हत्या
हत्या
अकेली मैं गुनहगार थी उस हत्या की,
क्या वजह थी जो मुझे ऐसा करना पड़ा।।
सब कुछ इतना अचानक हुआ मुझे कुछ समझ ही नहीं आया,
क्योंकि पहला हमला तो उसी ने किया था
मुझे कोई पछतावा भी नहीं हुआ,
सोचा आज तो इसका अंत होकर ही रहेगा,
मेरे हाथ से उसका खून हुआ था,
ठीक मेरे बाजू में उसकी लाश
खून से सनी थी,
परिवार का हर सदस्य एक टक मुझे देखे जा रहा था,
मानो उसकी हत्या में किसी का हाथ नहीं,
हाँ दोष तो सारा मेरा ही था ,
अकेली मैं गुनहगार थी उस हत्या की,
क्या वजह थी जो मुझे ऐसा करना पड़ा।।
सब कुछ इतना अचानक हुआ
मुझे कुछ समझ ही नहीं आया ,
क्योंकि पहला हमला तो उसी ने किया था
मुझे कोई पछतावा भी नहीं हुआ,
सोचा आज तो इसका अंत होकर ही रहेगा
बहुत परेशान करके रखा था ,
आखिर कब तक माफ़ करती
इस नालायक मच्छर को....
अब हम सब आराम से पढ़ सकते है।।