Surya Barman

Abstract Fantasy Inspirational

3  

Surya Barman

Abstract Fantasy Inspirational

' क्षमा दान ' - ससुर और दामाद

' क्षमा दान ' - ससुर और दामाद

4 mins
158



एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया लेकिन उसने रूपये ससुर जी को नहीं लौटाये ।


आखिर दोनों में झगड़ा हो गया । झगड़ा इस सीमा तक बढ़ गया कि दोनों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बिल्कुल बंद हो गया ।

          " घृणा " व " द्वेष ” का आंतरिक संबंध अत्यंत गहरा हो गया । साधक हर समय हर संबंधी के सामने अपने दामाद की निंदा, निरादर व आलोचना करने लगे ।


उनकी साधना लड़खड़ाने लगी । भजन पूजन के समय भी उन्हें दामाद का चिंतन होने लगा । मानसिक व्यथा का प्रभाव तन पर भी पड़ने लगा । बेचैनी बढ़ गयी । समाधान नहीं मिल रहा था । आखिर वे एक " संत " के पास गये और अपनी व्यथा कह सुनायी ।


संतश्री ने कहा :- ' बेटा ' ! तू चिंता मत कर । ईश्वर कृपा से सब ठीक हो जायेगा। तुम कुछ फल व मिठाइयाँ लेकर दामाद के यहाँ जाना और मिलते ही उससे केवल इतना कहना, बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा कर दो ।


साधक ने कहा :- " महाराज " ! मैंने ही उनकी मदद की है और क्षमा भी मैं ही माँगूँ ! "


संतश्री ने उत्तर दिया :- " परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की गलती न हो । चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत हो दूसरे पक्ष की निन्यानवे प्रतिशत, पर भूल दोनों तरफ से होगी । "


साधक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था ।

 उसने कहाः- " महाराज ! मुझसे क्या भूल हुई.. ? "


भूल मुझसे या उससे हुई है महराज :- ? " बेटा '' !


तुमने मन ही मन अपने दामाद को बुरा समझा - यह है तुम्हारी भूल ।

तुमने उसकी निंदा, आलोचना व तिरस्कार किया – यह है तुम्हारी दूसरी भूल ।

 क्रोध पूर्ण आँखों से उसके दोषों को देखा - यह है तुम्हारी तीसरी भूल ।

अपने कानों से उसकी निंदा सुनी - यह है तुम्हारी चौथी भूल ।

तुम्हारे हृदय में दामाद के प्रति क्रोध व घृणा है - यह है तुम्हारी आखिरी भूल ।


अपनी इन भूलों से तुमने अपने दामाद को दुःख दिया है । तुम्हारा दिया दुःख ही कई गुना हो तुम्हारे पास लौटा है । जाओ, अपनी भूलों के लिए क्षमा माँगो । नहीं तो तुम न चैन से जी सकोगे, न चैन से मर सकोगे ।


'' क्षमा '' माँगना बहुत बड़ी साधना है ।"


साधक की आँखें खुल गयीं । संतश्री को प्रणाम करके वे दामाद के घर पहुँचे । सब लोग भोजन की तैयारी में थे । उन्होंने दरवाजा खटखटाया । दरवाजा उनके दोहते ने खोला । सामने नानाजी को देखकर वह अवाक् सा रह गया और खुशी से झूमकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा :- " मम्मी '' !! पापा !!

 देखो कौन आये ! नानाजी आये हैं, नानाजी आये हैं....। "


" माता-पिता " ने दरवाजे की तरफ देखा । सोचा, ' कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे ! '

                बेटी हर्ष से पुलकित हो उठी, ' अहा ! पन्द्रह वर्ष के बाद आज पिताजी घर पर आये हैं । ' प्रेम ' से गला रूँध गया, कुछ बोल न सकी । साधक ने फल व मिठाइयाँ टेबल पर रखीं और दोनों हाथ जोड़कर दामाद को कहा :- " बेटा " ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा करो । "


" क्षमा " शब्द निकलते ही उनके हृदय का प्रेम अश्रु बनकर बहने लगा । दामाद उनके चरणों में गिर गये और अपनी भूल के लिए रो-रोकर क्षमा याचना करने लगे ।

ससुरजी के प्रेमाश्रु दामाद की पीठ पर और दामाद के पश्चाताप व प्रेममिश्रित अश्रु ससुरजी के चरणों में गिरने लगे ।

पिता-पुत्री से और पुत्री अपने वृद्ध पिता से क्षमा माँगने लगी । क्षमा व प्रेम का अथाह सागर फूट पड़ा । सब शांत, चुप !सबकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी । दामाद उठे और रूपये लाकर ससुरजी के सामने रख दिये ।


'' ससुरजी '' कहने लगे :- " बेटा '' ! आज मैं इन कौड़ियों को लेने के लिए नहीं आया हूँ । मैं अपनी भूल मिटाने, अपनी साधना को सजीव बनाने और द्वेष का नाश करके प्रेम की गंगा बहाने आया हूँ ।


मेरा आना सफल हो गया, मेरा दुःख मिट गया । अब मुझे आनंद का एहसास हो रहा है । "


दामाद ने कहा :- " पिताजी '' ! जब तक आप ये रूपये नहीं लेंगे तब तक मेरे हृदय की तपन नहीं मिटेगी । कृपा करके आप ये रूपये ले लें ।


साधक ने दामाद से रूपये लिये और अपनी इच्छानुसार बेटी व नातियों में बाँट दिये ।

                सब कार में बैठे, घर पहुँचे । पन्द्रह वर्ष बाद उस अर्धरात्रि में जब माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी व बालकों का मिलन हुआ । तो ऐसा लग रहा था कि मानो साक्षात् प्रेम ही शरीर धारण किये वहाँ पहुँच गया हो ।


सारा परिवार प्रेम के अथाह सागर में मस्त हो रहा था । क्षमा माँगने के बाद उस साधक के दुःख, चिंता, तनाव, भय, निराशारूपी मानसिक रोग जड़ से ही मिट गये ओर साधना सजीव हो उठी ।


ज्ञान :- हमें भी अपने दिल में क्षमा रखनी चाहिए अपने सामने छोटा हो या बड़ा अपनी गलती हो या ना हो क्षमा मांग लेने से सब झगड़े समाप्त हो जाते है ।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract