Namrata Srivastava

Romance

4  

Namrata Srivastava

Romance

लौट के फिर आना

लौट के फिर आना

6 mins
481


अगस्त 03, 2018

बायोटेक से एम.एस.सी. करने के लिए प्रवेश परीक्षा हेतु पूरे लगन से साल भर तक कड़ी तैयारी किया मोलिमा ने। अपने गाँव के निकटवर्ती कस्बे के कॉलेज से उसने बी.एस.सी. में सर्वोच्च अंक पाये थे, सो पापा ने भी प्रोत्साहित करते हुए उसे अपने कैरियर को स्वयं चुनने की अनुमति ख़ुशी से प्रदान कर दी थी। अंततः उसका चयन हुआ उस शहर के इंस्टीट्यूट में, जहाँ उसके चाचा का घर भी था।

अब जबकि चाचा का घर शहर में मौजूद था तो फिर किसी हॉस्टल या किराये के लॉज में रहने का सवाल ही नहीं उठता। चाचा और चाची तो पारिवारिक समारोहों या त्योहारों में गाँव आते-जाते रहते थे, तो मोलिमा उनसे भली-भाँति घुली-मिली थी, पर उसके मन में उनके शहरी बच्चों के व्यवहार के प्रति आशंका थी। वे गाँव में बड़े होने के बाद नही आए, चाची बताती थीं कि गाँव के परिवेश में वे असहज महसूस करते हैं सो चाची उन्हें अपनी बहिन के पास छोड़ कर आती थीं। पर चाचा के घर पहुँचने पर उनके शहरी बच्चे मोलिमा के अनुमान के विपरीत उससे बड़े प्यार से मिले। जल्दी ही अपने पूर्वाग्रहों और आशंकाओं को निर्मूल करते हुए चाचा की दोनों बेटियों और एक बेटे को, जो उम्र में उससे कुछ साल ही छोटे थे, मोलिमा ने अपने व्यवहार कौशल से प्रभावित कर लिया।

काॅलेज के भव्य इमारत और सुरम्य वातावरण को देखकर मोलिमा को लगा जैसे उसका सारा परिश्रम सार्थक हो गया तथा इसकी अनुभूति से वो पुलकित हो उठी। नियमित कक्षाएँ प्रारम्भ हो चुकी थीं, और नए-नए मित्रों से भी सामना हो रहा था। होनहार मोलिमा ने जल्द ही कक्षा में अपने सराहनीय व्यक्तित्व की उपस्थिति दर्ज करा ली। एक दिन विभाग के डीन ने उसका परिचय उसके प्रोजेक्ट मेंटर हलीम से कराया, जो यहाँ का सीनियर रिसर्च स्काॅलर था। अपनी रिसर्च के साथ ही साथ वो अपने जूनियर छात्रों की पाठ्यक्रम को समझने में यथा संभव मदद करता था। अपनी कुशाग्रता और कुशलता से ही वह प्रोफ़ेसर्स का प्रिय था।

यहाँ तक तो सब कुछ ठीक था, पर मोलिमा और हलीम का समीकरण कुछ कैंची के दोनो फलकों की तरह था। मोलिमा की नज़र में हलीम अकड़ू था, तो हलीम मोलिमा को 'ग्राम बाला' कहकर उकसा देता। हालांकि हलीम के सम्मोहक व्यक्तित्व से उसके मातहत विद्यार्थी बहुत प्रभावित रहते थे। मोलिमा हलीम से जहाँ तक संभव हो मदद लेने से बचना चाहती थी, पर प्रोजेक्ट पूरा करने के सिलसिले में, कभी सैंपलिंग के लिए तो कभी पाठ्यक्रम सम्बन्धी कठिनाइयों के सन्दर्भ में, उसे न चाहते हुए भी हलीम की मदद लेनी ही पड़ती। हलीम मोलिमा की इस मानसिकता को पूरी तरह समझता था, और इसी वजह से वह भी मोलिमा पर जान-बूझकर रोब झाड़ता रहता था, और उसे तंग करता रहता था। इसी खींचतान में उसके मास्टर डिग्री के दो साल कब पूरे हो गए मोलिमा को पता ही नही चला।

आज काॅलेज में मोलिमा का अन्तिम दिन था। परीक्षाएँ सम्पन्न हो गईं, प्रोजेक्ट पूरे हो गए और घर की ओर पुनः रूख करने की सभी औपचारिकताएँ भी पूर्ण हो गई थीं। मोलिमा काॅलेज कैन्टीन में अपनी चचेरी बहनों की प्रतीक्षा कर रही थी, जो यहाँ के डिग्री सेक्शन में पढ़ती थीं। आज का दिन उसे कुछ अजीब उदासी से भरा हुआ सा लग रहा था, आज के बाद इस संस्थान के सभी हिस्से मोलिमा की स्मृतियों में छप के रह जायेंगे। यह सब सोचते हुए आँखें उठाकर मोलिमा क्या देखती है कि हलीम उसकी दोनों चचेरी बहनों और अपने एक दोस्त के साथ उसकी ही तरफ चला आ रहा था। वो हलीम को देख कर अपने भीतर हैरानी और उपेक्षा भाव के साथ ही एक अजीब तरह की संतुष्टि भी अनुभूत कर रही थी।

अपने हाथ के पैकेटों और डिब्बों को मेज पर रखते हुए हलीम कहने लगा, "चियर गाईज! आज पार्टी मेरी ओर से।" पर नकचढ़ी मोलिमा सपाट चेहरे के साथ बेभाव कुर्सी पर डटी रही। हलीम ने गिफ्ट की शकल में बँधे कुछ चॉकलेट और एक मिठाई का डिब्बा मोलिमा की ओर बढ़ाया और बड़े नरम लहजे में बोला, "ले लो ना, तुम्हारे लिए ही हैं।" अब मोलिमा के सपाट भावों ने कुछ गुलाटियाँ मारी, उसे कुछ झेंप भी हो रही थी, तथा कुछ आश्चर्य भी। मोलिमा ने मिठाई का डिब्बा हलीम की ओर बढ़ाते हुए कहा- "पर आपने ये सब तकलीफ़ क्यों उठायी? और आप भी लीजिए तो।" और इस तरह उसने अपनी झेंप पर काबू पाने की कोशिश की। "बस आज आखिरी दिन सोचा तुमसे रिश्ते सुधार लूँ।" ये कहते हुए हलीम मुस्कुरा कर रह गया। इसके आगे मोलिमा उसे एकबारगी देखने के अलावा कुछ भी अभिव्यक्त न कर सकी।


तत्पश्चात मोलिमा की चचेरी बहन ने सबके सामने बिरयानी की प्लेटें लगा दी, और चहकते हुए बोली, "अब सर की ओर से ये शानदार लंच भी हम सबके लिए।" हलीम ने अपनी कुर्सी मोलिमा के बगल लगा ली, और मोलिमा संकोच से दुहरी हुए जा रही थी। अपने बगल बैठे हलीम की उपस्थिति की अनुभूति उसे सराबोर कर रही थी और इसी हड़बड़ाहट में मिठाई का डिब्बा उसके हाथ से छूटकर बिरयानी की प्लेट में गिर गया। हलीम ने तंज का मौका हाथ से जाने नहीं दिया और कहने लगा, "अब तो ये मान ही लो कुछ तो प्रॉब्लम है ही तुम में।"

"गलती से गिर गया ना, इसमें प्रॉब्लम की क्या बात है?" मोलिमा का तेवर यह सुनते ही बिगड़ने लगा। हलीम ने उससे समझाने के अंदाज में कहा- "एक तो मेरे बगैर तुम्हारा काम भी नही चलता, मेरी काबिल गाइडलाइन में तुम्हारे सारे प्रोजेक्ट शानदार रहे हैं। तुम्हारे अलावा मेरे सभी स्टूडेंट्स ने हमेशा मुझे आदर दिया है। पर तुम हमेशा मुझसे मुह टेढ़ा किये रहती हो, आज बता दो आखिर तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है? मैं इर्रिटेट होता हूँ।"

"क्योंकि मैं किसी की जी हुजूरी नहीं करती, यही प्रॉब्लम है।" मोलिमा ने इस वाकयुद्ध में ज़बानी तीर छोड़ दिया। लेकिन बात इससे आगे बढ़ती कि तभी मोलिमा की चचेरी बहन ने बड़ी समझदारी से बात सम्हाल लिया, "रहने भी दो न दीदी! हलीम सर के लिए दिमाग नही, दिल यूज़ करो। आज सर ने ये पार्टी बस तुम्हारे लिए ही ऑर्गनाइज किया है, जस्ट एन्जॉय एंड नो फाइटिंग प्लीज।" यह सुनते ही मोलिमा और हलीम दोनो को ही अहसास हुआ कि वो दोनों क्यों बेवजह लड़ने लगे फिर एक-दूसरे से माफ़ी मांगते हुए वे दोनों खुद को कुछ शर्मिंदा सा महसूस करने लगे। और इस तरह 'लंच पार्टी' को मोलिमा की चचेरी बहन ने बिगड़ने से बचा लिया ।

घर जाने वाली ट्रेन के चलने की प्रतीक्षा में बैठी मोलिमा को बार-बार ऐसा लग रहा था, जैसे पीछे कुछ रह गया हो, शायद। चचेरे भाई-बहन उसे ट्रेन में बैठा कर प्लेटफार्म से उसके रवाना होने का इंतजार कर रहे थे। अकस्मात मोलिमा को हलीम का चेहरा खिड़की पर दिखाई दिया। मोलिमा दौड़ कर ट्रेन के दरवाजे पर पहुँची और चमकती हुई बेसब्र आँखों से हलीम की ओर ताकने लगी।

चचेरी बहन आँखें फैला कर बोली, "दीदी! देखो हलीम सर आए हैं।" हलीम ने उसे देख कर मुस्कुराते हुए अपनी उसी तंजिया अंदाज़ में उसे कहा, "बाॅय।" मोलिमा बस हाथ ही उठा पाई, तभी ट्रेन की सीटी बज चुकी थी। "मोलिमा! घर पहुँच कर मुझे फ़ोन ज़रूर करना और अपने पापा और चाचा को मेरे घर भेज देना।" हलीम चिल्लाते हुए बोला। इसके बाद ट्रेन और उन दोनो के चेहरों की मुस्कुराहटें एक साथ चल रहीं थीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance