क्या औरतों को खुश होना नहीं आता
क्या औरतों को खुश होना नहीं आता
आज सुबह लवलीन के पति अनुज घर से बाहर जाने लगें तो लवलीन ने कहा, घर में बनाने के लिए कोई भी सब्जी नही है और फिर कुछ सब्जियों के नाम लेकर कहा आते हुए लेते आना। इसके बाद काफी देर इंतजार करती रही कब अनुज सब्जियाँ लेकर आएंगे और वह बनाएगी। दोपहर तक अनुज ने हाथ मे कुछ लिफाफे पकड़े घर में प्रवेश किया। लवलीन ने सोचा देर तो हो ही गई है परन्तु कोई बात नहीं मैं जल्दी से कुछ बना लूंगी। लिफाफे खोले तो देखा सारी सब्जियां तो थी बस प्याज नही थे। अनुज से पूछा तो आगे से बड़ी लापरवाही से जवाब मिला वो तो मै भूल गया। लवलीन गुस्से में बोली एक तो आपने पहले ही इतनी देर करवा दी ऊपर से प्याज नही लाये। अब बताइये प्याज के बिना सब्जी को तड़का कैसे लगेगा? आगे से अनुज बोला क्यों ऐसे बहस कर रही हो? तुम औरतो को तो हर बात में कमी निकलने की आदत होती है। खुश रहना तो मानो आप औरतो को आता ही नही। अनुज यह सब बोकर खुद टी.वी. के सामने बैठ गया और लवलीन सिर पकड़कर सोचने लगी, अगर सारी सब्जियों के साथ साथ प्याज भी समय पर ला दिए होते तो क्या मैं खुश न होती और फिर यह सब्जियां कौन सा मैने अकेली खानी है।
यह कोई एक दिन का या एक घर की घटना नही है। अक्सर हम सब औरतो को कहीं न कहीं सुनने को मिलता है तुम औरतो को खुश रहना नही आता परन्तु अगर आराम से सोचा जाये तो एक औरत को खुश होने के लिये किसी खास मौके की जरूरत नही होती। उसके पास खुशियाँ मनाने के मौके बहुत है। छोटी छोटी बात पर भी खुश होने के बहाने ढूंढ लेती है। आखिर एक औरत जो ठहरी।
घर मे अगर खाने की चार चीजें आ जाये तो बड़ी खुशी से पहले पूरे परिवार को पेटभर खिलाने के बाद जो बचता है उसी मे खुश हो लेती है। जब कोई उसकी बनाई सब्जी की जरा सी तारीफ कर दे तो गरमी में रसोई में पसीने से तरबतर होने का सारा दुख भूल जाती है। पति कभी देर तक सोई देखकर माथे पर हाथ रखकर पूछ ले तबीयत तो ठीक है तो पिछले दिन की सुनाई सारी बातें भूल जाती है। सास ससुर अगर किसी के आगे तारीफ के दो शब्द बोल दे तो अपने आपको बड़ी किस्मतवाली समझती हैं। घर में मेहमान आ जाये तो खुशी से उनकी आवभगत में लग जाती है। बाजार जाकर घर के चार जरूरी चीजे खरीदने के बाद अपने लिए सूट पसन्द आने के बावजूद यह कहकर छोड़ आती है कुछ खास नहीं है और फिर यह दुकानदार महंगा भी तो दे रहा है। अपनी बिंदिया, लिपस्टिक, नेलपॉलिश लगाकर तैयार होने से कही जरूरी घर की साफ सफाई लगती है,सारे दिन की मेहनत के बाद घर के चमकते हर कोने को देख मन ही मन खुश हो लेती है। घर में एक सूई आ जाये या लाखो की नई चमचमाती कार, हर चीज का दिल से स्वागत करती है। दिन रात बस उसी घर के बारे में सोचती है जिसके बाहर नेमप्लेट पर कभी उसका नाम नही लिखा जाता। फिर भी बड़े मान से उसको रोज साफ करती है। जन्मदिन हो या मैरिज एनीवर्सरी कोई बैडशीट या डिनर सैट उपहार मे मिल जाए तो चेहरे पर पूरे दिन के लिए रौनक आ जाती है।
नौ महीने बच्चे को पेट मे रख लाख तकलीफे सहने के बाद उसके रोने की एक आवाज सुन सब भूल जाती है और फिर उसके पालने पोषण में ऐसे व्यस्त होती हैं मानो दुनिया भूल गयी हो। बच्चे की हर छोटी बड़ी उपलब्धि को हमेशा के लिए आंखों में कैद कर लेती है। बच्चा एक गिलास दूध अपने आप पी ले या सब्जी की कटोरी खा ले तो मां का पेट खुशी से भर जाता है। बच्चे के रिपोर्ट कार्ड पर उसे अव्वल आया देखकर यूं महसूस होता है मानो खुद किसी इम्तिहान में अव्वल आ गयी हो। वही बच्चा जब जवान होता है तो सारे शहर को खबर लग जाती है सिवाये उस पगली मां के जो आज भी रसोईघर में खडी बस यही सोच रही हैं ऐसा क्या बनाऊं जिसे मेरा बेटा मजे से खा ले और उसे पोषण भी पूरा मिल जाए। उम्र के साथ अब शरीर भी कमजोर होने लगा अनेको बिमारियों ने शरीर में घर कर लिया पर अभी भी दिमाग घर और परिवार में ही उलझा हुआ है। बेटे के विवाह में चाव से नाचते समय अपने घुटनों के दर्द को भी भूल जाती है। बेटी को ससुराल विदा करते समय पागलो की तरह कभी हंसती है तो कभी छुप छुपकर आँसू बहाती हुई सारी रस्मों को बखूबी पूरा करती है और फिर एक दिन अपने आख़िरी वक्त में पति और बच्चो की बाँहों में हसंते हंसते सदा सुहागन रहने की इच्छा पूरी करते हुए इस दुनिया से विदा ले जाती है परंतु जाते जाते इस समाज और पुरुषों के लिए एक सवाल छोड़ जाती है क्या सचमुच औरतों को कभी खुश होना नहीं आता ?
