कुछ कहो - कुछ सुनो
कुछ कहो - कुछ सुनो
बहुत दिनों के बाद 'कुछ कहो' और 'कुछ सुनो' की मुलाकात हुयी।
"तुम कैसी हो ?" 'कुछ सुनो' ने बड़ी ही आत्मीयता से पूछा।
मंद मंद मुस्कुराते 'कुछ कहो' जवाब देने लगी," जिंदगी चल रही है अपनी ही रौ में कभी बेआवाज तो कभी शोरगुल में।'
"तुम भी सुनाओ कुछ अपनी बातें, कितनी सारी बातें इकट्ठा हुई है हमारे बीच।"
'कुछ सुनो' ने एक गहरी साँस ली और कहने लगी," मुझे तो जिंदगी कभी बेपरवाह सी लगने लगती है और कभी बेवजह कैफ़ियत माँगनेवाली कोई जिद्दी सी शै लगती है।हम भी देखते है जिंदगी की इस बहाव में कितने दूर जाते हैं।"
'कुछ कहो' जैसे एकदम से खामोश हो गयी और उसकी तरफ एकटक देखने लगी ,क्योंकि आज 'कुछ सुनो' ने कुछ न कहते हुए बहुत कुछ कह दिया ..
उन दोनों के बीच एक गहरा सन्नाटा पसर गया जो 'कुछ कहो' से और 'कुछ सुनो' की कैफियत सुनने की चाह रख रहा हो.....