मासूमियत भरा बचपन
मासूमियत भरा बचपन
एक छोटा सा बच्चा रोज़-रोज़ मुखर्जी नगर के पोस्ट ऑफिस जाता और पोस्टमैन से पुछता मेरी कोई चिट्ठी आई है क्या? पोस्टमैन हिकारत भरी नजरों से देख उसे वहां से भगा देता नहीं आई ऐसा बोलकर,
बच्चा निराश हो जाता था।
एक दिन एक विद्यार्थी जिसका नाम तो नहीं पता किसी काम से पोस्ट ऑफिस गई और उसकी नज़र उस बच्चे पर पड़ी जिसे पोस्टमैन भगा रहा था, उसने उस बच्चे से पूछा तुमको किसकी' चिट्ठी' का इंतजार है। बच्चे के आंख में चमक आ गई और उसने बताया भगवान की।।
उसने पुछा भला वो कैसे तुमको भगवान के खत का इंतजार है।।
बच्चे ने बताया कि उसकी मां बहुत बीमार है, वह अभी हॉस्पिटल में है।
मुझसे डॉक्टर ने बताया है, अब तुम्हारी मां को भगवान ही बचा सकते हैं, तो मैंने भगवान को चिट्ठी लिखकर पुछा है कि वह कब तक आ रहे हैं मेरी माँ को बचाने इतना सुनकर उसकी आंसू ही नहीं रुके के आँखों के।।
उस विद्यार्थी ने बच्चे से पुछा तुम्हारी मां कौन से हॉस्पिटल में है और उसके बाद बच्चे को भरपेट खाना खिलाया, फिर उसकी माँ के पास छोड़ने गई।
वहाँ सचमुच उस बच्चे की मां एडमिट थी, और उनकी हालत बहुत ही ख़राब थी। पता चला की वो मुखर्जी नगर में किसी कोचिंग में साफ़ सफाई का काम करती थी, जैसे तैसे किसी ने एडमिट करा दिया था,
यह सब देखने के बाद उसने महिला की ढंग से इलाज करवाने के लिए डॉक्टरों से बात किया,
फिर कुछ सोशल मीडिया की मदद से एक कैंपेन चला, कुछ UPSC aspirants की मदद से हास्पिटल के बिल पेमेंट किया।।
उसके बाद उसने उस महिला को एक चिट्ठी लिखकर डॉक्टरों को देकर वापस आ गई।
जब महिला ठीक हो गई, तब वह बिल मांगी, जिसे देखकर कर वह घबराई, डॉक्टर ने हंसते हुए वह चिट्ठी देकर कहा आप चिंता न करें पेमेंट हो गया है। वह महिला उस चिट्ठी को पढ़ने लगी लिखा था शायद मैं वह जरिया हूँ, जिसे भगवान ने आपकी मदद के लिए भेजा है। हमने अपने कुछ दोस्तों और सोशल मीडिया के माध्यम से कुछ पैसे एकत्रित करके ये सब किया है,
आप अपने बच्चे को धन्यवाद ज़रूर बोलना। मैं उससे मिलने बाद ही आपकी मदद कर पाई।। उसके भगवान पर विश्वास करने के कारण आप स्वस्थ होने में कामयाब रही।
कितना मासूमियत भरा होता है बचपन।।
हम सब विद्यार्थी अपने परिवार से दूर है तो एक मां का पास ना होने का दुःख समझते है, इसलिए नहीं चाहते कोई भी अपने परिवार से दूर रहें।।