Gulafshan Neyaz

Abstract

4.5  

Gulafshan Neyaz

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कठपुतली

कठपुतली

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एक लड़की को पैदा होते ही उसकी पहचान मिल जाती है।

और उसके कई रूप हैं। हर रूप मे एक बड़ी जिम्मेदारी एक बहन एक बेटी एक पत्नी से लेकर माँ तक का सफऱ चौनौती से भरा रहता है।

बचपन से अपनी इछाओ को दबाने की आदत सी हो जाती है।

ज़ब लड़की घर से निकलती है तो माँ कहती है। बेटी निगाहेँ नीची रखना। तुम अच्छे खानदान से हो कुछ ऐसी वैशी हरकत मत करना जिस से तुम्हारे पापा और भाई की बदनामी हो। उसे बचपन से ससुराल मैं कैसे रहना है। बचपन से ही सीखाया जाता है। सारे नियम और क़ानून थोपे जाते है। ऐसा लगता है जैसे सारे खानदान की जिम्मेदारी उसी के नाजुक कंधो पर हो।

अगर किसी बारे के बातो का जवाब दे दो तो ऐसा लगता है जैसे जवालामुखी। फट गाया हो। लड़की बड़ी घर की हो या छोटे घर की गाँव की हो या शहर की कंही ना कंही कभी ना कभी उसे अपने इछाओ की क़ुरबानी देनी परती है।

जितना सिख और संस्कार हम लड़कियों के अंदर डालने की कोशिश करते है। उतना लड़को के अंदर वही सिख और संस्कार क्यों नहीं ड़ालते। क्योकि वो लड़के है वो जो चाहे कर सकते है। उसे हम घर से निकलते वक़्त क्यों नहीं समझते बेटा किसी लड़की को इज्जत की नज़र से देखना वहसी नज़र से नहीं।

आज वक़्त और हालत बदले है। आज लड़किया प्लेन उड़ा रही है। देश की सेवा मे जा रही है उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है।

लोग अब कहते है। लड़के और लड़कियों मे अब कोई फर्क नहीं। दोनों बराबर है। पर ऐसा बिलकुल नहीं है। अब भी लड़के और लड़कियों मे बहुत फर्क है ज़ब कोई लड़का देर रात घर से बहार रहता है तो घर वाले उस से कोई सवाल नहीं करते। लड़के के माँ बाप के चेहरे पर चिंता की रेखएं नहीं होती। परंतु ज़ब लड़की घर से बाहर होती है तो माँ बाप के चेहरे पर चिंता की लकीरे होती है दिल मे अजीब हलचल होता है। ज़ब लड़की घर पहुँचती है तो उस से ढेरों सवाल जवाब होते है

वही ज़ब एक लड़की का बलात्कार होता है

तो लोग उसे अजीब नज़रो से देखते है। जैसे की सारा कसूर उसी का हो। उसके ड्रेस को उसके रहन सहन पर ऊँगली उठाते हैंं। कहने को तो हम इकीसवीं सदी मे है पर सोच हमारी आज भी वही है की औरत मर्द के हाथो की कटपुतली है। जो जीवन भर मर्दो के इशारों पर नाचती है। जो कभी पिता कभी भाई पति बेटा के रूप मेंं नचाता है।


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