तभी एक दिन एक औरत लल्लू को हमारे हाथ से छीन भाग रही थी कि सामने से ट्रक मार दिया हमारा लल्लू..................................................
उस दिन के बाद बौरा गए हमअब अचंभा होता है हम तो उससे प्रेम भी ना करते थे फिर भी पगला गए थे
पर अब समझ आता है प्रकृति का नियम है
इक औरत नफ़रत कर सकती है पर माँ नही। हमे पागलखाने भर्ती करा दिया गया कभी हँसते थे तो कभी ज़ोर ज़ोर से रोने लगते लल्लू की खून से सनी बुसेट को हर वक़्त सीने से लगाये फिरते थे
ऐसा हो गया था कि इक लोती जीने की वजह छीन ली गयी हो हमसें
बस यूं ही कुछ साल बीत गया
उसके बाद एक मेम साथ ले गयी और नई ज़िन्दगी दे दी हमको पढ़ाया लिखाया अब हम सिर्फ लिखते हैं
क्योंकि ज़ख्म तो भरेंगे नहीं इह मुहे तो सदा ही हरे रहेंगे इसलिए दूसरों को प्रेरणा देने की सोचते हैं
और उस दिन के बाद हमने अपनी माई से मिलने की कोशिश ना ही किये क्योंकि वो एक बार पहले ही मर चुकी थी हमारी बर्दाश्त ना ही कर पाती...