क़सक
क़सक


सूरज सर पे चढ़ आया था, नौकरानी कब से दरवाज़े की घंटी बजा-बजा कर आखिरकार वापस चली गई। लेकिन ॠतुजा को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया। वह टकटकी लगाये बस शून्य में ताक रही थी। कल शाम सुनी बातें उसे अंदर ही अंदर कचोट रहीं थीं और वह आवाज़ें उसके ज़हन में भयानक उथल-पुथल मचाए हुए थी। यह सब कैसे हुआ! वह अब भी समझ नहीं पा रही थी। क्योंकि जिस ईशान को वह जानती थी वह तो उससे बात किये बगैर एक पल नहीं रह सकता था और आज वही ईशान किसी और के साथ....
दरअसल ॠतुजा और ईशान पिछले तीन साल से एक ही दफ्तर में साथ काम करते थे। दोनों की खूब जमती भी थी। दोनो बहुत ही अच्छे दोस्त थे। ऐसा एक भी दिन नहीं था जब ईशान अपनी हर छोटी बड़ी समस्या को लेकर ॠतुजा के पास ना आया हो। और वह भी जब तक उसकी समस्या हल ना कर ले तब तक चैन से नहीं बैठती थी। सारे दफ्तर में उन दोनों के ही चर्चे रहते थे। ॠतुजा की आँखों में ईशान के लिए ढेर सारा प्यार और फिक्र साफ देखी जा सकती थी मगर उसने कभी भी अपने जज़्बात ईशान पर ज़ाहिर नहीं होने दिये। शायद यही उसकी सबसे बड़ी भूल थी क्योंकि तीन महीने पहले ही उनके दफ्तर में आई सुहानी (जो देखने में काफी आकर्षक और सुन्दर थी) ने कब उसकी जगह ले ली, ॠतुजा को पता ही नहीं चला। वह तो हमेशा की तरह ईशान की खुशियों में खुश और उसकी परेशानी में परेशान हो जाती थी। उसे ईशान में आई तब्दिली का एहसास भी नहीं हुआ क्योंकि वह प्यार में थी।
आज ॠतुजा का जन्मदिन था इसलिए वह पूर्वसंध्या यानि कल शाम खासतौर पर ईशान को अपने जन्मदिन का न्यौता देने बिना उसे बताये उसके फ्लैट पर जा रही थी। इससे पहले भी वह कई बार ईशान के यहाँ गई थी लेकिन इतनी प्रसन्न और उत्साहित पहले कभी नहीं थी क्योंकि बस कुछ ही देर में वह ईशान से अपने दिल की बात कहने वाली थी। अपने ही ख़्यालों में डूबी वह कब अपने गंतव्य तक पहुंच गई, पता ही नहीं चला। वह मुस्कुराती हुई आहिस्ता से ईशान के कमरे की ओर बढ़ ही रही थी कि अचानक उसके कमरे के अधखुले दरवाज़े से बाहर आती आवाज़ को सुनकर वहीं ठिठक सी गयी। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसके तीन साल के साथ पर यह तीन महीने इस कदर भारी होंगे। क्योंकि वह आवाज़ सुहानी और ईशान की थी।
ऋतुजा ने कमरे से आती आवाज़ को ध्यान से सुना।
ईशान सुहानी से बात कर रहा था कि किस तरह वह दोनों काॅलेज के समय से साथ थे और एक दूसरे के कितने क़रीब भी। कैसे उन दोनों ने साथ जीने- मरने की क़समें खाईं थी और फिर अचानक एक दिन सुहानी का भाई उसे ज़बरदस्ती अपने साथ ले गया। उसके बाद सुहानी कभी लौटकर काॅलेज नहीं आई। ईशान बोलता जा रहा था कि उसके काॅलेज से जाने के बाद वह कितना दुखी था, स्वयं को धिक्कार रहा था कि तुम्हें चाहकर भी रोक नहीं पाया क्योंकि मैं मजबूर था। मुझ
पर मेरी माँ और छोटी बहन की ज़िम्मेदारी थी मैं जानता था कि मेरी माँ ने कितने जतन किये हैं मुझे पढ़ाने के लिए। मैं इतना स्वार्थी नहीं हो सकता था कि अपनी खुशी के आगे अपनी माँ के अरमानों को कुचल दूँ। इसीलिए इतनी ख़ामोशी से तुम्हें अपनी ज़िन्दगी से जाते देखता रहा।
कहते-कहते ईशान का गला रुंध गया। सुहानी की सिसकियाँ भी मैं साफ-साफ सुन पा रही थी।
फिर सुहानी बोली, भईया ने काॅलेज से ले जाकर मेरी पढ़ाई बंद करवाने का फैसला सुनाया और घर में मेरी शादी की बातें होने लगीं। लेकिन मैने कहा कि मेरी पढ़ाई का आखरी साल है मुझे इम्तिहान देने दीजिये। कुछ देर सोच कर सब राज़ी हो गये। मैने अपने पेपर दिये लेकिन बिना कॉलेज आये। रिज़ल्ट आने के बाद मुझे एक बहुत अच्छी नौकरी का बुलावा आया। मैंने किसी तरह घरवालों को मना लिया और अब जब ट्रांसफर हुआ तो समय एक बार फिर तुम्हारे सामने ले आया। कहते-कहते सुहानी हिचकियाँ लेकर रोने लगी।
ॠतुजा बाहर खड़ी सब कुछ सुन रही थी और उसकी आँखें जैसे पथरा गयी थीं और कानों में जैसे किसी ने पिघलता सीसा उड़ेल दिया था।
अचानक अंदर से आती एक फोन की घंटी से उसकी तंद्रा टूटी और वह तेजी से वापस अपने घर की ओर पलट गयी।
यह सब कुछ बीती शाम हुआ था। ॠतुजा रात भर सो नहीं पाई थी और अब जबकि एक नई सुबह हुई तो स्वयं को समेट कर उठी और कुछ सोच दफ्तर जाने की तैयारी में लग गयी। दफ्तर का दरवाज़ा खोलते ही जन्मदिन की बधाईयों के साथ तालियां गूंज उठीं। ॠतुजा ने देखा सबसे आगे ईशान उसकी पसंद के फूलों का गुलदस्ता लिये मुस्कुरा रहा है। थोड़ी दूर पर बाकी के स्टाफ के बीच खड़ी सुहानी भी तालियों के साथ उसे विश कर रही है। ॠतुजा मुस्कुरा कर ईशान की तरफ बढ़ी और खिलखिला कर बोली, कंजूस मेरे लिये कोई गिफ्ट नहीं लाये! ईशान भी हंसते हुए बोले, कहो क्या चाहिए? ॠतुजा ने मुस्कुरा कर सभी को शाम को अपने घर पार्टी में निमंत्रित किया।
शाम को जब सभी ॠतुजा के यहाँ पहुँच तो इतना सुन्दर इंतज़ाम देखकर सभी चकित रह गए। केक कटने के बाद ईशान ने ॠतुजा की तरफ गिफ्ट बढ़ाते हुए छेड़ते हुए लहज़े में पूछा, रिटर्न गिफ्ट कहाँ है मैडम! ॠतुजा भी मुस्कुरा कर बोली, बिलकुल सर अभी लाई। कह कर ॠतुजा अंदर से एक ख़ूबसूरत सी ट्रे में गुलाब की पंखुड़ियों के बीच दो सुन्दर अंगूठियाँ लाई। पूरे हाॅल में सन्नाटा पसर गया। तभी ॠतुजा ने मुस्कुराते हुए ईशान और सुहानी को आमने-सामने खड़ा कर अंगूठी पहनाने को कहा। दोनों चकित हुए कभी एक दूसरे को तो कभी ॠतुजा को देख रहे थे। ईशान ने आगे बढ़कर ॠतुजा को गले लगाते हुए हैरानी से कहा, तुम्हें कैसे पता! ऋतुजा मुस्कुरा कर बोली, दोस्त हूँ, इतना भी नहीं जानूंगी क्या ? और पूरे हाॅल में तालियां गूंज उठीं।