Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

3  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

क्या अंतर रहेगा?

क्या अंतर रहेगा?

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क्या अंतर रहेगा? मैंने पूछा - माँ, सुजाता, दिखाई नहीं दे रही कहीं गई है क्या?

माँ ने बताया - बाजार में कुछ काम है, कह कर 3 घंटे पहले गई है। 

मैंने हैरत से कहा - मुझे, मोबाइल करके कुछ बताया नहीं, उसने।   

माँ ने बताया - सुजाता, तो प्रायः हर रोज ही कोई कोई कारण बता कर, बाहर जाया करती है। मैंने, तुमसे इसलिए नहीं कहा कि मुझे लगा वह, तुमसे पूछ-बता कर ही जाती होगी।  

मैं सिर दर्द होने कारण आज, ऑफिस से जल्दी लौट आया था। सोचा था कि घर पर ही सुजाता के साथ बैठकर, चाय पियूँगा तो आराम मिल जाएगा। मैंने, चाय स्वयं बनाई थी। फिर मैं, बिस्तर पर सिरहाने से टिकाकर, छोटी छोटी चुस्कियाँ लेता हुआ चाय पी रहा था। 

तब सुजाता आई थी। मुझे घर में देख चौंकी थी। वह कुछ कह पाती, इसके पूर्व ही मैंने पूछ लिया - सुजाता, क्या ले आईं बाजार से?

वह अचकचा गई थी। उसने कहा - नहीं, कुछ लाने नहीं गई थी। एक सहेली से मिलने गई थी। 

माँ का यह बताना कि वह रोज ही बाहर जाती है। फिर अभी, उसका मेरे पूछने पर हड़बड़ा जाना, मेरे मन में प्रश्न उत्पन्न कर रहा था। लेकिन फिर भी मैंने, सुजाता से और कुछ नहीं कहा या पूछा। 

सुजाता ने ही पूछा - आज आप, जल्दी आ गए ऑफिस से?

मैंने बताया - हाँ, सिर दर्द लग रहा था। सोचा घर पर तुम्हारे हाथ की, साथ में चाय पीने से आराम आ जाएगा, इसलिए जल्दी आ गया था। 

सुजाता सकुचाते हुए मुस्कुराई बस थी। उसने फिर कुछ नहीं कहा था। 

हमारी शादी को अभी छह माह हुए थे। घर में पापा-मम्मी एवं हम दोनों कुल चार सदस्य थे। 

पापा पोस्ट ऑफिस में कार्यरत थे। उन्हें अगले साल रिटायर होना था। मैं, नगर निगम में क्लर्क था। पापा एवं मैं, अपने अपने काम पर चले जाते थे, अतः सुजाता एवं माँ ही दिन के समय, घर पर रहती थीं। 

अगले दिन से मैंने नया क्रम शुरू कर दिया था। मैं, सुजाता से कुछ नहीं पूछता, मगर किसी किसी बहाने से, माँ से जानकारी ले लिया करता कि सुजाता, बाहर से कब लौटी है। 

सप्ताह में एक या दो दिन ही, माँ यह बतातीं कि आज, सुजाता बाहर गई ही नहीं है। 

यद्यपि पूर्व की भाँति ही ऐसे, प्रायः नित दिन घर से बाहर जाने की, कभी कोई बात सुजाता ने, मुझसे नहीं कही थी। इस कारण से, मेरे मन में उसे लेकर संदेह होने लगा था। 

आखिर लगभग 1 माह बाद मैंने, एक रात पूछ ही लिया - सुजाता, तुम दिन में रोज बाहर जाती हो, क्या कोई काम करने लगी हो?

सुजाता ने थोड़ी नाराजी से पूछा - क्या, यह आपसे मम्मी जी, ने बताया है?

मैंने सच कहा - हाँ, एक माह से, मैं ही उनसे तुम्हारी, जानकारी लेता रहा हूँ। मुझे यह बात अटपटी लगी है कि तुम प्रायः रोज बाहर जाती हो, मगर तुमने मोबाइल द्वारा या कभी भी घर में मुझे, इस बारे में कुछ बताया नहीं है। 

सुजाता इस बात से रुष्ट हो गई एवं मुझसे कहा - लगता है आप, मुझ पर शक कर रहे हैं?

मैंने कहा - हाँ, यह शक करने वाली बात इसलिए हुई है कि तुमने, ऐसे प्रायः नित दिन, बाहर जाने का कारण, अपनी ओर से मुझे कभी बताया नहीं है। 

सुजाता ने मेरे प्रश्न को गोल कर दिया एवं गरमा-गरमी दिखाते हुए कहा - आप, पत्नी पर अविश्वास करने वाले शक्की पुरुष हो। 

फिर वह मेरे साथ बिस्तर पर ना सो कर, ड्राइंग रूम में सोफे पर जाकर सो गई थी। उसका ऐसा किया जाना, पापा एवं माँ के सामने मुझे, हमारे लिए लज्जाजनक लगा था।  

ऐसे शादी के प्रथम वर्ष में ही, अगली रात से हम दोनों का, बिस्तर पर विपरीत करवट लेकर सोना शुरू हो गया। सुजाता ने, मेरे सहित माँ-पापा से भी अनबोला सा कर लिया था।

फिर कुछ दिनों में मुझे, कार्यालय में सहकर्मियों की, मेरे पीठ पीछे अक्सर सुगबुगाहट होती अनुभव होने लगी। 

एक दिन इस संबंध में, मेरे बहुत पूछ जाने पर, मेरी सहकर्मी, नीना ने मुझे बता दिया कि चीफ साहब एवं तुम्हारी बीबी के बीच रंगरेलियाँ चल रहीं है, आजकल। स्टाफ उसी में, तरह तरह की बात बना कर रस लिया करता है। 

सुनकर मेरा चेहरा एकदम बुझ गया था। मैं यह तो जानता था कि चीफ साहब, रसिक होने के साथ ही विधुर आदमी हैं। 

मुझे दुःखद रूप से हैरानी इस बात से हुई कि - चीफ साहब एवं सुजाता का परिचय तो हमारी शादी के रिसेप्शन में हुआ था। उसके बाद फिर कोई संयोग नहीं हुआ था कि उनकी भेंट हुई हो। फिर इनमें ये अवैध संबंध कैसे हो गए हैं। 

फिर चीफ साहब को लेकर मुझे वितृष्णा हुई थी। मैं धिक्कार रहा था कि वरिष्ठ पद पर विराजित यह अधिकारी, अपने ही मातहत कर्मी की, नई बसी गृहस्थी में, अपनी घिनी करतूत से, कलह मचाने की निकृष्टता कर रहा है। 

उस रात मैंने सुजाता से, इस अवैध संबंध पर एतराज किया। इसे विराम देने के लिए कहा। तब निर्लज्जता से उसने, मुझसे कहा - 

आज के आधुनिक समय में भी, आप अत्यंत संकीर्ण सोच रखने वाले व्यक्ति हैं। आप स्वयं ने तो अनेक संबंध किये होंगे। मगर ऐसे एक संबंध को लेकर, अपनी पत्नी पर आपत्ति कर रहे हो। 

अपने बचाव में सुजाता का, मुझ पर, यह व्यर्थ का दोषारोपण था। मैंने यथाशक्ति से शांति रखते हुए ही कहा - सुजाता, मैं इस रूप में, तुम्हारे सिवाय किसी और को नहीं जानता हूँ। 

वह बिना बात रोने लगी और रुदन पूर्ण चिल्लाहट में मुझसे कहा - झूठ बोल रहे हो, आप। आजकल ऐसा कोई युवक नहीं होता जिसका, 28 वर्ष के होने पर भी कौमार्य बना रहता है। 

फिर मुझे, लगा कि जैसे, सुजाता को इसी दिन और इसी तरह की बात की प्रतीक्षा रही थी। उसने अगले दिन ही, इस बात के आधार पर, घर छोड़ दिया था। वह अपना सभी सामान लेकर, मायके चली गई थी। 

मेरी माँ के द्वारा ऐसे ना जाने के अनुनय करने की भी, उसने उपेक्षा कर दी थी। 

फिर कुछ दिनों में ही, मुझे कूरियर द्वारा 498ए के अधीन भिजवाया गया, उसके वकील का नोटिस मिला था। जिसमें, मुझ सहित मेरे माँ-पापा पर भी दहेज प्रताड़ना का उल्लेख था। 

मैं, जानता था कि यह सब झूठी बात है। वह इसे न्यायालय में सिद्ध भी नहीं कर सकेगी। 

सुजाता कुछ महीनों मेरी पत्नी रही थी, इस तथ्य को ध्यान में रखकर, मैं नहीं चाहता था कि हमारा प्रकरण न्यायालय में जाए एवं मुझे, स्वयं को निर्दोष प्रमाणित करने के लिए, उसके अवैध संबंध की सच्चाई वहाँ, कहनी एवं प्रमाणित करनी पड़े। 

हमने, सुजाता के मायके वालों एवं उससे संपर्क कर, समझौता करते हुए आपसी सहमति से, डिवोर्स की बात कही थी। 

इस पर उन्होंने, समझौते के लिए विवाह एवं दहेज पर, उनके हुए 10 लाख के खर्चे की बात करते हुए, हमसे 11 लाख रूपये माँगे थे। 

मैं, जानता था कि लगभग पूरा विवाह खर्च हमने उठाया था। उनकी आर्थिक स्थिति तो 1 लाख भी खर्च करने की नहीं थी। 

तब भी, हमने इसे स्वीकार कर लिया था। फिर चूँकि मेरे पास, इतनी बचत राशि नहीं थी। अतः मेरे पापा ने, इसकी व्यवस्था करने के लिए, ऐच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। उन्होंने, अपने प्रोविडेंट फण्ड में जमा राशि से, उन्हें इसका भुगतान किया। तब, हमारा डिवोर्स हो सका था। 

बाद में पता चला था कि मुझसे डिवोर्स होते ही, सुजाता ने, अपने से दुगुनी उम्र के, 48 वर्षीय प्रौढ़, चीफ साहब से विवाह रचा लिया था। स्पष्ट था कि पैसा, सुजाता के जीवन में, प्रमुख सिद्धांत था। 

पापा, माँ एवं मेरे लिए, यह सारा घटना क्रम, अत्यंत सदमा देने वाला रहा था। मेरे डिवोर्स के एक वर्ष के अंदर ही तीन महीने के अंतर में, पहले मेरे पापा एवं फिर माँ दोनों का, हृदय घात से देहावसान हो गया। 

एक गलत वधु के चयन ने, मेरा संसार ही उजाड़ दिया था।

लोगों के मुझ पर आक्षेप, व्यंग्य, एवं हँसने से मैं अवसाद ग्रस्त हो गया। इस अवसाद से उबर पाने में, मुझे 3 वर्ष लगे। तब तक मैंने, सन्यासी होने का निर्णय कर लिया था। 

अब मैं, साधु बन चुका था। मैं, जानता था कि कुछ समय में जब मेरी ख्याति फैलेगी तब मेरे आस-पास, भक्तों में नारी भीड़ भी होने लगेगी। तब मेरा चरित्र, कसौटी पर होगा। 

मैंने संकल्प लिया था कि जिन नारी की, मुझमें श्रद्धा होगी उन्हें मैं, किसी तरह फुसलाऊंगा नहीं। 

मैं, नहीं चाहूँगा कि किसी लड़की-युवती का घर उजाड़ने का दोषी, मैं हो जाऊँ। अगर मैं ऐसा करता तो फिर, मेरे चीफ साहब तरह के पुरुष एवं मुझ में क्या अंतर रहेगा?

आज, लगभग पाँच वर्ष हुए हैं। आश्चर्यजनक रूप से मेरे भक्तों की भीड़ में, अभी मुझे सुजाता दिखाई दी है …  



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