क्यों नाम दें

क्यों नाम दें

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कमरे में कुल चार लोग थे। सभी चुप थे पर माहौल में तनाव था। 

मामला दो बुज़ुर्ग लोगों के बीच रिश्ते का था। 

राकेश बहल और मौसमी बनर्जी को उनकी संवेदना एक दूसरे के करीब ले आई थी। दोनों की मुलाकात एक पेंशनर्स क्लब में हुई थी। उस क्लब के सभी सदस्य पैंसठ साल की आयु से अधिक थे। उनमें से कुछ के जीवनसाथी अब इस दुनिया में नहीं थे। उनके इर्दगिर्द अपने मन की बात कहने वाला कोई नहीं था। अतः क्लब के सदस्य महीने में दो बार आपस में मिल कर एक दूसरे का सुख दुख बांटते थे।

मौसमी ने विवाह नहीं किया था। अपनी बहन की बेटी को गोद ले लिया था। उसे पाल पोस कर बड़ा किया। पढ़ाया लिखाया। मिष्ठी अब एक आईटी कंपनी में काम करती थी और बंगलूरू में रहती थी। 

राकेश की पत्नी तीन साल पहले गुज़र गई थीं। एक बेटा राहुल था जिसका गोवा में एक रेस्टोरेंट था। वहाँ वह अपने परिवार के साथ रहता था। राकेश साल में एक बार उन लोगों से मिल आते थे। लेकिन स्थाई रूप से वहाँ रह नहीं पाते थे।

पेंशनर्स क्लब में हुई मुलाकात धीरे धीरे दोस्ती के रिश्ते में बदल गई। अब मुलाकात के लिए वह पेंशनर्स क्लब में जाने की राह नहीं देखते थे। बल्कि कभी एक दूसरे के घर चले जाते या किसी पसंदीदा जगह पर मिल लेते थे। 

इस तरह उनके खूबसूरत रिश्ते को दो साल हो गए थे। 

मौसमी किराए के फ्लैट में कई सालों से रह रही थीं। वह फ्लैट उनके एक पहचान वाले का था जो बाहर रहते थे। मौसमी समय समय पर किराए में आवश्यक वृद्धि कर रहने की अवधि बढ़वा लेती थीं। पर इस बार फ्लैट के मालिक ने सूचना दी कि वह खुद फ्लैट में रहने के लिए आने वाले हैं। 

मौसमी ने अपनी समस्या राकेश को बताई। राकेश ने फौरन हल निकाल दिया। उनका मकान बड़ा था। उन्होंने सुझाव दिया कि वह ऊपरी हिस्से में आकर रहें। मौसमी को इसमें संकोच लग रहा था। उन्होंने कहा कि अगर वह उनसे किराया लेने को तैयार हैं तो ही वह आ सकती हैं। राकेश मान गए। मौसमी उनके घर के ऊपरी हिस्से में रहने लगीं।

बात धीरे धीरे इधर उधर फैली तो जितने मुंह उतनी बातें शुरू हो गईं। ये बातें राकेश और मौसमी के कानों में भी पड़ती थीं। पर वो लोग ध्यान नहीं देते थे।

पर फैलते फैलते बात उनके बच्चों तक पहुँच गई। उन्होंने एक दूसरे से संपर्क किया। साथ में मिले और तय किया कि उन लोगों के रिश्ते को एक नाम देंगे। दोनों का विवाह करा देंगे। 

उन लोगों ने राकेश और मौसमी को अपने निर्णय के बारे में बताया। उनका फैसला सुनकर दोनों ने ही इंकार कर दिया। वर्तमान तनाव उसके ही कारण था। 

राहुल ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा।

"पापा आपको इसमें क्या ऐतराज़ है ? आप और मौसमी आंटी अकेले हैं। इस तरह से आप दोनों का अकेलापन दूर हो जाएगा।"

राकेश ने जवाब देते हुए कहा।

"पहली बात तो हम दोनों एक दूसरे के साथ हैं। आपस में अकेलापन बांट लेते हैं। पर तुमने और मिष्ठी ने ये बात हमारे अकेलेपन के कारण नहीं सोची है। इसका कारण लोगों की बेकार की बातें हैं।"

इस बार मिष्ठी ने कहा।

"अंकल तो हमारी बात मान कर उनका मुंह बंद कर दीजिए।"

जवाब मौसमी ने दिया। 

"हमें लोगों को कुछ साबित नहीं करना है मिष्ठी। इस समाज में कई लोग पवित्र रिश्तों की आड़ में नाजायज़ काम करते हैं। उन्हें किसी तरह से नहीं समझाया जा सकता है।"

राकेश ने बात आगे बढ़ाई।

"देखो हम लोग एक दूसरे के हमदर्द हैं। अच्छे दोस्त हैं। पर इससे अधिक कुछ नहीं। मरते दम तक विनीता मेरे दिल में वैसे ही रहेगी जैसे इस घर में रहती थी।"

राहुल और मिष्ठी ने कई और दलीलें दी पर उन लोगों ने अपना फैसला नहीं बदला।


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