लकवाग्रस्त समाज
लकवाग्रस्त समाज
"जया कल तैयार हो जाना, कल लड़के वाले आने वाले हैं" जया की माँ बिंदु ने कहा।
जया जब भी रिश्ते की बात सुनती तो धक से रह जाती। उसे अपना पुराना समय याद आ जाता और मन कड़वाहट से भर जाता। उसने घबराते हुए मां से कहा- "मां लड़के वालों को मैं खुद को दिखा दिखा के और लड़कों को देख देख कर परेशान हो गई हूँ। मैं कितनी बार बोल चुकी हूँ नहीं करनी है शादी। सब कुछ तो लुट गया है मेरा, बचा ही क्या है शादी करने के लिए?" यह कहते-कहते जया रुआंसी हो गई।
"पर घर पर भी कितने दिन रखे तुझे। बेटियाँ पराया धन होती हैंं। एक न एक दिन तो जाना ही होता है उन्हें अपने घर। लड़के वाले भी दूर शहर के रहने वाले हैं, उन्हें कुछ भी नहीं पता चलेगा। "-यह कहते-कहते माँ चिंता में पड़ गईंं।
जया फिर बोली- "आपने लड़के वालों को सब सच बता दिया है या नहीं। पहले से ही सब सच बता दिया जाए तो सही रहता है। "माँ ने जया को चुप कराते हुए कहा-"कोई ऐसी बातें बताता है क्या भला और बताने की क्या जरूरत है, चुपचाप शादी कर लो। शादी के बाद मालूम पड़े तो बोल देना वह हादसा था। "
जया बोली-"आप नहीं समझ सकतींं मुझ पर क्या बीतती है। जब वह आते हैं, उनको सच्चाई पता चलती है। कितनों ने..... तो सच्चाई पता चलने पर सगाई तोड़ दी और यह सच्चाई कब तक छुपा सकते हैं। कहीं न कहीं से उनको पता चल ही जाता है। " जया की माँ बिन्दु बोली-"कौन सा वह मनहूस दिन था जिस दिन तू बाजार गई। न बाजार जाती न तेरे मुँह में कालिख पुतती। "माँ के मुँह से यह सुनकर जया रोने लगी और उसके पुराने जख्म फिर हरे हो गए। अपने को कोसते-कोसते वह उस मनहूस दिन को सोचने लगी।
आज से 3 साल पहले जया अपना सूट सिलवाने के पास जा रही थी। वह आधे रास्ते में पहुंची ही थी कि जया की गली का मनचला उसके पीछे-पीछे आ गया। बार बार जिद्द करने लगा कि जया उसकी मोटरसाइकिल में बैठ जाए पर जया ने मना कर दिया पर वह नहीं माना और जया का हाथ पकड़कर बैठाने लगा पर जया ने उसको थप्पड़ मार दिया। वह यह अपमान सह नहीं पाया और उसने एक दिन कालेज से अकेले आती जया को दबोच लिया और अपनी हवस का शिकार बना लिया और उस दिन से जया की जिन्दगी पूरी तरह से बदल गई और उसके जीवन में बदनुमा दाग पड़ गया। यह सोचते-सोचते जया सो गई।
अगले दिन जया तैयार हुई। उसने माँ की हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी। बिंदी लगाई। बालों को खुला छोड़ा हुआ था। गजब की सुंदर लग रही थी। जैसे ही उसका भाई और माँ कमरे में आई तो माँ बेटी की नजर उतारने लगी। छोटा भाई अपनी बहन का दर्द समझता था। बहन और माँ को हँसाते हुए बोला-"दीदी आज तो जीजा जी हमें मिल ही जायेंगे। "
बेटे की बात सुनकर माँ बोली-"तेरे मुँह में घी-शक्कर। जया को लड़के वाले शादी के लिए हाँ कर दें। "
अगले दिन लड़के वाले आए। उन्हें घर न बुलाकर मंदिर बुलाया। वहीं जया को दिखाया गया। जया को देखकर लड़के वालों ने हाँ कर दी। जया थी ही इतनी गजब की सुंदर की कोई उसे मना ही नहीं कर सकता था। लड़के वालों ने इंगेजमेंट की तारीख पक्की कर दी। घर में सभी खुश थे। माँ-पापा, भाई को एक उम्मीद की किरण नजर आई। तय दिन जया की इंगेजमेंट एक होटल में रखी गई। जया ने गुलाबी रंग का लहंगा पहन रखा था। किसी परी से कम नहीं लग रही थी। समारोह में करीबी रिश्तेदार बुलाए गये थे। लड़कों वालों के भी कुछ करीबी रिश्तेदार आ चुके थे। सभी लड़के वालों का इंतजार करने लगे। लड़के वाले चिल्लाते हुए होटल में घुसे। लड़के वाले बहुत गुस्से में नजर आ रहे थे।
लड़के वाले आते ही जया के पापा पर बरसते हुए बोले-"आप लोगों ने झूठ के आधार पर रिश्ता बनाया। आपने इतना बड़ा सच छुपाया। आपको बताना चाहिए था कि आपकी बेटी के साथ दुष्कर्म हो चुका है। आप अपनी बेटी को हम पर थोपना चाहते थे। आपको लगा हम दूर के हैं तो हमें कुछ पता नहीं पड़ेगा। भले लोग देखे और फंसा लिया आप लोगों ने। हमें नहीं करना यह रिश्ता। मेरे बेटे के लिए लड़कियों की कमी थोड़े है। "यह कहकर लड़के के पिता ने अपने सभी रिशतेदारों से वहाँ से चलने के लिए कहा।
जया के पापा गिड़गिड़ाने लगे-"इसमें मेरी बेटी का कुछ कसूर नहीं था। गलती उस दरिंदे की थी। राह चलते मेरी बेटी को हवस का शिकार बना लिया। आप इस तरह रिंग सेरेमनी छोड़ के मत जाइये। "हाथ जोड़ते हुए जया के मम्मी-पापा गिड़गिड़ाने लगे पर वो लोग नहीं पसीजे।
तभी लड़का का चचेरा भाई हिमांशु जया के माता-पिता के पास आया और बोला मैं करूंगा जया से शादी। यह सुनकर हिमांशु के पापा सन्न रह गये और बोले- "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? क्या बोले जा रहे हो? अरे जब बड़े भैया ने मना कर दिया यहाँ रिश्ता नहीं करना तो नहीं करना ना किसी को। हजारों लड़कियाँ पड़ी हैं, यही थोड़े बची है बहु बनाने को?" यह कहकर अपने बेटे का हाथ पकड़कर चलने को कहने लगे।
हिमांशु ने हाथ छुड़ाते हुए कहा- "क्या कमी है इस लड़की में? बस यही कि इसके साथ जबरदस्ती हुई है। इसमें इस बेचारी की क्या गलती? जो अपराध करता है वह तो सीना चौड़ा किए हुए शान से घूम रहा है और जिसकी कोई गलती नहीं वह बेचारी घुट-घुट के जीवन काट रही है। कभी सोचा है इस परिवार के बारे मेंं कैसे एक एक दिन काट रहे होंगे। कम से कम मुझे जया के साथ हुए हादसे के बारे में पता तो है। अगर यह हादसा शादी के बाद हुआ होता तो हम क्या करते? इस जगह हमारी बहन-बेटी होती तो हम क्या करते। है कोई जवाब? एक हादसे के कारण क्या यह किसी की बेटी, बहन नहीं रही? अगर जया की जगह हम होते और हमारे साथ ऐसा होता तब? आज जया के माँ-बाप गिड़गिड़ा रहे हैं। हम खुद को इस जगह रखकर देखें तब। कभी हमारे चोट लग जाती है तो हम उसकी मरहम-पट्टी करते हैं, उसी तरह इसको जख्म दिया था, जिसे भरकर यह आगे बढ़ना चाहती है। मैं जया को ही अपनी जीवनसाथी बनाना चाहता हूँ वरना मैं शादी ही नहीं करूंगा कभी" यह कहकर हिमांशु ने जया के पापा के जुड़े हुए हाथ को पकड़ के उठाया।
हिमांशु की माँँ ने कहा- "हमें लड़की पसंद है, आइए हम बेटे-बहु की रिंग-सेरेमनी करते हैंं।