उसने विदा से पहले उन पौधों को अपने आंचल में समेट लिया उसने विदा से पहले उन पौधों को अपने आंचल में समेट लिया
जिसे इतनी नाजों से पालते हैं उसे क्यों इस तरह स्वयं से दूर कर देना पड़ता है जिसे इतनी नाजों से पालते हैं उसे क्यों इस तरह स्वयं से दूर कर देना पड़ता है
और आज ये भी जान गई थी की घूँँघट सिर से ढकने से नहीं, आंखों की शर्म होती है, जहां बड़ों की इज्जत की ज... और आज ये भी जान गई थी की घूँँघट सिर से ढकने से नहीं, आंखों की शर्म होती है, जहां...
इक पतिव्रता की मेहंदी, काली मेहंदी ! इक पतिव्रता की मेहंदी, काली मेहंदी !