लौट के फिर आना
लौट के फिर आना
बायोटेक से एम.एस.सी. के लिए साल भर की कड़ी मेहनत के बाद, उसका चयन हुआ उस शहर के इंस्टीट्यूट में, जहाँ चाचा का घर भी था।चाचा के शहरी बच्चे मोलिमा के अनुमान के विपरीत उससे बड़े प्यार से मिले। काॅलेज में मोलिमा के डीन ने उसका परिचय प्रोजेक्ट मेंटर हलीम से कराया, जो यहाँ का सीनियर रिसर्च स्काॅलर था।
यहाँ तक तो सब कुछ ठीक था, पर मोलिमा और हलीम का समीकरण कुछ कैंची के दोनो फलकों की तरह था। मोलिमा की नज़र में हलीम अकड़ू था, तो हलीम मोलिमा को "ग्राम बाला" कहकर उकसा देता। हालांकि हलीम के सम्मोहक व्यक्तित्व से उसके मातहत विद्यार्थी बहुत प्रभावित रहते थे।
आज काॅलेज में मोलिमा का अन्तिम दिन था।परीक्षाएँ सम्पन्न हो गईं, प्रोजेक्ट पूरे हो गए, घर की ओर पुनः रूख करने की सभी औपचारिकताएँ पूर्ण हो गई थीं। मोलिमा काॅलेज कैन्टीन में अपनी चचेरी बहनों की प्रतीक्षा कर रही थी, जो यहाँ के डिग्री सेक्शन में पढ़ती थीं। आँखें उठाकर मोलिमा क्या देखती है कि हलीम उसकी बहनों और अपने एक दोस्त के साथ चला आ रहा था।
अपने हाथ के पैकेटों और डिब्बों को मेज पर रखते हुए कहने लगा, "चियर गाईज! आज पार्टी मेरीओर से।" और नकचढ़ी मोलिमा सपाट चेहरे के साथ बेभाव कुर्सी पर डटी रही। हलीम ने गिफ्ट की शकल में बँधे कुछ चॉकलेट और एक मिठाई का डिब्बा मोलिमा की ओर बढ़ाया और बड़े नरम लहजे
में बोला, "ले लो ना, तुम्हारे लिए ही हैं।अब मोलिमा के सपाट भावों ने कुछ गुलाटियाँ मारी, उसे कुछ झेंप भी हो रही थी, तथा कुछ आश्चर्य भी। मोलिमा ने मिठाई का डिब्बा हलीम की ओर बढ़ाते हुए कहा- "आप भी लीजिए तो" और इस तरह उसने अपनी झेंप पर काबू पाने की कोशिश की।
इसके बाद मोलिमा की चचेरी बहन ने सबके सामने बिरयानी की प्लेटें लगा दी, और चहकते हुए बोली, "अब सर की ओर से ये शानदार लंच भी हम सबके लिए।" हलीम ने अपनी कुर्सी मोलिमा के बगल लगा ली, और मोलिमा संकोच से दुहरी हुए जा रही थी। इसी हड़बड़ाहट में मिठाई का डिब्बा उसके हाथ से छूटकर बिरयानी की प्लेट में गिर गया। हलीम ने तंज का मौका हाथ से जाने नहीं दिया और कहने लगा, "अब तो ये मान ही लो कुछ तो प्रॉब्लम है ही तुम में।" "क्योंकि मैं किसी की जी हुजूरी नहीं करती, यही प्रॉब्लम है।" मोलिमा ने इस वाकयुद्ध में ज़बानी तीर छोड़ दिया। लेकिन बात इससे आगे बढ़ती कि तभी मोलिमा की चचेरी बहन ने बड़ी समझदारी से बात सम्हाल लिया और 'लंच पार्टी' को बिगड़ने से बचा लिया।
ट्रेन के चलने की प्रतीक्षा में बैठी मोलिमा को बार-बार ऐसा लग रहा था, जैसे पीछे कुछ रह गया हो, शायद। चचेरे भाई-बहन उसे ट्रेन में बैठा कर प्लेटफार्म पर उसके रवाना होने का इंतजार कर रहे थे।अकस्मात हलीम का चेहरा उसे खिड़की पर दिखाई दिया। मोलिमा दौड़ कर ट्रेन के दरवाजे पर पहुँची।
चचेरी बहन आँखें फैला कर बोली, "दीदी! देखो सर आए हैं।" हलीम ने उसे देख कर मुस्कुराते हुए कहा, "बाॅय।" मोलिमा बस हाथ ही उठा पाई, तभी ट्रेन की सीटी बज चुकी थी। "मोलिमा! अपने पापा और चाचा को मेरे घर भेज देना" हलीम चिल्लाते हुए बोला। ट्रेन और उन दोनो के चेहरों की मुस्कुराहटें एक साथ चल रहीं थीं।