फोन-बिल्स
फोन-बिल्स
सुपर मार्केट के काले संगमरमरी फर्श पर उन दोनों के पाँव अचानक थम से गए। वे दोनों हठात् एक-दूसरे को देखने लगे।
"मोलिमा तुम ?" नंदन ने पहचाना उसे।
"अच्छा हुआ तुम मिल गए, तुम्हारी तलाश थी मुझे।" मोलिमा के इस वाक्य के साथ ही उन दोनों के मन में खट्टे- मीठे-कड़वे भाव एक साथ मरोड़ लेने लगे।
नंदन की वाणी नमी से बचने की कोशिश कर रही थी- "और मुझे भी, पर हमारे टूटे रिश्ते का सबसे बड़ा सच ये था कि हम दोनों ने एक दूसरे को बहुत चाहा था, सच्चे दिल से।"
मोलिमा, "एक मिनट नंदन! माफ करना, पर सिर्फ तुमने मुझे चाहा था मैनें नहीं।"
नंदन- "सफेद झूठ।"
मोलिमा, " हाँ नंदन! तुम्हारा प्यार मुझे कर्ज सरीखा लगता है, मुझसे फोन पर बातें करने के लम्बे फोन-बिल्स तुम भरते थे। तुम्हारे पास पैसा था और मैं तुम्हारे लिए 'फोन पर दोस्त बनाइए, चटपटी बातें कीजिए' जैसे विज्ञापनों की माॅडल भर थी। जिस दिन वो फोन-बिल्स मैं तुम्हे वापस कर दूंगी, उस दिन मुझे अहसास होगा कि मैंने भी तुम्हें प्यार किया था।