लिफ्ट और सीढ़ी

लिफ्ट और सीढ़ी

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एक बहुत बड़े और चमकदार मॉल में लगी लिफ्ट साथ वाली सीढ़ी को बड़े हिकारत से देख रही थी,उसकी उन नज़रों को देख सीढ़ी ने पूछा,"अब क्या हो गया है?क्या मेरे से फिर कोई गलती हुई है?लोग मेरे हर कोने पर पान की पीक से या फिर गुटखा थूक कर ड्राइंग बना देते है उसमे मेरा क्या कसूर है?

लिफ्ट घमण्ड से कहने लगी,"अरे,जब से मै यहाँ आई हूँ तब से देख रही हूँ।सारे लोग मेरे साथ ही आते जाते रहते हैं।तुम्हारी तरफ तो कोई देखता भी नहीं है।एक बात और याद रखो तुम, आइंदा मुझसे कोई बात नहीं करोगी तुम।"

और लिफ्ट बड़े ही शान से फिर ऊपर जाने लगी। सीढ़ी अपने पुराने दिनों की यादों में डूब गयी। जब लिफ्ट नहीं थी तब हर जगह सब लोग उसका उपयोग करते थे और साथ चलते रहते थे। 

शाम को अचानक मॉल के किसी कोने से धुआँ निकलने लगा।शायद वहां आग लगी थी।सारे लोग जल्दी जल्दी सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे। लिफ्ट की तरफ तो कोई देख भी नहीं रहा था। 

लोगों की बेरुखी देखकर लिफ्ट एकदम हकबका गयी,लेकिन अफरातफरी में वह किस से बात करती भला?

थोडे दिनों के बाद सब चीजें नार्मल हो गयी। सीढ़ी ने लिफ्ट से कहा,"तुम ने कभी मस्जिद या मंदिर में लिफ्ट लगी नही देखी होगी।चाहे मंदिर हो या मस्जिद कितने ही ऊँचे पहाड़ों पर क्यों न हो वहाँ लिफ्ट नही पायी जाती है।वहाँ सीढ़ियों से जाकर ही भगवान मिलते हैं।"


लिफ्ट आज सीढ़ी की तरफ देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी.....


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