Renu Poddar

Romance Others

3.0  

Renu Poddar

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कुछ तो है, तुझ से राब्ता

कुछ तो है, तुझ से राब्ता

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बरखा अटैची में कपड़ें रखते हुए उत्साहित तो थी...आखिर पीहर जो जा रही थी....पर साथ ही साथ आकाश के लिए चिंतित भी थी। सामान लगाते-लगाते कभी आकाश के कपड़ें उसकी अलमारी में ठीक से लगाती कि उसके जाने के बाद आकाश को सब कुछ आराम से मिल जाए, कभी फ्रिज में कुछ बना कर रख देती ताकि आकाश का कुछ खाने का मन करे तो आराम से गरम कर के खा ले। मन ही मन उसे अपनी हरकतों पर हंसी भी आ रही थी कि "यह कैसा प्यार है आकाश कोई बच्चे थोड़ी हैं"। उसने बाथरूम का एक-एक सामान दुबारा जा कर चैक किया, साबुन-शैम्पू सब जगह की जगह ठीक से रखे....उधर आकाश को भीतर से जितना बरखा का जाना अखर रहा था, उतना ही बाहर से दिखाने के लिए कह रहा था "हाँ-हाँ बरखा तुम जाओ, आखिर माँ-पापा का भी तो मन होता है, तुमसे मिलने का"। वह समझ नहीं पा रहा था बरखा के बिना दस दिन कैसे बितायेगा। सुबह-सुबह जब तक बरखा का उगते सूरज की तरह दीदार ना कर ले उसकी सुबह ही नहीं होती थी। शाम को ऑफिस से आने के बाद से रात तक बरखा का पूरे घर में चहल-कदमी करना घर में कैसी रौनक ला देता है।

अब उसके बिना घर कितना सूना-सूना हो जायेगा। घर की हर निर्जीव चीज़ में जैसे वो ही जान भरती है। अब उसके बिना घर-घर ही नहीं लगेगा। आकाश इतना ज़्यादा अपने ख्यालों में खोया था कि उसने शैव करते-करते बहुत ज़ोर से अपने ब्लेड मार लिया। नतीज़ा ज़ोर से चीख निकल गयी महाशय की। बरखा चाय बनाती-बनाती रसोई में से दौड़ी-दौड़ी आयी और उसका कट अपने हाथ से धोती हुई बोली "क्या करते हो....पता नहीं कहाँ ध्यान रहता है"? आकाश ने अपनी बाहों में उसे कस के जकड़ लिया और बोला "तुमसे ध्यान हटे तभी तो कहीं और लगेगा"। बरखा भी झूठी-मूठी अपने को छुड़वाने के लिए मचल कर दिखाने लगी...तभी आकाश ने उसे धीरे से खींचा और शॉवर के नीचे ले गया और शॉवर चला दिया। दोनों एक-दूसरे से लिपट कर अलग ही नहीं होना चाहते थे। एकदम से बरखा को कुछ जलने की बदबू आई तो मैडम को याद आया गैस पर चाय चढ़ा रखी थी। बरखा जल्दी से बेतहाशा रसोई की तरफ़ भागी।

गीले होने की वज़ह से बरखा का पैर फिसला और बरखा ज़ोर से गिरने ही वाली थी...तभी आकाश ने किसी मूवी के हीरो की तरह बरखा को संभाला। बरखा ने आकाश को ज़ोर से किस किया और रसोई में जाकर गैस बंद की | बरखा चाय लेकर आई तो आकाश ने उसकी तरफ थोड़ा प्यार वाला गुस्सा दिखाते हुए कहा "आज मैंने तुम्हें ठीक समय पर नहीं पकड़ा होता तो पता नहीं क्या होता"|

बरखा ने प्यार भरे शरारती अंदाज़ में कहा "क्या होता, ज़्यादा से ज़्यादा मेरी कोई हड्डी टूट जाती। मेरा मायके जाना कैंसिल हो जाता और जनाब को मेरी देखभाल करनी पड़ती" कह कर बरखा खिलखिला कर हंस पड़ी। आकाश उसे देखता रहा उसका कुछ बोलने का मन ही नहीं किया "कितनी मासूम सी और प्यारी सी हंसी है, बरखा की हमेशा ऐसे ही हंसती रहे और मुझे क्या चाहिए" सोचता हुआ आकाश मंद ही मंद मुस्कुराने लगा। बरखा ने उसे मुस्कुराते हुए देख चिढ़ते हुए उससे कहा "मेरी हड्डी टूटने की बात सुन कर कितनी बड़ी मुस्कराहट आ गयी आपके चेहरे पर जाओ मैं नहीं बोलूंगी आपसे" आकाश ने उसका मुंह अपने हाथों से पकड़ते हुए कहा "अरे आप हमसे नहीं बोलोगी तो हमारी तो रातों की नींद, दिन का चैन सब उड़ जायेगा"| ऐसे ही दोनों की नौक-झौक चलती रही और बरखा का जाने का समय हो गया। आकाश और बरखा दोनों का ही मन बहुत भारी हो गया। गाड़ी में सामान रखते समय आकाश सोच रहा था कि "बीवी को मायके क्यूँ जाना होता है। उनके माता-पिता हमारे घर आकर कुछ दिन क्यों नहीं रह लेते। बरखा पूरे रास्ते आकाश को ऐसे हिदायतें देती रही जैसे वो कोई छोटा सा बच्चा हो। किसी ने सच ही कहा है, "एक पत्नी कभी प्रियसी बन जाती है तो कभी माँ की तरह देखभाल भी करती है"। भारी मन से आकाश ने बरखा को ट्रैन में बिठाया दोनों की आँखों में नमी थी। दोनों एक दूसरे को तब तक देखते रहे जब तक आँखों से ओझल नहीं हो गये। सात घंटे का सफ़र था, बरखा खिड़की से बाहर देखती हुई अपने अतीत में खो गयी। आकाश से उसकी मुलाकात एक सहेली की शादी में हुई थी। चुलबुली सी बरखा को आकाश बहुत ही सीधा-साधा और चुप-चुप सा लगा था। वह एक कोने में खड़ा हुआ सब को निहार रहा था। बरखा को उसकी सहेली ने जब आकाश से मिलवाया तो बरखा को लगा कितनी अकड़ है, इस इंसान में.... पर आकाश तो पहली मुलाकात में ही उसकी उन्मुक्त सी हंसी, उसकी झील सी आँखों पर मुघद हो गया था। उसका बार-बार लहराती लटों को मुंह से हटाना उसके सौंदर्य का और उसके बेबाक व्यक्तित्व का दिवाना हो गया।

बरखा भी आकाश की तरफ एक खिंचाव महसूस कर रही थी, वो खुद असमंजस में थी...उसके साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है। कुछ दिन ऐसे ही निकल गए...एक दिन आकाश ने हिम्मत करके बरखा की सहेली से बरखा के बारे में पूछा और उससे मिन्नत की कि "एक बार उसकी बात बरखा से करवा दे"| बरखा की सहेली मिताली ने आकाश के दिल की भावनाओं की कद्र करते हुए आकाश से कहा "पहले एक बार वो बरखा से बात तो करके देखेगी की उसके मन में क्या है"। मिताली ने बरखा को फ़ोन करके उससे उस दिन शादी में सब कैसा लगा पूछा फिर बातों ही बातों में उसने आकाश का ज़िक्र छेड़ा। बरखा ने मिताली से हँसते हुए कहा "वो महाशय मुझे कुछ ठीक से समझ नहीं आये, या तो बहुत सीधे हैं या बहुत अकड़ू...उन्हें ठीक से समझने के लिए उनसे एक बार फिर से  मिलना पड़ेगा"।बरखा और आकाश एक दूसरे से मिले, मिल कर उन्हें ऐसा लगा मान लो वो एक दूसरे के पूरक हों। बरखा भी अपनी ज़िन्दगी में एक ऐसा ही व्यक्ति चाहती थी जो उसकी नादानियों को अनदेखा कर सके। दोनों को एक-दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा। कुछ मुलाकातों के बाद ही दोनों ने इसे जन्म-जन्म का रिश्ता बनाने के लिए घर वालों से बात भी कर ली। घर वाले बच्चों की ख़ुशी में ही खुश थे। शादी के बाद संयुक्त परिवार की आदत ना होने की वजह से बरखा को शुरू-शुरू में दिक्कतें आई पर कदम-कदम पर आकाश के साथ ने उसे हिम्मत दी पर जहाँ दो बर्तन होते हैं वो खड़- खड़ तो करते ही हैं। बरखा से भी किसी की गलत बात बर्दाश्त नहीं होती थी। घर की शान्ति बनाये रखने के लिए आकाश ने अपना ट्रांसफर दूसरे शहर में करवा लिया ताकि सबको एक-दूसरे की कद्र  रहे और रिश्तों में कड़वाहट ना आये।

आकाश बरखा को लेकर नये घर में आ गया। ज़िम्मेदारियों का बोझ पढ़ने से अब बरखा में भी परिपक्वता आती जा रही थी...पर आकाश को तो वो ही चंचल सी बरखा चाहिए थी... इसलिए उसने घर के कामों में बरखा की मदद करनी शुरू कर दी, उधर बरखा आकाश के इतने प्यार के सामने उससे प्यार ही नहीं उसकी पूजा भी करने लगी थी। आकाश के और घर के काम करने में अब उसे कोई झुंझलाहट नहीं होती थी। वो आकाश के मुंह से निकलने से पहले ही उसके सब काम करने लगी, नतीज़ा ये हुआ...आकाश अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए भी उसपर निर्भर हो गया इसलिए ही आज उसे छोड़ कर जाने में बरखा को आकाश की बहुत चिंता हो रही थी। बरखा अपने ख्यालों में इतना खो गई की उसे कोई होश ही नहीं था कि वो ट्रैन में है...तभी टिकट चैकर की आवाज़ से वो घबरा गई और वापिस वर्तमान में लौटी, उधर आकाश ने तो ऑफिस में ओवर टाइम ही करना शुरू कर दिया क्यूंकि घर वो कम से कम जाना चाहता था। घर का एक-एक कोना उसे बरखा की याद दिलाता था। पीहर पहुँच कर सबसे मिलकर बरखा बहुत खुश थी। दिन तो मानो पंख लगा कर उड़ रहे हों। सबका इतना प्यार होते हुए भी बरखा को कहीं ना कहीं, आकाश की कमी खल रही थी।

उसे खुद नहीं समझ आ रहा था कि उसके अंदर यह कैसा बदलाव है। जिस घर में उसने अपना बचपन बिताया, जहाँ वो बड़ी हुई...जहाँ एक- एक कदम पर उसके अपने उसकी चिंता कर रहे हैं...फिर भी कुछ ही समय में उसका आकाश से कितना अनोखा रिश्ता जुड़ गया है कि उसकी हर बात में आकाश होता है, उसकी यादों में आकाश होता है। आकाश ने घर में एक डायरी बना ली और बरखा के बिना उसका एक- एक पल काटना कितना मुश्किल हो रहा है, सब उसमें कहीं शायरी बना के तो कहीं कविता बना कर लिख दिया। कुछ दिन बाद बरखा वापिस आ गयी। बरखा और आकाश दोनों को एक-दूसरे के गले लग कर ऐसा लग रहा था जैसे कब के बिछड़े हुए आज मिले हों। ऐसे हो हँसते-खेलते कभी लड़ते, कभी झगड़ते कुछ साल बीत गए। उनके दो प्यारे बच्चे हो गए। आकाश और बरखा जितने अच्छे पति-पत्नी थे, उससे भी अच्छे माँ-बाप बन गए।

अपने प्यारे से संसार में सब बहुत खुश थे। समय का चक्र चलता रहा धीरे-धीरे बच्चे बड़े हो गये। बच्चे पढ़ लिख कर नौकरी करने विदेश चले गए। वहीं पर शादी भी कर ली और फिर वहीं के हो कर रह गये... पर रोज़ अपने माँ-पापा से वीडियो चैट करना नहीं भूलते थे। बरखा और आकाश बच्चों को याद करके कभी-कभी बहुत दुखी हो जाते थे। बच्चों के बिना उन्हें अकेलापन लगता था, सोचते थे जहाँ से चले थे वहीं आ गये। धीरे-धीरे आकाश ने अपने को थोड़ा बहुत संभाल लिया था पर बरखा से तो बच्चों की जुदाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हो रही थी।

आकाश बरखा को समझाने में लगा रहता था कि "बच्चों को उनकी ज़िन्दगी में आगे बढ़ने से रोकने का हमें कोई हक़ नहीं है। उन्हें उनकी ज़िन्दगी जीने दो। बरखा को यह बात समझने में बहुत समय लग गया पर धीरे-धीरे उसने अपने आस-पास छोटी-छोटी खुशियों में खुश रहना सीख लिया | बरखा कभी-कभी अनाथालय में जाकर बच्चों को कुछ खाने-पीने का सामान दे आती थी। उम्र बढ़ने के साथ-साथ आकाश और बरखा का प्यार एक-दूसरे के लिए बढ़ता ही जा रहा था। दोनों एक-दूसरे के बिना अपनी ज़िन्दगी की कल्पना भी नहीं करना चाहते थे। कभी गलती से भी ऐसी ज़िन्दगी का ख्याल मन में आता तो दोनों सिहर उठते थे...पर किस्मत के आगे तो आज तक किसी का ज़ोर नहीं चला। एक दिन अचानक से बरखा की तबियत बहुत ख़राब हो गयी और वो बेहोश हो गई। आकाश उस समय ऑफिस गया हुआ था। ऑफिस से आ कर जब बहुत देर तक दरवाज़ा खटखटाता रहा और बरखा ने दरवाज़ा नहीं खोला तो आकाश का दिल किसी अनहोनी की आशंका से बहुत ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। किसी तरह आस-पास वालों की मदद से खिड़की का शीशा तोड़ कर आकाश अंदर गया तो वो ही हुआ जिसका डर था। बरखा को हार्ट अटैक आया था। वो अपनी अंतिम साँसे गिन रही थी...बस आकाश की गोदी में ही दम तोड़ना चाहती थी, इसलिए शायद कोई सांस अटकी रह गयी। आकाश रोता रहा, चिल्लाता रहा कि "तुम ज़िन्दगी के इस पड़ाव में मुझे अकेला छोड़ कर कैसे जा सकती हो"।

बरखा से ज़्यादा कुछ नहीं बोला जा रहा था। बड़ी मुश्किल से बस इतना ही बोल पाई "हम सब ऊपर वाले के हाथ की कठपुतली हैं।आपको अपने पास देख कर मैं चैन से मर सकती हूँ। आप अपना ध्यान रखियेगा"। कहते-कहते बरखा की साँसों ने उसका साथ छोड़ दिया। बरखा के जाने के बाद आकाश एकदम अकेला हो गया। उसके बच्चों ने उससे उनके साथ अमेरिका चलने को कहा पर उसने उन सब के आग्रह को बहुत ही विनम्रता से यह कह कर टाल दिया कि "बेटा अब मेरी भी ज़िन्दगी ज़्यादा दिन की नहीं है। यहाँ इस घर की एक-एक चीज़ में तुम्हारी माँ की यादें हैं। उन्हीं यादों के सहारे ज़िन्दगी बिता लूंगा। अब उम्र के आखिरी पड़ाव पर विदेश में नहीं रह पाऊँगा"। आकाश के छोटे बेटे ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "पापा जब तक मम्मी थी तब तक अलग बात थी। मैं आपको बिल्कुल अकेले रहते हुए नहीं देख सकता। मैं कुछ ही दिनों में अपना ट्रांसफर यहाँ पर करवा लूंगा"। 

आकाश को बरखा के साथ की इतनी आदत हो गयी थी कि उसके बिना आकाश को अपनी ज़िन्दगी अधूरी लगने लगी। वह एकांत में बैठा-बैठा बरखा के साथ बिताया गया एक-एक पल याद करके कभी मुस्कुराता, तो कभी उदास हो जाता... कभी उसे इस बात का पछतावा होता कि क्यूँ इतनी सी बात के लिए उसने बरखा का दिल दुखाया। बरखा के बिना रहना अब उसके लिए मुश्किल होता जा रहा था...एक दिन ऐसे ही बैठे-बैठे बरखा की यादों में खोये हुए आकाश कभी न उठने वाली नींद सो गया और चला गया...हमेशा के लिए अपनी बरखा के पास आत्मा से आत्मा के मिलन के लिए।


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