कुर्बानी का फल
कुर्बानी का फल
घर में बहुत बड़ी पूजा का आयोजन किया गया है, सरोजनी जी पूरी हवेली में घूम-घूम कर सजावट और पूजा की तैयारियों का जायजा ले रही हैं, दूसरी ओर सुरेश जी केटरिंग वाले को निर्देश देने में लगे हुए हैं। उनदोनों का इकलौता लड़का जतिन पूजा में बैठने के लिए अपने कमरे में तैयार हो रहा है।पास ही लाल बनारसी साड़ी में लिपटी हुई अनुभूति बैठी है।अनुभूति जतिन की पत्नी और घर की इकलौती बहू है।
बिस्तर में एक नन्ही सी जान छोटे छोटे प्यारे कपड़ों में तैयार होकर अठखेलियां करने में लगी हुई है।घर के वारिस हैं ये तो!आज इसी प्यारे से बच्चे का नामकरण संस्कार है और इसी उपलक्ष्य में तो घर में पूजा है,ननिहाल से भी सब आकर दूसरे कमरे में तैयार हो रहे हैं।
अनुभूति
बच्चे को एकटक देखती ही जा रही है। उसका बच्चा कितना प्यारा लग रहा है। तभी उसकी आँखें आँसुओं से भर जाती हैं। शादी के आठ सालों के बाद ये खुशनसीब पल आया है।
कितने ही बलिदानों के बाद उसे माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है और अगर इन बलिदानों के लिए उसने हामी न भरी होती तो आज इस घर में नन्हीं मुन्नी पायलों की रूनझुन गूंज रही होती। उसका कमरा गुड़ियों, और ढ़ेर सारे टैडीबियरों से भरा हुआ होता।
उसकी आँखें आँसुओं से फिर एक बार भर गयीं,अक्सर सपने में आकर वे बच्चियाँ उससे सवाल पूछती हैं, लेकिन अनुभूति उनके सामने निरूत्तर होती है।
अपनी अजन्मी बच्चियों से एक और बार माफी मांग कर वह पूजा में सम्मिलित होने के लिए चल दी।