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Devaram Bishnoi

Abstract

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Devaram Bishnoi

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"वृद्ध माता-पिता का दर्द"

"वृद्ध माता-पिता का दर्द"

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सारी दुनियां भारतीय संस्कृतिआध्यात्मिकता

किऔर आकर्षित है।

दुनियां के लाखोंअमीर लोग वैराग्यआध्यात्मिक

ज्ञान गुरु शिष्य परम्परा ऋषी मुनीयों से

परमात्मा कि ख़ोज संत महापुरुषों से योग

साधना मन कि शांन्ति के लिए भारतीय

संतआश्रमों में सिखने को नजदीक से देखने

अनुभव प्राप्त करने के प्रयास प्रयोग करने के

 लिएआते हैं।

यहां आकरआध्यात्मिक ज्ञान पर

चर्चा परिचर्चा ध्यान करते हैं।

भारतीय संस्कृति को नजदीक से देख ख़ुद

को धन्य समझते हैं‌।

परन्तु भारतीय शहरी क्षेत्रों मेंअमीर पढ़ें लिखे।

एवं व्यवसायी लोग पाश्चात्य सभ्यता से प्रेरित

होकर वृद्धावस्था में माता-पिता कि

सेवा खुद नहीं करते हैं।

या तो वृद्ध माता-पिता को नौकर नौकरानीयों

केभरोसे छोड़ देते हैं।

या फिर वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़ देते हैं।

माता-पिता कि सेवा खुद को ही करनी चाहिए।

क्योंकि माता-पिता ने बहुत कष्ट उठाकरअपनी

औलाद को पाला पोसा शादीयां कि बड़ा किया।

पढ़ाया-लिखाया व्यवसाय सिखाया नौकरी दिलाई।

जिन्दगीअच्छी तरह से जिने में सक्षम बनाने

में पुरी मेहनत की खुद कि कमाई से

औलाद के लिए सब कुछ किया।

यहां तक अपनी औलाद को रहने के लिए

घर भी बनाकर दिया।

और वही औलाद यदि माता-पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़ देते हैं।

तों सोचिएगा माता-पिता को कितना कष्ट होता होगा।

जबकि वृद्ध माता-पिता कोअपनेऔलाद के 

सहारेअपनेपन कि जबआवश्यकता होती हैं।

वृद्ध माता-पिता के स्वयं के बनाये घर में भी

आराम सेअंतिम सांस लेने घर में मरने नहीं देते।

उन्हें तसल्ली से जिन्दगी जीने नहीं देते हैं।

जबकि उनके खुद के बनाये आशियाने में

उनकी जिंदगी कि कई यादें जुड़ी हुई होती हैं।

वहां पर वृद्ध माता-पिता को घर में रहनेअंतिम सांस

लेकर स्वर्ग सिधारने में उन्हें बहुत सुकून मिलता है।

ग्रामीणक्षेत्रों में कमोबेश माता-पिता कि सेवा खुद

 करने कि स्थितियांशहरी क्षेत्रों काफी अच्छी हैं।

यहां पर वृद्ध माता-पिता कि सेवा खुद करने

वाले लोगों को लोग माता-पिता कि सेवा

करने वाले प्रसिद्धश्रवण जैसा सुपुत्र कहते हैं।

ग्रामीणक्षेत्रों में माता-पिता कि सेवा खुद नहीं करने

वाले लोगों को लोगअक्सर नालायकऔलाद कहते हैं।

इसलिए लोग खुदअपने माता-पिता कि सेवा करते हैं।

माता-पिता कि सेवा कर खुद को धन्य समझते हैं।

माता-पिता के चरणों में स्वर्ग समझते हैं।

जिस घर में माता-पिता दुःखी होते हैं।

उसे घर नहीं नर्क समझते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में सामुहिक परिवार प्रथा भी

वृद्ध माता-पिता कि सेवा खुद करने कि

परम्परा को आगे बढ़ाने में सहायक हैं।

कवि देवा करता करबद्ध निवेदन प्रार्थनाआपसे

भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दिया जायें।

और वृद्धावस्था मेंअपने माता-पिता की

सेवा खुद द्वारा की ही जाए।जय हिन्द


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