सच्ची दोस्ती
सच्ची दोस्ती


ज़िन्दगी हर कदम हर मोड़ पर एक इम्तहान है
रख भरोसा खुद पर, हौसलों से ही उड़ान है।
माँ ने ना जाने क्या सोच कर उसका नाम सुखी रखा था, सुखी मेरी बचपन की सहेली थी और मैं मीरा। हमारे घर आमने-सामने होने के कारण कुछ ज्यादा ही आना-जाना लगा रहता था। उसके पिता जी कहीं बाहर रहते थे, घर में सुखी, सुधा मौसी और उसके चार भाई रहते थे। बाद में पता चला कि मौसा जी ने दूसरे शहर में एक और घर बसा रखा था। हाँ घर खर्च के लिए प्रत्येक महीने कुछ रकम भेज दिया करते थे। किसी तरह उनका गुजारा हो जाता था। अभाव और सही मार्गदर्शन के कारण सुखी और उसके भाईयों ने दसवीं से ज्यादा पढ़ाई नहीं की।
सुधा मौसी ने समय समय पर सबकी शादी करके अपनी जिम्मेदारी निभा ली। मैं तब उच्च शिक्षा के लिए शहर के छात्रावास में थी जब मेरी प्यारी सखी दुल्हन बन कर दूसरे गाँव चली गई, छुट्टियों में घर आने पर माँ ने बताया,( उस जमाने में मोबाइल फोन कहाँ हुआ करते थे।) पता चलते ही मैं सुधा मौसी के घर चली गई, अपनी सहेली के बारे में जानकारी लेने के लिए!
मौसी ने बताया कि मौसा जी ने खुद ही लड़का देखा और सबकुछ तय कर दिया, सबकुछ जल्दी-जल्दी में हुआ। मंदिर में शादी कर, वहीं से विदाई भी हो गई, मैंने पूछा मौसी आपने लड़के को देखा उसके परिवार से मिलीं! मौसी ने कहा,हाँ बेटा विवाह के दिन ही सबसे मिलना हुआ, शादी को अब तक तीन महीने हो गए थे और मौसी ने बताया कि सुखी माँ बनने वाली है, अठारह वर्ष की उम्र में ही! यहाँ मैं अभी बारहवीं की परीक्षा देने वाली हूँ और मेरी सखी जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा की तैयारी में लगी हुई है।
सुखी ने प्यारी सी बेटी को जन्म दिया और मैंने बारहवीं की परीक्षा पास कर स्नातक में नामांकन लिया, रुपयों की जरूरत पड़ी और घर जाना हुआ, सुखी भी आई हुई है सुनते ही उसके घर की ओर दौड़ गई, मौसी अपनी नातिन को तेल मालिश कर रही थीं और सुखी पास ही बैठी शाम के लिए सब्जी काट रही थी, मुझे देखते ही वो खुशी के मारे चिल्ला उठी, अरे मीरा की बच्ची कैसी है तू ! कितने दिनों बाद मिलना हुआ, तू तो दूज का चाँद हो गई है!
मैंने उसे देखा, सूख कर कांटा हो गई थी और उसका फूल सा कोमल चेहरा मुरझा गया था, पहले तो मेरे काॅलेज और पढ़ाई की बातें हुईं, फिर उसके ससुराल और पति की बातें शुरू हो गईं। उसने बताया उसके पति कहीं बाहर काम करते हैं और वह सास-ससुर और ननद देवर के साथ रहती है, पति घर खर्च के लिए रूपये भेजते हैं लेकिन सब सास,- ससुर ले लेते हैं शादी के कुछ ही दिनों बाद वे अपने काम की जगह पर वापस चले गए, जाते-जाते कह गए थे कि कुछ ही दिनों बाद
मुझे को भी साथ लेकर जाएँगे पर नहीं आए, यहाँ तक कि बच्चे के जन्म के समय भी नहीं आए।
घर में लैंड लाइन फोन है, लेकिन फोन पर भी बहुत कम ही बातें हो पाती हैं सबसे बात करने के बाद जब तक मेरा नंबर आता है तब तक फोन रखने का समय हो जाता है। और तो और उनकी चिट्ठियों को भी सबके पढ़ लेने के बाद मुझे दिया जाता है, पता नहीं क्या सोचकर पापा ने मुझे इस घर ब्याहा था!
ससुराल में जब से गई एक भी दिन चैन की नींद सो नहीं पाई, सबके जागने के पहले जागो, सबके सोने के बाद सो। मेरे गृहप्रवेश के बाद ही सासु माँ ने घर गृहस्थी के कामों से संन्यास ले लिया, यहाँ तक कि पूजा तक करना छोड़ दिया, " ननद देवर उम्र में मुझसे बड़े हैं लेकिन मजाल है कि कोई एक गिलास पानी भी खुद से लेकर पी लें , मदद करना तो दूर की बात है प्यास लगने पर भी मुझे पुकारते हैं। इतना बड़ा सा पेट लेकर सबको परोस कर खिलाती थी और तब भी किसी को दया नहीं आती थी।"
अब तू ही बता मीरा! एक कम उम्र की लड़की इतने सारे काम कैसे कर सकती है!
मैंने कहा "अब समय आ गया है कि तू कोई सही फैसला ले चल मेरे घर जीजाजी का फोन नंबर है तुम्हारे पास?
डायरी में है उनके दफ्तर का नंबर, चलो फिर चलें, मौसी को बच्चे का ध्यान रखने का कह हम निकल पड़े। मेरे घर आकर मैंने फोन पर जीजाजी के दफ्तर में फोन लगा दिया। उधर से किसी ने फोन उठाया, मैंने सुखी को साफ-साफ सारी बात करने की हिदायत दी और वहां से कुछ दूर हट कर खड़ी हो गई।
करीब एक घंटे तक वह बात करती रही, फिर फोन रखकर आँखें पोंछती हुई आई,कहने लगी" कितना बिल उठ गया होगा ना मीरा।" मैंने कहा "तू भी ना पागल है ये सब छोड़ और ये बता जीजाजी ने क्या कहा।"
"वो कल ही सीधे यहाँ के लिए निकल रहे हैं और परसों हमें अपने साथ ले जाएँगे। उसने शर्माते हुए जवाब दिया। "
अच्छा एक घंटे में बस इतनी सी बात हुई, मैंने मजाक में कहा तो वह मुस्कुरा दी।
अच्छा चलो मौसी को भी यह खुशखबरी सुनाए और तुम्हारा सामान भी तो जमाना है ना, कितना कम समय बचा है।
मीरा तू कितनी अच्छी है, मेरी परेशानी दूर कर दी कहते हुए उसने मुझे गले से लगा लिया।
तू भी ना सुखी !,"मैंने कुछ भी नहीं किया है,मेरी जगह तुम होतीं तो यही करती ना!
तू खुश रह अपनी ज़िंदगी चैन से जी और तुम्हारे सारे सपने पूरे हों एक दोस्त को इससे ज्यादा क्या चाहिए, और हाँ कभी याद आए तो चिट्ठी भेज देना बस इतना काफी है। "
चलो मेरी सहेली सुखी अब सही मायने में सुखी होने जा रही है , मैं उसके लिए बहुत खुश हूँ।