अनुत्तरित प्रश्न
अनुत्तरित प्रश्न
"साधना ! तुम्हारी कम्पनी का डायरेक्टर स्कूली दिनों से ही तुम्हारा सहपाठी था और तुम्हें बेहद पसंद करता था। मुझे यह बात पता थी। हमारी आपसी तल्खियों के बावजूद, बच्चों को वरीयता देकर तुमने मेरा परिवार नहीं तोड़ा, मैं इसके लिए तुम्हारा ताउम्र शुक्रगुजार रहूँगा"
चौंक गई थी साधना, जैसे उसके व्यक्तित्व से छिलका सा उतर गया था; पति की बातें उसे बार-बार व्यथित कर रही थीं।
कर्तव्य और प्रेम के दो नावों की सवारी वह मर्यादा वश ना कर पायी पर शादी के 40 साल बाद भी उसके मन के दो टुकड़े असमंजस से सराबोर थे; क्या साधना कभी राघव को भूला पाई। मन के इन दोनों टुकड़ों को संजोते-संजोते वह खुद कितनी उजाड़ हो चुकी थी कि खुशी और गम उसे समानार्थी से लगते, इस अनुत्तरित पीड़ा को वह किसे दिखाती।