कत्ल
कत्ल
जब ब्योमकेश बक्शी ग्रीन पार्क के उस फ्लैट में पहुँचा तो पुलिस फ्लैट का दरवाजा खोलने की कोशिश कर रही थी। दरवाजे का लॉक बहुत मजबूत था, बहुत ही मुश्किल से लॉक काट कर फ्लैट खोला गया। यह एक कमरे फ्लैट था फ्लैट का नजारा दिल दहला देने वाला था। कमरे के बीचो-बीच एक युवती की लाश पंखे से झूल रही थी। लाश कमरे में फर्श से पाँच फ़ीट ऊँची झूल रही थी। पूरे कमरे में कोई फर्नीचर या मेज नहीं थी। यहाँ तक की किसी बर्फ की सिल्ली होने तक के निशान नहीं थी।
पुलिस के पीछे-पीछे ब्योमकेश बक्शी उस कमरे में आया और कमरे का हर कौना बहुत गौर से देखा।
"क्या कहते हो ब्योमकेश बाबू, ये साफ-साफ आत्महत्या का मामला है।" इंस्पेक्टर धर्मा कमरे में चारो और देखते हुए बोला।
"इतनी जल्दी नहीं धर्मा सर, ये युवती मार कर टाँगी गई है।" ब्योमकेश बोला।
"अंदर से बंद दरवाजे के बारे में भी कुछ कहियेगा ब्योमकेश बाबू?" इंस्पेक्टर धर्मा बोला।
"जी बिलकुल कहूँगा........आइये मेरे साथ।" ब्योमकेश बोला।
ब्योमकेश ने मुख्य दरवाजे को देखते हुए कहा, "कृपया दरवाजा तोड़ कर बहार निकलवा दीजिए।
कुछ देर बाद पुलिस के लोग सड़क से दो मजदूरों को पकड़ लाइ और उन दोनों ने थोड़े से प्रयास के बाद दरवाजा जड़ से उखाड़ कर बाहर निकाल दिया। दरवाजे के साथ जो सीमेंट बाहर आया वो बहुत कच्चा था।
"देखिए इंस्पेक्टर साब ये दरवाजा और उससे लगा सीमेंट इस बताता है कि इस दरवाजे को तोड़ कर अंदर से बंद कर पुनः लगा दिया गया था। ऐसा वो करेगा जिसे इस केश को आत्महत्या का नाम देने से फायदा हो।" ब्योमकेश बोला।
"तुम्हारी बात सच लगती है, लेकिन कातिल कौन है?" इंस्पेक्टर ने पूछा।
"अभी आत्महत्या और हत्या के बीच की लकीर मिटी है, इसे क्लियर होने दो उसके बाद कातिल को भी पकड़ लेंगे।" ब्योमकेश बोला।
