आस का दीपक जला लूं
आस का दीपक जला लूं
दूर कर लो अपने सारे अंधकार को
आज उनको अपने आलोक प्राण में भर लूं
तमस की सारी तोड़ कर लड़ी को
उन दीपों की पंक्ति से यूं जग को जगमगा दूं
अपने हृदय को उनकी बाती बना कर
ये नूतन को अपने सपनों की ज्योत जला दूं
मैं अपने ही आत्मशक्ति के बल पर
मेरे इस बूझे मन की हर आस को यूं जगा दूं
कौन कहता है इस तिमिर अधिक घना है
इसका भी है तो वो अंत कहीं पर है
इसको भेद को आगे यूं बढ़ना है
तुम्हें ही तो इस प्रलय की आंधियों से लड़ना है
तेरे हाथ को थाम कर मैं
एक आस का दीपक जला लूं
तुम भी कदम से कदम बढ़ा कर यूं देखो तो
पीछे-पीछे ये कारवां भी तेरे अपने आप चलेगा
मैं एक आस का दीपक जला लूं
मेरे पास आकर तुम भी देखो तो
