Bindiyarani Thakur

Tragedy

4.0  

Bindiyarani Thakur

Tragedy

घूँघट

घूँघट

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    छोटे बेटे के सगाई के निमंत्रण देने के बहाने बाबूजी बिटिया के ससुराल पहुँच गए। अब बिटिया के ससुराल बिना वजह तो जा नहीं सकते हैं! पाँच साल हो गए विवाह को, मुश्किल से दो बार आई होगी बिटिया, एक बार पग फेरे के लिए दूसरे बार जचगी के लिए, तरस ही गए हैं बेटी का मुँह देखने को, तो अब आए हैं उसके ससुराल। दामाद बहुत बड़े अफसर हैं, समधी भी पुलिस में उच्चाधिकारी रहकर अभी रिटायर हुए हैं, बहुत रौब है, मेरी बिटिया रानी जैसे राज़ करती है ससुराल में। 

 गृहप्रवेश करते ही नाती नानाजी नानाजी कहते दौड़ कर लिपट गया, समधी समधन सोफा में बैठे हैं, दामादजी दफ्तर गए हैं। बाबूजी ने फल और मिठाईयों के डब्बे समधन जी को दे दिए और उन्होंने इसकी क्या जरूरत थी कहते हुए सबकुछ एक ओर सरका दिया। 

 

तभी हाथ भर लंबा घूँघट काढ़े साँची बिटिया पानी का लोटा लेकर आई, बेटी को जी भर निहार भी ना पाए थे कि वह चाय नाश्ता का इंतज़ाम करने रसोई में वापस जा चुकी थी, चाय नाश्ता हो गया और बाबूजी के घर वापस लौटने का समय भी हो चला, घूँघट में वैसे भी चेहरा दिखता भी कहाँ है, बाबूजी जितनी भी देर रुके साँची उनको बस काम ही करती दिखाई दी, उनका दिल बेटी को इस हाल में देख पिछले दिनों की यादों में खो गया, जो लड़की अपनी शरारतों से घर को गुलजार करती रहती थी वह इतनी जिम्मेदार बन गई है कि अपने ही बाबूजी के पास दो घड़ी बैठ कर हाल खबर भी नहीं पूछ पा रही है।

वे सोच रहे थे जिसे इतनी नाजों से पालते हैं उसे क्यों इस तरह स्वयं से दूर कर देना पड़ता है, आखिर किसने ये रीत बनाई होगी। निमंत्रण देकर सपरिवार आने को कह बाबूजी निकल कर अपने घर के लिए बस पकड़ने हेतु चल दिए।

दूसरी ओर साँची कमरे में फूट फूट कर रो दी, बेटे ने पूछा माँ क्यों रो रही हो? तो उसने गोल मोल जवाब दे बेटे को बहला दिया, बेटे से उसी के पिता के अत्याचार कैसे कह पाती, सूजी हुई आँख और होंठ के किनारे जमा खून उसके घूँघट ओढ़ने की विवशता बता रहे थे।

  (माता पिता  सोचते हैं उनकी बिटिया ससुराल में खुश है और बेटी दुख सहकर भी यह भ्रम बनाए रखती है। )

   



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